खरी-खरी : वाह ! रे नेतृत्व, डेढ़ दशक में चौबेजी, छब्बेजी बनने के बजाय रह गए दुबे जी, पुलिस और प्रशासन है के नहीं, एक समारोह ऐसा भी

हेमंत भट्ट

तकरीबन डेढ़ दशक से रतलाम को संभाग बनाने के लिए जन नेताओं से शहरवासियों ने अपेक्षा की लेकिन डेढ़ दशक में ऐसा नेतृत्व रहा कि चौबेजी, छब्बेजी बनने की बजाय दुबे जी बनकर रह गए। ऐसा कमजोर नेतृत्व आखिर शहर वासियों को क्या सौगात दे सकता है? शहर में पुलिस और प्रशासन है के नहीं, यह सवाल आमजन, आमजन से ही पूछ रहा है। पंद्रह अगस्त पर ले सकते हैं ढीट बने रहने का अवार्ड भी जिम्मेदार अधिकारी। एक समारोह ऐसा भी हुआ जिसमें पर्यावरण प्रेमी ने केवल पौधे स्वीकार किए और कुछ नहीं। किसी जननेता के सम्मान में इतनी भीड़ नहीं उमड़ी होगी, जितनी कि उनके आत्मीय सम्मान के लिए आम और खास आए।⚫

करीब डेढ़ दशक पहले संभाग बनाने की कवायद शुरू हुई थी लेकिन अपनी आवाज बुलंद नहीं कर पाए। इसके बाद तो उनकी बोलती ही बंद हो गई। कोई सुगबुगाहट नहीं रही कि रतलाम को संभाग बना दिया जाए क्योंकि रतलाम वासियों को संभाग का दर्जा मिले ऐसा शायद नेतृत्व नहीं चाहता है। संभाग बनाने की मांग को पुरजोर कोशिश में तब्दील नहीं कर पाने का मलाल आम जनता को भी है कि हमने आखिर कैसा नेतृत्व चुन लिया जो कि जिले को संभाग बनाने की बजाय और एक तहसील कम कर दी गई है फिर भी कोई चु की आवाज नहीं निकली। जिला छोटा कर दिया गया। वजूद कम कर दिया गया जबकि रतलाम शहर का नाम प्रदेश, देश में ही नहीं दुनिया में ख्यात है सोना, साड़ी, सेंव और सेवाओं के लिए। मगर अब तो मन मसोसकर ही बैठना पड़ेगा क्योंकि जन नेता केवल अपने ओहदे और पद के लिए ही दौड़ लगा रहे हैं, अपने शहर के लिए नहीं। कहां मंदसौर, नीमच, अलीराजपुर को रतलाम में जोड़कर संभाग बनाने की मंशा थी। इससे साफ जाहिर होता है कि डींगे हांकने वाला नेतृत्व कुछ नहीं कर पाएगा।

जीतना तो दूर टिकट मिल जाए वह भी गनीमत

रतलाम ग्रामीण क्षेत्र के भी यही हालात हैं मास्टर साहब साढ़े चार साल तक तो अपनी राजनीति में मस्त रहे। कद और काठी के गुरुर में मतदाताओं को भूल गए। ग्रामीण क्षेत्र से आने वाले अधिकांश लोगों का यही कहना है कि हालात बद से बदतर हो रहे हैं। आमजन मूलभूत सुविधाओं को मोहताज है। सरकारी योजनाओं को अपने नाम कर वाहवाही लूटने के लिए जतन कर रहे हैं। दबी जबान में तो मास्टरजी, जनप्रतिनिधि बन गए, लेकिन जन के भीतर तक नहीं जा पाए, नतीजतन आसपास रहने वाले तो यही कह रहे हैं कि कितने ही हाथ पैर मार ले, जीतना तो दूर टिकट मिल जाए वह भी गनीमत है।

अब तो जिम्मेदारों को चाहिए ढीट बने रहने का अवार्ड

मुख्यमंत्री हर दिन पानी देने की घोषणा कर गए, कई बार उनको वादे याद भी दिलाए, जब जब मुख्यमंत्री रतलाम आए, लेकिन 1 दिन जल प्रदाय का रिकॉर्ड भी तोड़ दिया अब तो 2 दिन में जल प्रदाय होने लगा है। व्यवस्था बद से बदतर हो रही है फिर भी लालसा यही है कि हम फिर से सरकार बनाएंगे। ऐसा संभव है कि तथाकथित जिम्मेदार 15 अगस्त पर जिला स्तरीय समारोह में ढीट बनने का अवार्ड भी हांसिल कर लें। क्योंकि देने वाला भी श्री भगवान और लेने वाला भी श्री भगवान। इसमें क्या कर लेगा आवाम? गत सोमवार को ही टी एल की बैठक में शामिल होने आए नगर निगम के जिम्मेदार बैठक छोड़कर आरसीएस में चाय की चुस्की लेते भी नजर आए 12:30 बजे।

