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शख्सियत : रामायण और महाभारत के स्त्री पात्रों पर केंद्रित डोलन राय की अनूठी कविताएं

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“भारत में महिलाओं की स्थिति कई वर्षों से बहस और चिंता का विषय बनी हुई है। हाल के वर्षों में प्रगति के बावजूद, देश में महिलाओं को आज भी मानसिक एवं शारीरिक प्रताड़ना का शिकार होना पड़ रहा है। भारत में महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में अनेक प्रयास हुए हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा, और आर्थिक अवसरों में सुधार के उद्देश्य से कई कार्यक्रम लागू किए गए हैं, लेकिन यह अपर्याप्त हैं और अभी भी बहुत कुछ किया जाना चाहिए।”

नरेंद्र गौड़

’हमारे देश में आज और अतीत काल में भी महिलाओं की हालत बहुत खराब रही है। रामायण और महाभारत में अनेक महिला पात्रों ने घोर विपत्ति का सामना करते हुए जीवन यापन किया है, लेकिन कवियों ने उनकी पीड़ा को उजागर करने के बजाए महिमा मंडन ही किया है। भले ही वह वाल्मीकि हों या तुलसीदास ही क्यों न हों।


यह बात जानी मानी कवयित्री डोलन राय ने चर्चा में कही। इनका मानना है कि ’खासकर दूर दराज के देहातों में औरतें पिछड़ेपन की शिकार हैं, जहां उन्हें पुरूषों की सत्ता के अधीन रहकर गुजारा करना पड़ रहा है। देश में आए दिन महिलाएं बलात्कार की शिकार हो रही हैं। मणिपुर की घटनाएं दिल दहलाने वाली हैं, और खेद है कि सत्ताधीशों के कान पर जूं तक नहीं रैंगती! स्त्री की रम्य चारूता से मुग्ध ये समाज उसके बाहरी आवरण पर ही अटक जाता है! वह स्त्री रूपी मूलसत्व को नहीं समझ पाता, उसके मन का भाव अंतराल, मनोवैज्ञानिक अवस्था, उसकी पृष्ठभूमि सूक्ष्म से विराट तीव्र वृत्तियों को जानने का प्रयास भला कौन करेगा?’
इनका मानना था कि ’भारत में महिलाओं की स्थिति कई वर्षों से बहस और चिंता का विषय बनी हुई है। हाल के वर्षों में प्रगति के बावजूद, देश में महिलाओं को आज भी मानसिक एवं शारीरिक प्रताड़ना का शिकार होना पड़ रहा है। भारत में महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में अनेक प्रयास हुए हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा, और आर्थिक अवसरों में सुधार के उद्देश्य से कई कार्यक्रम लागू किए गए हैं, लेकिन यह अपर्याप्त हैं और अभी भी बहुत कुछ किया जाना चाहिए। आश्चर्य तो तब होता है तबकि सत्तापक्ष ही कई बार अपराधियों का पक्ष लेने लग जाता है, यदि ऐसा नहीं होता तो महिला पहलवानों को अभी तक कभी का न्याय मिल चुका होता! न्याय तो दूर उन्हें अपने पदक तक लौटाकर विरोध दर्ज कराना पड़ा है। देश में आज भी अपराधी तत्वों की फोटो जाने माने राजनेताओं ही नहीं प्रधानमंत्री को माला पहनाते हुए वायरल हो रही हैं। यह नग्न सच्चाई है।’

रचनाकार अंधभक्त नहीं हों

अपनी रचना प्रक्रिया को लेकर एक सवाल के जवाब में डोलन जी का कहना है कि ’चाहे धर्म हो इतिहास हो उसे सहज मान लेना अंधभक्ति है। तर्क से दिव्य प्रकाश में झांकने का प्रयास निराकार के साकार रूप को आकृष्ट करता है। तब काव्य अपने सुंदर रूप में दिखने लगता है। तब चिंतन के सार्वभौम सत्य से मनोमुग्ध सत्य पूछने लगता है कि क्या यह सत्य है? या केवल कल्पना! काव्य के मानव चरित्र काल्पनिक हो सकते हैं। लेकिन स्वयं मानव नहीं।  ये काव्य के चरित्र इसी प्रकार वर्तमान में हस्तक्षेप व हस्ताक्षर करते रहे हैं और करते रहेंगे। काव्य के चरित्र हमारे ही तो भाव हैं, समय का भी अपना एक स्वभाव है।’

