कुछ खरी खरी : न तो नाली की सफाई हो और ना ही हर दिन झाडू लगे, न हर दिन कचरा संग्रहण वाले आएं, फिर भी जुर्माना आम जनता पर, ना शहर में पार्किंग, नहीं यातायात को व्यवस्थित करने वाले जिम्मेदार तैनात, वसूली होगी आमजन से, तानाशाही की हद है यह तो

हेमंत भट्ट

रतलाम के शहरवासी तभी से ठगे से महसूस हो रहे हैं, जब प्रदेश में भाजपा की सरकार नहीं थी और अब भाजपा की सरकार है तो भी। पहले सुविधाएं इसलिए नहीं मिलती थी कि प्रदेश में हमारी सरकार नहीं है। मगर अब भाजपा की सरकार है। भाजपा के विधायक भी हैं। पार्षद भी हैं। सांसद भी हैं। महापौर भी हैं। फिर भी सुविधाओं और काम के नाम पर जीरो बटे सन्नाटा। लगता है भाजपा की सरकार आम जनता की नहीं, बल्कि ओबलाइज करने वालों की सरकार बनती जा रही है।

आखिर जिले और शहरवासियों को किस बात की सजा दशकों से मिल रही है, यह तो भगवान भी नहीं जान पाता क्योंकि जो भी जिम्मेदार आते हैं प्रशासन के, उनको काम के नाम पर साप क्यों सूंघ जाता है। जो काम करने के हैं वह होते वह काम नहीं होते हैं। जो होते है उनकी वाह! वाही होती है। उनके नाम के डंके बजने लगते हैं किसी को विकास पुरुष बना दिया जाता है तो किसी को संवेदनशीलता की प्रतिमूर्ति। जबकि हकीकत कुछ और ही रहती है।

क्यों निकल कर आता है बार-बार हेलमेट का जिन

हर बार यातायात विभाग एक ही राग अलापता है हेलमेट की अनिवार्यता। यातायात सुधार के नाम पर केवल हेलमेट का जिन नहीं बार-बार बाहर निकल कर आता है। हेलमेट बनाने वालों से इनका क्या मीठा है जबकि जो काम इनको शहर हित में करने चाहिए, विभाग वह कर नहीं पाता है। बहानेबाजी के अलावा कुछ नहीं नजर आता। कहता है कि अतिक्रमण हटाना नगर निगम का काम जबकि यातायात में बाधक जो बनते हैं उस पर कार्रवाई तो यातायात विभाग को ही करनी है। जब यातायात की सड़क पर दुकानदार अतिक्रमण करते हैं। सड़क पर वाहन पसरे रहते हैं, क्योंकि शहर के जिम्मेदारों ने आज तक बाजार के किसी भी क्षेत्र में दो पहिया चार पहिया वाहनों की व्यवस्थित पार्किंग की सुध नहीं ली। और तो और शहर का फुटपाथ दशकों से चोरी हो गया मगर आज तक किसी ने रिपोर्ट नहीं लिखवाई। क्योंकि वह यही मानते हैं कि देर सबेर कुछ तो व्यवस्था होगी लेकिन पूरा कुनबा ही धृतराष्ट्र बना हुआ है। केवल और केवल आम जनता से जुर्माना वसूलने के लिए ही अधिकारी बनाए हैं, उनकी सेवा के लिए नहीं। यह तो तानाशाही की हद हो रही है।

वे भी ढाक के तीन पात

नगर निगम आयुक्त से भी कुछ अपेक्षाएं शहरवासियों को थी लेकिन वे भी ढाक के तीन पात की तरह ही निकले। कर्मचारियों पर नकेल कसने की बजाए है वह भी आम जनता से जुर्माना राशि वसूलने पर आमादा हो रहे हैं। जबकि सर्वविदित है कि शहर में हर दिन झाड़ू नहीं लगती है। हर दिन कचरा संग्रहित नहीं होता है। हर दिन नाली साफ नहीं होती है। यह तो त्यौहार की तरह ही काम होता है। अभियान चलता है और फिर जय जय सियाराम।

सब्र की इतनी भी परीक्षा न लें जिम्मेदार

आम जनता के सब्र की इतनी भी परीक्षा न लें जिम्मेदार कि उन्हें फिर बाद में पछताने का भी मौका ना मिले। अधिकारियों की तो सेहत पर कोई असर होता नहीं है आज यहां है तो कल वहां है। बंजारों की तरह आते जाते रहते हैं। उन्हें भला कहो, बुरा कहो, कुछ भी कहो, वह तो मोटी चमड़ी के हैं, बस दमड़ी आनी चाहिए।

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