विचार सरोकार : … तो श्रीमद् भगवत गीता वहीं कुरुक्षेत्र के मैदान में प्रकट हुई होती और वही विलुप्त भी
⚫ धन्य हैं धृतराष्ट्र और संजय
⚫ सरोज शर्मा
आध्यात्मिक ज्ञान का प्रमुख धर्म ग्रंथ महाभारत हैं। हम सभी जानते हैं कि विश्व के सभी आध्यात्मिक ग्रंथों का तत्वज्ञान महाभारत में समाहित है। स्वर्गारोहण पर्व में महाभारतकार वेदव्यास ने स्वयं घोषणा की है-
धर्मे अर्थे च काम च मोक्षे च भरतर्षभ।
यदिहस्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न कुत्रचित्।।
अर्थात् धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के विषय में जो कुछ भी महाभारत में कहा गया है, वही अन्यत्र है। अर्थात् दूसरे ग्रंथों में भी वही कहा गया है। जो इसमें नहीं है, वह कहीं नहीं है ।
ऐसे तत्वज्ञान का नवनीत ( मक्खन ) भगवद्गीता है, जहां जीवन के चारों पुरुषार्थों का समन्वय- रूप परिलक्षित होता है।
महाभारत युद्ध कुरुक्षेत्र के मैदान में लड़ा जा रहा था। युद्ध के 10 दिन बीत चुके हैं भीष्म घायल हो चुके हैं। भीष्म के घायल हो जाने की खबर पाकर धृतराष्ट्र युद्ध से लौटे संजय से युद्ध का पूरा वृतांत जानने की इच्छा से जो प्रश्न कर रहे हैं, वही भगवद्गीता के प्रथम अध्याय का प्रथम श्लोक है।
प्रभु वाणी पहुंची उनकी बदौलत
हम सब तक भगवान श्री कृष्ण की वाणी भगवद्गीता के रूप में पहुंची है, तो उसका श्रेय धृतराष्ट्र एवं संजय को ही है, हम सभी तक प्रभु वाणी पहुंची नहीं होती। जैसा कि पहले उल्लेख किया जा चुका है कि युद्ध शुरु हो चुका था और युद्ध के 10 दिन भी बीत चुके थे , पर कहीं भगवद्गीता की चर्चा नहीं हुई थी। युद्ध के प्रारंभ होने के पहले भगवान की वाणी प्रस्फुटित हो चुकी थी, जिसे केवल अर्जुन ने सुना था। वेदव्यास द्वारा प्राप्त दिव्य – दृष्टि से युक्त संजय उस धर्ममय -संवाद को सुन चुके थे।
धन्य हैं धृतराष्ट्र और संजय
यदि धृतराष्ट्र ने पूछा नहीं होता, तो संजय भी युद्ध के प्रारंभ के पहले की घटना को बतलाया नहीं होता। श्रीमद् भगवत गीता वही कुरुक्षेत्र के मैदान में प्रकट हुई होती और वहीं विलुप्त भी हो गई होती। पर धन्य हैं धृतराष्ट्र और संजय। धृतराष्ट्र के प्रश्न करने के कारण और संजय द्वारा उत्तर दिए जाने के कारण ही श्रीमद् भगवत गीता हमें धरोहर के रूप में प्राप्त हुई है।
जय श्रीमद् भगवत गीता जय सनातन धर्म