संवेदनशीलता –“लघुकथा”–
“संवेदनशीलता”
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लैपटॉप पर खटपट करते किसी रेलयात्री ने खरीदी मिनरल वॉटर बॉटल को खिड़की से बाहर उछाल दिया।
किसी परिवार ने मूंगफली के छिलके कूपे में बिखेर दिए। बच्चों ने टॉफ़ी के रैपर्स डिब्बे में फेंक दिए।
ऊपर की बर्थ पर लेटे किसी यात्री ने पानी का पाउच पंखे पर रखना चाहा जो नीचे बैठे लैपटॉप चला रहे यात्री पर जा गिरा। पाउच का अपने उपर आ गिरना इन श्रीमान को असहनीय हो गया और उन्होंने कमेंट प्रारम्भ कर दिए।
ट्रेन के सफर में हुई यह चिकचिक बच्चों ने घर पर आ बताई।
पाउच तो भूल से गिर गया था जिससे बखेड़ा खड़ा हुआ। बिखेरे जा रहे छिलकों या रैपर्स पर किसी को कोई एतराज न था। चलती गाड़ी से पानी की खाली प्लास्टिक बोतल को खिड़की से बाहर फेंक फैलाए प्रदूषण के प्रति संवेदनशीलता कहीं दिखलाई नहीं दे रही थी। पानी की बोतल और उसमें भरे पानी की कीमत में उसे हर कहीं फेंक देने का हक़ तो उन्हें भी नहीं मिला था।
मैं सोच रहा था प्रवृत्तियों पर नियंत्रण के बारे में…..। विदेशों की तरह दंडात्मक प्रावधान लागू होने का जैसे इंतज़ार है हमें?? क्या यात्री भाड़े में “सफाई कर” के रूप में पृथक से वसूली की अवधारणा की मानसिकता है इसके पीछे कहीं??? ……
✍ राजेश घोटीकर
रतलाम