शख्सियत : खरी कविताओं को लगातार चलन से बाहर कर रही खोटी कविताएं, श्रेष्ठ कविता हमें करती है संस्कारित
⚫ कवयित्री खुदेजा खान का कहना
⚫ नरेंद्र गौड़
‘एक श्रेष्ठ कविता हमें संस्कारित करती है। कवि वस्तु जगत की क्रिया प्रतिक्रियाओं, घटनाओं का विवेकवान दृष्टा होता है। घटनाओं में जीता हुआ भी वह घटनाओं की पृष्ठभूमि में झांकता है-कार्य कारण संबंध को समझता है। इस समस्त प्रक्रिया में कवि की रचना दृष्टि महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह करती है। आज खोटी कविताएं खरी कविताओं को लगातार चलन से बाहर कर रही हैं।’
यह बात आधुनिक अतुकांत कविताओं की प्रतिष्ठित रचनाकार तथा संपादक ख़ुदेजा ख़ान ने हरमुद्दा चर्चा में कही। इनका मानना है कि श्रेष्ठ कवि सकारात्मक क्षमता विकसित कर लेता है। कार्य- व्यापार, क्रिया प्रतिक्रियाओं से एक सामान्य व्यक्ति की तरह गुजरते हुए भी वह उनसे तटस्थता भी बनाए रखता है। इसलिए वह वस्तुजगत को पूर्णता में व्यक्त करता है, उसको विभिन्न परतों को, विभिन्न आयामों में उद्घाटित करता है, वह वस्तु जगत को एक स्थाई रूप में नहीं देखता।
साहित्य में आलोचकों का अभाव
एक सवाल के जवाब में खुदेजा खान का कहना था कि आज हिंदी साहित्य में आलोचकों का बहुत अभाव है। वहीं बेहतर पाठकों की भी कमी है। किताबें धड़ल्ले से छप रही हैं, पत्र-पत्रिकाओं की भी कोई कमी नहीं है, लेकिन कौन पढ़ रहा है? यह सवाल जब पूछा जाता है तो रचनाकार अपना मुंह लटका लेता है। इंटरनेट की दुनिया ने फेसबुक जैसा एक ऐसा प्लेटफार्म ला दिया है, जहां रचनात्मक क्षमता से संपन्न लोगों को एक बेहतरीन मंच मिला है। आज कोई भी रचना, फोटो, पेंटिंग आपने फेसबुक पर सुबह डाली कि शाम तक लाइक्स और कमेंट का ढ़ेर लग जाएगा, जबकि चालीस-पचास बरस पहले ऐसा नहीं था। पहली बात तो यह कि पत्र-पत्रिकाएं मसलन धर्मयुग, कादम्बिनी, साप्ताहिक हिंदुस्तान जैसी पत्रिकाओं का अपना स्तर था। इनमें छपना आसान भी नहीं था, बीसियों बार कोई रचना भेजने के बाद एक दो छप जाती थी, लेकिन कुछ ही रचनाएं छपते ही वह लेखक प्रसिध्द हो जाता था। महाकवि निराला का पहला कविता संकलन तब छपा जबकि उनकी उम्र तीस साल पार कर चुकी थी। इसी तरह मुक्तिबोध का पहला कविता संकलन ’चांद का मुंह टेढ़ा है’ तब छपा जब वह मृत्यु शैया पर थे।
छपने की सुविधा से रचनाओं का अवमूल्यन
यह पूछे जाने पर कि छपने की सुविधा के कारण रचनाओं का अवमूल्यन नहीं हुआ?’ इस पर खुदेजा खान का कहना है, हुआ है। आप फेसबुक खोलकर देखिए बहुत खोजने के बाद ही कोई बेहतरीन कृति मिलेगी, वरना कचरा कविताओं, कहानियों से पूरी पोस्ट भरी मिलेगी। आज खोटी कविताओं के कारण बेहतरीन और सशक्त कविताएं चलन से बाहर हो चुकी हैं।
सुंदर चेहरे के साथ कविता प्रस्तुति
एक सवाल के जवाब में खुदेजा खान का कहना था कि फेसबुक पर हर दूसरी तीसरी महिलाओं में अपना सुंदर चेहरा प्रस्तुत करने की होड़-सी मची है। इनमें से बहुत सी औरतें तो शर्म को ताक पर रखकर नाचते-ठुमकते हुए रील बनाकर फेसबुक के हवाले कर रही हैं। पता नहीं यह सब इनके पति-बच्चे और रिश्तेदार कैसे बर्दाश्त करते होंगे। कविता को अपने सुंदर थोबड़े के साथ अगर नहीं डाला तो कविता कोई कमजोर तो नहीं हो जाती न! आज ऐसे आलोचकों की सख्त जरूरत है जो कि ऐसे फेसबुकीय लेखकों की आलोचना करे। होता यह है कि चिकनी सूरत वाली लेखिकाओं की तारीफ में भाई लोग मेंढ़क की तरह वाह वाह की रट लगाने लगते हैं। यहां तक कि लाइक्स और कमेंट्स का आंकड़ा सौ की संख्या को भी पार कर जाता है, जबकि पुरूष लेखक की रचनाओं को अंगुली पर गिने जाने लायक पाठक मिलते हैं। अनेक बार उन्हें अपने मित्रों से अनुरोध तक करना पड़ता है कि आज मैंने एक रचना पोस्ट पर डाली है, जरा देखना!
