धर्म संस्कृति : अहम नहीं अदद करो, मद नहीं मदद करो
⚫ उपाध्याय प्रवर श्री जितेश मुनिजी मसा ने कहा
⚫ प्रवचन में मानव शरीर के सदुपयोग की सीख
हरमुद्दा
रतलाम, 02 सितंबर। मानव का शरीर के साथ एक्सपायरी डेट लगी रहती है, इसलिए एक्सपायर होने से पहले इस शरीर का सदुपयोग कर लेना चाहिए। मनुष्य खान-पान की चीजों और दवाईयों का तो एक्सपायरी डेट आने से पहले बेहतर उपयोग करना जानता है, लेकिन शरीर का एक्सपायरी डेट नहीं समझता। जाति, कुल, धन आदि आठ प्रकार के अहंकार में मनुष्यता भूल जाता है। इसका परिणाम अगले भवों में भोगना पडता है। इससे बचने के लिए जीवन में अहम नहीं, अदद करो और मद नहीं, मदद करो के सूत्र का पालन करना चाहिए।
यह बात उपाध्याय प्रवर श्री जितेश मुनिजी मसा ने कही। परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा की निश्रा में अभ्युदय चातुर्मास के प्रवचन के दौरान उन्होंने मानव शरीर का सदुपयोग करने की सीख देते हुए अहंकार के दुष्परिणामों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उपाध्यायश्री ने कहा कि अहंकारी को कुदरत सजा दिए बिना नहीं रहती। अपने जीवनकाल में वह कितने ही लोगों को दुखी करता है, पीडा पहुंचाता है और संताप देता। संतप्त रदय से निकली हाय कभी खाली नहीं जाती। इसलिए हर व्यक्ति को विचार करना चाहिए कि अहंकार से वशीभूत होकर उसने क्या-क्या किया है। इस भव में नही ंतो अगले भव में उसका फल भोगना ही पडेगा।
उपाध्यायश्री ने कहा कि परमात्मा हर व्यक्ति को योग्यता के साथ भेजता है, लेकिन जो दूसरे की योग्यता को नजरअंदाज कर अनादर और दुव्र्यवहार करता है। दूसरे के अस्तित्व को नकारता है, उसका अस्तित्व नकारा जाता है। कर्मसत्ता कहती है कि अहंकार से वशीभूत होकर किए गए कार्यों से नीच गौत्र का बंध होता है। यदि कोई अहंकार में अंधा होकर जीता है, तो भविष्य में अंधा बनता है। मैं और मेरा सुख से बाहर आकर दूसरों का दुख सुनने की इच्छा नहीं रखने वाला बहरा बनता है और जुल्म के खिलाफ नहीं बोलने वाले को कर्मसत्ता गूंगा बना देती है।
संसार की अमानत है मानव शरीर
उपाध्यायश्री ने कहा कि मानव शरीर संसार की अमानत है। इसकी कितनी भी चिंता करो, अंत में ये शमशान की राख ही बनेगा। मानव जीवन के महत्व को भूलकर जो मद में डुबे रहते है, उन्हें उसका परिणाम भोगना ही ंपडता है। दादागिरी कर भय दिखाने वाले के भी कई जन्म भय में निकलते है। ऐसा व्यक्ति पहले जन्म में चूहा बनकर बिल्ली के भय में दूसरे जन्म में सांप बनकर नेवले और मोर के भय में और तीसरे भव हिरण बनकर शेर के भय में और चैथे भव में घर की सबसे छोटी बहू बनकर परिवार के भय में रहने को विवश होता है।
मासक्षमण पूर्ण
उन्होंने कहा कि मनुष्य का भव मानव से महामानव बनने के लिए मिला है। इसमें योगी नहीं, तो मानव मात्र के लिए उपयोगी बनो, अन्यथा लूला-लंगडा, गूंगा-बहरा बनना पडेगा।प्रवचन के आरंभ में विद्वान संत श्री रत्नेशमुनिजी मसा ने संबोधित किया। महासती श्री इन्दु्रप्रभाजी मसा ने व साध्वी मंडल ने तप अनुमोदना में स्तवन प्रस्तुत किए। इस मौके पर महासती मोहकप्रभाजी मसा ने 30 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण कर मासक्षमण पूर्ण किया। इस दौरान सैकडों श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहे।