आंखों देखी : रतलाम का सौभाग्य और लॉ के भी स्टूडेंट का दुर्भाग्य,  जुलाई में लागू हुए नए कानून पर हुआ राष्ट्रीय सेमिनार, मगर लॉ कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए नकार

हेमंत भट्ट

इसे तो रतलाम का सौभाग्य ही माना जाएगा कि जुलाई में नए कानून लागू हुए और राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित करने का अवसर डॉ. कैलासनाथ काटजू विधि महाविद्यालय को  मिला, मगर यह भी दुख के साथ बताना पड़ रहा है कि राष्ट्रीय सेमिनार में इसी महाविद्यालय में पढ़ने वाले करीब 450 लॉ के विद्यार्थियों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण साबित हुआ। आयोजकों ने लॉ के विद्यार्थियों को सेमिनार से नकार दिया। वजह थी केवल राशि वसूलने की। खास बात यह है कि मध्य प्रदेश के कैबिनेट मंत्री के शहर में ही नहीं अपितु लॉ कॉलेज संचालित करने वाली रतलाम एजुकेशनल सोसाइटी के अध्यक्ष चैतन्य काश्यप की नाक के नीचे यह सब हुआ। समापन समारोह के अतिथि सेवानिवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश तो लॉ कॉलेज की प्राचार्य को कह गए कि विद्यार्थियों की कमी नजर आई, विद्यार्थियों से आप,  हम और महाविद्यालय  हैं,  ध्यान रखिएगा।

उल्लेखनीय है कि डॉक्टर कैलासनाथ काटजू विधि महाविद्यालय का संचालन रतलाम एजुकेशनल सोसाइटी के बैनर तले हो रहा है समिति का पंजीयन 5 मई 1964 को किया गया है। पंजीयन क्रमांक 560 है, तब से अब तक विधि महाविद्यालय का संचालन बिना किसी शासकीय सहयोग से किया जा रहा है, ऐसा कहते हैं।

कैबिनेट मंत्री के अध्यक्षता में हुई बैठक में लिया था निर्णय राष्ट्रीय सेमिनार करने का

पूरे देश में 1 जुलाई 2024 से आईपीसी (IPC), सीआरपीसी (CRPC) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह तीन नए कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनिमय लागू हो गए। तीन नए कानूनों में त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए प्राथमिकी (FRI) से लेकर फैसले तक को समय सीमा में बांधा गया है। इन्हीं नए कानून को लेकर रतलाम एजुकेशनल सोसाइटी के अध्यक्ष एवं प्रदेश के एमएसएमई मंत्री चेतन्य काश्यप की अध्यक्षता में  बैठक हुई। बैठक में नए कानूनों पर जन जागरूकता के लिए राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन करने का निर्णय लिया गया था। रतलाम के डॉक्टर कैलासनाथ काटजू विधि महाविद्यालय में 20  एवं 21 जुलाई 24 को किया गया। कई राज्यों के लॉ के विशेषज्ञ राष्ट्रीय सेमिनार में शामिल हुए। मगर देखा जाए तो आयोजन की सार्थकता कहीं सिद्ध होती नजर नहीं आई। वजह साफ है कि विधि महाविद्यालय के विद्यार्थी ही राष्ट्रीय सेमिनार में शामिल नहीं हो सके। पुष्ट जानकारी के अनुसार लॉ कॉलेज के विद्यार्थियों से ही सेमिनार में शामिल होने के लिए ₹1000 प्रवेश शुल्क रखा गया था। जिसे बाद में ₹400 कर दिया गया लेकिन विद्यार्थियों का यही कहना था कि जब हम इसी कॉलेज में पढ़ रहे हैं तो फिर हमसे राशि की वसूली क्यों? यही कारण था कि शुभारंभ समारोह में भी शहर के सुधिजन सहित सोसाइटी के मेंबर व अन्य लोग मौजूद रहे। “चुनिंदा विद्यार्थी भी थे जो कि ऊंट के मुंह में जीरे के समान थे।

