धर्म, संस्कृति : पारसी समाज आस्था के साथ मना रहा है नववर्ष “नवरोज”

नवरोज से पारसी समाज में नए साल की शुरुआत

हरमुद्दा
आज पारसी समुदाय नवरोज यानी नए साल का जश्न मना रहा है। नवरोज को पारसी न्यू ईयर भी कहा जाता है। पारसी समुदाय के लोगों के लिए नवरोज का पर्व आस्था का प्रतीक माना जाता है। इस दिन को पारसी समुदाय के लोग हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। जिस तरह से हिंदू समाज में चैत्र माह से नए साल कि शुरुआत होती है, ठीक उसी तरह नवरोज से पारसी समाज में नए साल का शुरुआत होती है।

नवरोज दो पारसी शब्दों नव और रोज से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है- नया दिन। यानी कि नवरोज के त्योहार के साथ पारसी समुदाय के नए साल की शुरुआत होती है। इस दिन से ही ईरानी कैलेंडर की भी शुरुआत होती है। पारसी समुदाय के नव वर्ष को पतेती, जमशेदी नवरोज, नौरोज़ और नवरोज जैसे कई नामों से जाना जाता है।

5 दिन होते हैं गाथा के

अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार वैसे तो एक साल में 365 दिन होते हैं, लेकिन पारसी समुदाय के लोग 360 दिनों का ही साल मानते हैं। बाकी साल के आखिरी पांच दिन गाथा के रूप में मनाए जाते हैं। यानी इन पांच दिनों में परिवार के सभी लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं। नवरोज का उत्सव पारसी समुदाय में पिछले तीन हजार साल से मनाया जाता रहा है।

राजा जमशेद की याद में मनाया जाता है उत्सव

मान्यताओं के अनुसार पारसी समुदाय के लोग नवरोज का पर्व फारस के राजा जमशेद की याद में मनाते हैं। कहा जाता है कि करीब तीन हजार साल पहले पारसी समुदाय के एक योद्धा जमशेद ने पारसी कैलेंडर की स्थापना की थी। ये भी कहा जाता है कि इसी दिन ईरान में जमदेश ने सिंहासन ग्रहण किया था, उस दिन को पारसी समुदाय में नवरोज कहा गया था। तब से आज तक लोग इस दिन को नए साल के रूप में मनाते हैं।

यह सब होगा उत्सव में

नवरोज के दिन पारसी परिवार के सभी सदस्य सुबह जल्दी उठकर तैयार हो जाते हैं। इस दिन खास पारंपरिक पकवान बनाए जाते हैं, जिन्हें पारसी लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ बांटते हैं। इसके अलावा वो इस दिन एक-दूसरे के प्रति सहयोग और प्रेम व्यक्त करने के लिए आपस में उपहार भी बांटते हैं। इसके अलावा पारसी समुदाय की मान्यताओं के अनुसार इस दिन राजा जमदेश की विशेष पूजा-अर्चना करने से परिवार में सुख और समृद्धि बढ़ती है।

अगियारी में होगी प्रार्थनाएं

इस दिन घर की साफ-सफाई करके घर के बाहर रंगोली बनाई जाती है। साथ ही पारसी लोग चंदन की लकड़ियों के टुकड़े घर में रखते हैं। ऐसा करने के पीछे उनकी ये मान्यता है कि चंदन की लकड़ियों की सुगंध हर ओर फैलने से हवा शुद्ध होती है।इस दिन पारसी मंदिर अगियारी में विशेष प्रार्थनाएं होती हैं। लोग मंदिर में जाकर फल, चंदन, दूध और फूलों का चढ़ावा देते हैं। साथ ही उपासना स्थल पर चन्दन की लकड़ी अग्नि को समर्पित की जाती है। प्रार्थनाओं के दौरान लोगों ने पिछले साल उन्होंने जो कुछ भी पाया, उसके लिए ईश्वर के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। मंदिर में प्रार्थना समाप्त होने के बाद समुदाय के लोग एक-दूसरे को नववर्ष की बधाई देते हैं और जश्न मनाते हैं।

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