वर्ष 1985 से लिखना प्रारंभ
जगदलपुर (छत्तीसगढ़) में रह रही खुदेजा खान का जन्म भोपाल में हुआ। हाई स्कूल तक शिक्षा मध्यप्रदेश के विभिन्न शहरों में हुई। इन्होंने बीएससी करने के बाद हिंदी तथा संस्कृत में स्नातकोत्तर की कक्षाएं उत्तीर्ण की हैं। कविता सहित साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखन कार्य वर्ष 1985 से प्रारंभ किया। उल्लेखनीय है कि पारिवारिक परिवेश प्रगतिशील होने के कारण मुस्लिम होने के बावजद इन्हें शिक्षा से लेकर साहित्य लेखन में भी दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा।
अनेक पुस्तकों का प्रकाशन
खुदेजा खान की पांच किताबें छपकर चर्चित हो चुकी हैं। इनमें वर्ष 2001 में छपा गजल संग्रह ’सपना-सा लगे’, वर्ष 2014 में प्रकाशित कविता संकलन ’संगत’, वर्ष 2018 में प्रकाशित ऊर्दू नज्म संग्रह ’आबगीना’, वर्ष 2021 में छपा हिंदी-ऊर्दू रचनाओं का साझा संकलन ’फिक्र ओ फन’ शामिल हैं। ’सुनों जरा’ शीर्षक से इनका एक और संकलन न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन दिल्ली से छपा है। ’वनप्रिया’ त्रैमासिक पत्रिका की आप सहसंपादक भी हैं। इसके अलावा आप ’साहित्य सारांश’ अंतरराष्ट्रीय ई पत्रिका की संपादक है। बहुत कम समय में यह पत्रिकाएं साहित्य के पाठकों में लोकप्रिय हो गई हैं। खुदेजा खान पुस्तक समीक्षा भी करती हैं। हाल ही में इन्होंने बलराम गुमास्ता की चयनित कविताओं के संकलन की सशक्त समीक्षा लिखी है जो भोपाल के ’वनमाली कथा अंक’ जुलाई 2024 में प्रकाशित हुई है।
खुदेजा खान की कविता के आयाम
इनकी कविता साबित करती है कि कला प्रकृति सादृश्य नहीं होती है, क्योंकि वह पुनर्रचना है और मनुष्य की चेतना उसमें समाहित हो जाती है। कला में प्रयोगों का निषेध नहीं किया जा सकता किंतु प्रयोग परिवर्तित परिवेश की संवेदना की अभिव्यक्ति के लिए उपयुक्त कलारूप व शैली की खोज के लिए किया जाता है। इनकी कविताएं स्पष्ट पारदर्शी और गहरे अर्थ वाली होती हैं। कविता लिखने के पीछे गहरा अभ्यास और संवेदना देखी जा सकती है।
चुनिंदा कविताएं
सौंदर्य के प्रतिमान
सौंदर्य के प्रतिमान
नए संदर्भों में
गढ़ लिए हैं स्त्रियों ने
स्वाभिमान व स्वावलम्बन
धारण कर लिया है
आभूषण की तरह
सिध्द कर दी है
स्वयं सिध्दाओं ने
सामाजिक परिदृश्य में
अपनी उपस्थिति
आत्म सम्मान की
ठोस और सुदृढ़ रीढ़
अब झुक नहीं सकती
उसके पास है
अनंत आकाश तक
आशाओं का परचम
लहराने की अदम्य शक्ति।
गुमनाम
हे! श्रमजीवी तुमने
पहरों आंखों को थकाकर
हाथों को व्यस्त रखा
कामों में
चित्त को लगाए रखा
एक ही जगह एकाग्र होकर
कि कहीं चूक न हो जाए
एक-एक नगीना तराशकर
स्वर्ण की जालीदार
नक्काशी में जड़ते रहे
और बनाया एक खूबसूरत ताज
देखो अब यह ताज
सजा है पूंजी के सर पर
ऐसे देख रहा है तुम्हें
जैसे कि पहचानता नहीं।
मैली हो गई चादर
शिशु रूप में पैदा हुआ मनुष्य
निश्छल और अबोध
सफेद चादर की तरह
जीवन यात्रा में
मैली होती गई चादर
संघर्ष की मिट्टी में सनी
नफ़रत के दाग लगे
ग्लानि के धब्बों से दागदार हुई
किसी ने रंजिश में
रक्त रंजित किया
कोई धोखे का रंग डालकर
कर गया बदरंग
कोई दुखों की चादर ओढ़े
घूमता रहा जीवन भर
कट्टरपंथियों ने धर्म की
चादर को बना
लिया ओढ़ना बिछौना
अंततः मैली होने से
बच न सकी मनुष्यता की चादर।
मां में एक स्त्री को देखा
अडिग स्तंभ सी खड़ी
अपने पक्ष पर अड़ी
अनगिनत दम तोड़ती
इच्छाओं की देह से
सहेजती- चुनती उन
भावनाओं को जिनकी
चल रही थी अब भी सांसें
इन्हें जीवित रखने का संकल्प
देखा उसकी भाव भंगिमा में
बालिका, युवती, स्त्री
तीन रूपों के दमन की छाया ने
जिस वृक्ष को फलने फूलने न दिया
उसे ही सींचकर
हरा भरा रखने का दृढ़ निश्चय
एक स्त्री के हृदय में पहते देखा
मैंने मां में एक स्त्री को देखा।