डोलन राय का परिचय

डोलन राय जनसंपर्क, पत्रकारिता और मनोविज्ञान में स्नातक हैं। इनका मूल निवास रायपुर, अम्बिकापुर (सरगुजा)  छत्तीसगढ़ है लेकिन स्थाई निवास औरंगाबाद महाराष्ट्र है। इन्हें बचपन से ही किताबों से बेहद लगाव रहा है, खासकर कविताएं कहानियां पढ़ती रही हैं। इनकी अनेक रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। खासकर कादम्बिनी, दैनिक भास्कर, नवभारत टाइम्स, हस्ताक्षर, वेव मैगजीन, साहित्य स्पंदन, दैनिक लोकजंग। इसके अलावा कई रचनाएं आकाशवाणी के अम्बिकापुर तथा औरंगाबाद केंद्रों से भी प्रसारित हो चुकी हैं। समाज को विस्तृत फलक पर समझने के लिए कवि कर्म के गहन दायित्व को समझकर कुछ लिखा जाए सदा से ही इनका ऐसा प्रयास रहा है। कविता के विनम्र प्रस्ताव से तीव्र विरोध की स्थिति को समझते हुए।  लोक चेतना और लोक सौंदर्य से सराबोर उत्कर्षपूर्ण कविता कैसे लिखी जाए इसे लेकर लगातार इनके मन में छटपटाहट बनी रहती है। इसके अलावा इनकी रचनाएं जन-जन तक किस प्रकार पहुंचे इसे लेकर भी बेचैनी बनी रहती है। इनके तीन कविता संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। इनमें ’आंदोलित होता देवालय’, ’श्मशान वैराग्य’, और ’शतरूपा’ शामिल हैं। यहां उल्लेखनीय है कि डोलन राय ने अपनी अनेक कविताओं का विषय रामायण तथा महाभारत के महिला पात्रों को बनाया है। उनके इस अनूठे कार्य की व्यापक सराहना भी हो रही है।


चुनिंदा कविताएं

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देवयानी

हे विदुषी!
ज्ञान को सर्वश्रेष्ठ मानकर
कच का प्रेम
ययाति का प्रमेय
एक-एक को पहचानकर
नर्मदा की भांति दिशा विपरीतकर
विद्या के प्रति अनंत प्रीतकर
स्वर्णपुष्प जैसी अहंकारी देवयानी
शर्मिष्ठा की सखी देवयानी
अक्षत पिता शुक्राचार्य
असुरों के आचार्य
ज्ञान के विवेक व्दार में
प्रश्न किए खड़ी हठी देवयानी
कोई मन की पीड़ा जान न ले!
उसका रोम-रोम संकल्प से
भरा था, उसकी बुध्दि से
चतुर छल भी डरा था
वो अमूल्य निधि
एक विधि परम मेघावी
प्रतिनिधित्व करती हुई देवयानी!

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शाकल्य देवी

( यह एक अद्भुत विदूषी महिला थी। जो कि महाराज अश्वपति की पत्नी थी। वन में निवास करते हुए उसने कन्याओं के लिए सर्वप्रथम गुरूकुल स्थापित किया था।)
उचित शिक्षा
उपेक्षा अपेक्षा
प्रयोगवादी समाज का गठन
नारी के हाथ में ही सफल संगठन
मिला निर्वाजन का अधिकार
जिनके पिता थे महान
मिला विस्तार
प्रथम मिला
वेदों की ज्ञाता
स्त्री शिक्षा की प्रणेता
योज्ञता सदा मान्य है
नारी प्रथमा है
प्रथम शिक्षिका मां है।

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श्रुतकीर्ति

(श्रुतकीर्ति रामायण में स्त्री धैर्य की प्रतीक है, वह शत्रुघ्न की पत्नी होने के साथ ही कर्तव्य परायण महिला है और उनके प्रत्येक निर्णय में संस्कार झलकता है)
धैर्य अपार
सिध्दांतों के ऊपर करे विचार
चित्त में चैत्य जिनके
अमूल्य को पहचाना उसने
सोचती है
वो शुभ-अवसर आए कैसे?
मूक सत्य
झूठ शपथ पत्र से निभाए कैसे?
मन में ज्ञान का सूरज उदय हुआ
सदा समय कर्मठ पर सदय हुआ
शत्रुघ्न मग्न
श्रुतकीर्ति के बुध्दि दीप्त नयन
स्वार्थ से दूर
कर्तव्य से भरपूर
कुल मर्यादा के अनुगत
सदा रही सहमत
संयुक्त ध्वनि
निनाद मणि
पूर्णता की ओर अग्रसर
सुना नहीं कभी किसी ने
विरोध का स्वर
शांत रही सदा
बनकर प्रण प्रखर
ना चाहा कभी कोई अवसर।

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शतरूपा

(ऐसा कहा जाता है कि शतरूपा संसार की प्रथम स्त्री थी। इनका जन्म ब्रह्मा के वामांग से हुआ था)
हे शतरूपा!
मातृस्वरूपा
मनु की उपनिता
हे निजकृता! ऐ
प्रकृति की अभिव्यक्ति
नवनीता, सूर्य, चंद्र जिसके रत्न
आरंम्भ रचने के लिए ना
जाने कितने यत्न विभासित
प्रकाशित!
सत्य नवजात स्वप्न ही रह जाता
प्रशांत हृदय में
रसाल स्तुति कौन गाता?
शून्य भी अरूप होता
कितना कुरूप होता
यदि शतरूपा न होती
मूर्छित जड़ वृक्ष न बन पाते
शाखाएं-प्रशाखाएं कैसे
विस्तार पाते?
मूल ही न होता
तो क्या होता?
सभी शतरूपा की संतान हैं
सनातन जिसका नाम है।

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