आयोजकों की हठ धर्मिता से वंचित रहे लॉ के विद्यार्थी

बस यही वजह रही की राष्ट्रीय सेमिनार में लॉ विद्यार्थी नदारत रहे और जिनका कोई लेना-देना नहीं था, वहां पर मौजूद रहे। यहां सेमिनार लॉ के विद्यार्थियों के लिए तो वरदान साबित होने वाला था मगर वे वंचित रह गए तो सिर्फ आयोजकों हठ धर्मिता के चलते। यदि बात आयोजन के खर्चे की है तो रतलाम एजुकेशनल सोसाइटी के अध्यक्ष महोदय से ही कह दी जाती तो  वह 2 दिन के भोजन का खर्च स्वयं वहन कर लेते। वह मना भी नहीं करते और देशभर से आए लोग व्यंजनों का लुफ्त तो उठाते ही लॉ कालेज के विद्यार्थी नए कानून के ज्ञान से लबरेज हो जाते।

शहर के अभिभाषक भी नहीं आए नजर

शहर में ही लगभग 800 से अधिक अभिभाषक हैं जो कि जिला न्यायालय में अपने ज्ञान का लोहा मनवाते हैं। वह भी राष्ट्रीय सेमिनार से महरूम रहे। लगता है मैनेजमेंट उन तक नहीं पहुंच पाया, वरना सैकड़ो अभिभाषक तो ऐसे हैं जिनकी खासी चर्चा होती है। उनको प्रकरण देने से ही अभिलाषी समझते कि हम अवश्य जीत हासिल करेंगे। ऐसी हस्तियां भी राष्ट्रीय सेमिनार का हिस्सा नहीं बन पाई। और ना ही बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष या पदाधिकारी यहां पर नजर आए। जबकि कई पूर्व पदाधिकारी अभी भी सक्रिय हैं। इससे तो यही बात स्पष्ट होती है कि राष्ट्रीय सेमिनार जिम्मेदारों ने हल्के में ले लिया। होमवर्क नहीं किया गया। वरना इस सेमिनार की चर्चा एक मिसाल बन जाती।

उनकी हुई आव भगत

बाहरी राज्यों से विधि के विशेषज्ञों को शहर के बेहतरीन होटल में दो दिन रुकवाया।  उनकी आव भगत की, जिसमें काफी खर्च किया, खैर वह तो आतिथ्य सत्कार परंपरा में शामिल है, मगर देखा जाए तो  सारा का सारा खर्चा निरर्थक ही है, क्योंकि लॉ विद्यार्थी ही आयोजन का हिस्सा नहीं बन  पाए। तो भला  आयोजन सार्थक कैसे हो सकता है? क्योंकि आयोजन में वे लोग ही  मौजूद रहे जो अपने आप को अग्रिम पंक्ति का मानते हैं या फिर स्वयं को दिखाने में अपनी समझदारी मानते हैं। ऐसे लोगों को सेमिनार की गंभीरता से कोई लेना-देना नहीं था। यह सब 2 दिन के छाया  चित्रों से पता चल जाता है।

विद्यार्थियों से ही आप, हम और हैं यह महाविद्यालय

इतना ही नहीं राष्ट्रीय सेमिनार के समापन अवसर पर सेवानिवृत्त प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश एसके चौबे आए। आयोजन में उनको विद्यार्थियों की कमी उनको भी खली। समापन के पश्चात हाई टी के बाद जब कॉलेज का स्टाफ वाउचर पर उनके हस्ताक्षर करवा रहा था क्योंकि कुछ राशि उन्हें दी जाना थी, जिसे उन्होंने सिरे से नकार दिया और कहा कि मेरे पास भगवान का दिया हुआ सब कुछ है। इस राशि को मैं नहीं लूंगा।  इस राशि से गरीब विद्यार्थियों को पुस्तक देना। उसमें राशि खर्च करना, मगर गरीब हो, जो किताबें नहीं खरीद पाता है, समझ गए। वाउचर पर उन्होंने लिखा भी। और यह भी कहा कि विद्यार्थियों की कमी अच्छी बात नहीं है। विद्यार्थियों से ही आप और हम हैं यह महाविद्यालय है। उनका मंतव्य स्पष्ट है कि प्राचार्य की विद्यार्थियों की अनुपस्थिति में अहम भूमिका रही है। वरना वे समिति के सचिव सहित अन्य को भी यह बात बताते, लेकिन उन्होंने केवल प्राचार्य को ही कहा।

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