सीसी रोड पर छोटे छोटे छोटे छोटे डाबरे

नई नवेली सीसी रोड पर डाबरा भरे हुए हैं। सीमेंट धुल गई है गिट्टी नजर आने लगी है। बाजना बस स्टैंड के पीछे बनी सीसी रोड तो ऐसा लग रहा है जैसे विशेष डिजाइन करके बनाई गई हो ताकि छोटे छोटे छोटे छोटे छोटे डाबरे नजर आए। सीसी रोड पर कीचड़ की भरमार है। सफाई व्यवस्था तार तार है। पैलेस रोड की सीसी रोड का डिवाइडर दुर्घटनाओं को आमंत्रण दे रहा है। उसके सरिए बाहर निकले हुए हैं घटना हुई और शरीर में घुस गए तो मौत बिलकुल मिलेगी, यह दावा जिम्मेदार कर रहे हैं, अब मर्जी आपकी है। क्योंकि उन्हें किसी की फिक्र नहीं है।

जहां उनकी है चाहत, वहां खोल रहे हैं वे दुकाने

हर आम और खास के जुबान पर इन दिनों एक ही चर्चा चल रही है कि शहर में पुलिस और प्रशासन नाम का कोई अमला है या नहीं, क्योंकि मनमानी हद दर्जे की हो रही है, जहां चाहो वहां अंडा मांस मटन की दुकानें धड़ल्ले से खुल रही है। इसके साथ ही सब्जी, फल, फर्नीचर सहित अन्य वस्तुएं बेचने वाले भी लोग सड़कों पर फैले हुए हैं। यातायात प्रभावित हो रहा है। लोग परेशान हो रहे हैं जिधर देखो उधर इनकी बदबू। निकलना दुश्वार हो रहा है मगर पुलिस और प्रशासन इस ओर ध्यान देने को तैयार नहीं है। ऐसा लगता है कि मानो इन्हें खुली छूट दे दी है। पहले तो यह सभी मोहल्ला विशेष में ही अपना कारोबार करते थे लेकिन अब शहरभर में जहां मन चाहे वहां पर सड़कों पर मांसाहारी वस्तु में बेचते हुए नजर आ रहे हैं। चार ओर नेटवर्क मजबूत हो रहा है। क्या शहर की शांत फिजा में अशांति कर जहर घोलने की तो तैयारी नहीं हो रही है? यह विचारणीय और चिंतनीय है।

एक समारोह ऐसा भी

किसी सेवानिवृत्त व्यक्ति का इतना बेहतरीन, जानदार, शानदार प्रभावी आयोजन पहली बार नजर आया, जहां पर पर्यावरण प्रेमी के सम्मान में आत्मीयजनों ने पौधे भेंट किए। यहां तक की मनी प्लांट की बेल की माला पहनाई। यहां बात हो रही है शहर के पर्यावरणविद बैंक में साढे 39 साल की सेवा देने के उपरांत सेवानिवृत हुए नरेश सकलेचा जी की। सैकड़ों लोग हाथों में शाले लिए हुए खड़े थे लेकिन उन्होंने स्वीकार नहीं किया, उन्हें केवल पौधे से ही लगाव है। मंच पर सैकड़ों पौधे एकत्र हो गए। आमंत्रण पत्र में उनका आह्वान भी था कि उपहार में कुछ भी नहीं चाहिए “आप अपने घर के आस-पास पौधा लगाइए। पर्यावरण को बेहतर बनाइए।” मिलनसार, आत्मीय, सरल, सहज व्यक्तित्व के धनी श्री सकलेचा जी का सम्मान, अभिनंदन करने के लिए लाइन लगी रही। घंटों तक सम्मान चलता रहा। देखने वाले तो यही कहने लगे कि ऐसा सम्मान तो किसी जननेता का भी नहीं हुआ होगा, वाकई में व्यक्तित्व ऐसे ही निखर कर सामने आता है जो केवल पर्यावरण को बेहतर बनाने की दिशा में अनवरत संकल्पित है। उन्होंने साबित कर दिया कि सम्मान खरीदा नहीं जाता, सम्मान जनता से ही मिलता है।

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