साहित्य सरोकार : मनुष्यता की रक्षा का स्त्री पक्ष उपेक्षित

प्रो. रतन चौहान ने कहा

जनवादी लेखक संघ द्वारा स्त्री विमर्श आयोजित

“महिला आंदोलन और लेनिन की नसीहतें” का हुआ विमोचन

हरमुद्दा
रतलाम, 24 जून। वैश्विक और भारतीय परिदृश्य में आज भी आधी आबादी उपेक्षित है । महिलाओं को अधिकार प्रदान करने के साथ वैचारिक स्तर पर भी सम्मान की आवश्यकता है। पुरुष प्रधान मानसिकता ने स्त्री को समाज में ही नहीं घर में भी उपेक्षित किया हुआ है , जबकि मनुष्यता की सर्वाधिक रक्षा स्त्री ही कर रही है । स्त्री के इस उपेक्षित पक्ष पर चिंतन आवश्यक है।


यह  विचार वरिष्ठ कवि एवं अनुवादक प्रो. रतन चौहान ने जनवादी लेखक संघ, रतलाम द्वारा आयोजित स्त्री विमर्श में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि हमारा सामाजिक ताना-बाना एक महिला के अवदान के बगैर अधूरा है। एक महिला न सिर्फ़ अपने घर परिवार को संभालती है बल्कि हमारे सामाजिक मूल्यों की रक्षा करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ऐसे में उसे दोयम दर्जे का मानना अनुचित है । राजनीतिक स्तर पर भी महिलाओं को आज भी संघर्ष करना पड़ रहा है । आवश्यक अनुपात में महिलाओं को आज भी जनप्रतिनिधित्व नहीं प्रदान किया जा रहा है। इसके पीछे सिर्फ़ हमारी मानसिकता ही ज़िम्मेदार है । दुनिया में महिलाओं के अधिकारों और उनकी भूमिका को लेकर वर्षों से चिंता व्यक्त की जा रही है किंतु धरातल पर महिलाएं आज भी पीड़ित और शोषित हैं । कुछ महिलाओं की उपलब्धियों से समूचे समाज की महिलाओं की प्रगति को नहीं आंका जा सकता है । इसके लिए ज़मीनी स्तर पर महिलाओं के दुःख दर्द को समझते हुए उन्हें सम्मान दिए जाने की जरूरत है ।

आज भी हर मोर्चे पर महिला कर रही संघर्ष

भोपाल से आए लेखक जसविंदर सिंह ने कहा कि महिला आंदोलन को लेकर एक सदी पहले लेनिन ने जो चिंताएं व्यक्त की थी वे आज भी हमारे सामने मौजूद हैं । उन्होंने अपनी पुस्तक का संदर्भ देते हुए कहा कि महिला आंदोलन का एक गौरवशाली इतिहास रहा है। आज भी हर मोर्चे पर महिलाएं ही संघर्ष कर रही हैं । इस परिस्थिति के लिए कहीं न कहीं हम सभी ज़िम्मेदार हैं।

समस्या पर महिला ढाल, सुविधा पर धकेलते  पीछे

संचालन करते हुए युवा साहित्यकार आशीष दशोत्तर ने कहा कि किसी भी समस्या के सामने आज भी महिलाएं ही ढाल बनकर खड़ी होती हैं और सुविधा की बात आती है तो महिलाओं को पीछे कर दिया जाता है । पानी के लिए नलों पर लंबी कतारें लगाने वाली महिलाएं होती हैं । किसी शराब खाने का विरोध करने वाली महिलाएं होती हैं । किसी समस्या के समाधान के लिए आवाज़ उठाने वाली महिलाएं होती हैं मगर जब इन समस्याओं का समाधान होता है तो फोटो खिंचवाने में पुरुष वर्ग आ गया जाता है। महिलाओं की इस उपेक्षा  और भूमिका पर भी हमें चिंतन करना चाहिए।

पुस्तक का किया विमोचन

सभा में जसविंदर सिंह द्वारा लिखी और श्रीमती कृष्णा चौहान की स्मृति में प्रकाशित पुस्तिका “महिला आंदोलन और लेनिन की नसीहतें” का विमोचन किया गया। जनवादी लेखक संघ के अध्यक्ष रणजीत सिंह राठौर ने कार्यक्रम की भूमिका प्रस्तुत की। अतिथियों का स्वागत सचिव सिद्दीक़ रतलाम में किया। आभार वरिष्ठ रंगकर्मी युसूफ जावेदी ने व्यक्त किया।

इनकी उपस्थिति रही

कार्यक्रम में वरिष्ठ रंगकर्मी ओम प्रकाश मिश्रा, चिंतक विष्णु बैरागी,  साहित्यकार नरेंद्र सिंह पंवार,  सतीश जोशी, इंदु सिन्हा , कला डामोर,  गीता राठौर , अकरम शेरानी, पद्माकर पागे, प्रकाश हेमावत, हरिशंकर भटनागर,  श्यामसुंदर भाटी, सुभाष यादव, दुर्गेश सुरोलिया, मांगीलाल नगावत, अनीस ख़ान, सत्यनारायण सोढ़ा, सुनील व्यास, कैलाश सोनी, जितेंद्र सिंह पथिक, हीरालाल खराड़ी, चरणसिंह चौधरी, राजेंद्र जोशी, मुकेश सोनी सहित सुधिजन मौजूद थे।

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