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कृतित्व से व्यक्तित्व का स्मरण : शब्दों की विविधता रचती है कविता

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आशीष दशोत्तर

” धीरे-धीरे जड़ पकड़ता है ज्ञान,
धीरे-धीरे आती है समझ
कि हाशिया छोड़कर लिखने से
ख़ूबसूरत होती है इबारत
कि कोई अकेला नहीं
एक पूरा कारवां तय करता है मंज़िल
कि एक या एक से शब्द नहीं,
शब्दों की विविधता रचती है कविता ।”

उक्त पंक्तियों को रचने वाले कवि, अनुवादक और भाषाविद डॉ जयकुमार ‘जलज’ आज यदि होते तो अपनी इन पंक्तियों को साकार होता हुआ देखते ।
अमूमन किसी रचनाकार को उसके व्यक्तित्व के साथ याद रखा जाता है मगर भाषाविद डॉ. जयकुमार ‘जलज’ को उनके कृतित्व के साथ आज याद किया गया।

विगत 15 फरवरी को दिवंगत हुए डॉ. जलज का आज शोक निवारण था । उनकी साहित्यिक विरासत की संरक्षक दोनों पुत्रियों श्रीमती श्रद्धा घाटे और श्रीमती स्मिता जैन और समस्त परिजनों की सोच को शोक निवारण सभा में हर कोई सराह रहा था।

डॉ. जलज के चित्र के समीप उनकी 21 पुस्तकें प्रदर्शित की गई थीं । यह किसी रचनाकार को याद रखने का, उन्हें उनकी कृतियों के साथ अमर बनाने का अद्भुत प्रयास था। जलज जी अक्सर कहा करते थे कि ” रचनाकार को अपनी अभिव्यक्ति में ईमानदार होना चाहिए । उसे यह मानकर रचना करना चाहिए कि कभी ना कभी समय उसका मूल्यांकन करेगा । यह आवश्यक नहीं कि यह मूल्यांकन तत्काल हो या वर्षों के बाद, लेकिन इतना अवश्य है कि रचनाकार का रचना कर्म कभी व्यर्थ नहीं जाता । वह सदैव उसके साथ बना रहता है।”

शनिवार को शोक निवारण सभा में उनका यह कृतित्व सभी की दृष्टि से गुज़रा। उपस्थितजनों ने इन कृतियों को अपनी नज़रों से देखा । कुछ ने उन्हें छूकर भी जलज जी के शब्दों को महसूस करने की कोशिश की । एक रचनाकार का स्मरण बेहतर हो ही नहीं सकता।

पुनः जलज जी की स्मृतियों को नमन

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