खरी खरी : राजनीति की राह में जिनके लिए बिछाए फूल, वही बन गए हैं अब शूल, जिम्मेदारों की दिव्य दृष्टि, नहीं दिखती अतिक्रमण की सृष्टि, नौटंकी जिम्मेदारों की, आमजन को मिल रही बीमारी

हेमंत भट्ट

राजनीति की राह में जिनके लिए स्वार्थियों ने फूल बिछाए थे, वही फूल अब उनके लिए शूल बन गए हैं। रतलाम में हर कोई जिम्मेदार केवल नौटंकी बाज नजर आता है। बाजारों में पसरा अतिक्रमण, मिठाई नमकीन सहित अन्य  खाद्य वस्तुओं की दुकानों पर मनमानी, सेहत से खिलवाड़ हो रहा है। कार्रवाई  पहले होनी चाहिए,  ताकि त्यौहार की सीजन में ऐसे गैर जिम्मेदार व्यापारियों की दुकानों पर ताले लगाए जा सके। जिम्मेदारों को बाजारों में कुछ भी नजर नहीं आता। यही वजह है कि आम लोगों को जिम्मेदारों की नौटंकी के चलते परेशानी और बीमारी ही मिल रही है। सब के सब  भ्रष्टाचार की भांग पीए हुए हैं। समझ में नहीं आता है कि आखिर जो सब अपने थे, वह गांधी दर्शन में बेगाने क्यों हो गए है?

अब तो यही लगता है कि रतलाम नगर का ग्रह नक्षत्र ही खराब है। सरकार चाहे पक्ष की हो या विपक्ष की रतलाम के लोगों को परेशानी ही मिलना है। या यह भी कह सकते हैं कि जिम्मेदार जनप्रतिनिधि धीरे-धीरे मक्कारी के मार्तंड हुए जा रहे हैं। बाजार में सरेआम चर्चा है कि विधायक से कैबिनेट मंत्री बनने के बाद का जो सफर शुरू हुआ वह रतलाम वासियों के लिए और भी परेशानी का सबक बन गया है। भाजपा के पहले के मंत्री हो या अभी के  शहर की ओर जरा भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है। लाभ हो रहा है तो केवल समाज विशेष के अल्पसंख्यक लोगों का ही जो कि बड़े-बड़े धन्ना सेठ बने हुए बैठे हैं।

फुंकार की हुंकार ने कर दी सांस ऊपर नीचे

जब विधानसभा चुनाव हुए थे, तब जग जाहिर हो गया था कि आदिवासी अंचल की सीट कांग्रेस न जीत जाए, इसके लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया। दूसरे के स्वागत में फूल वालों ने न केवल फूल बिछाए, अपितु तन, मन, धन से सहयोग भी किया। नतीजा सामने है अब जिनको दूध पिलाया, अब फुंकार रहे हैं, उन्हीं को डसने को तैयार है।  यही सृष्टि का नियम भी है। भले ही आप मतदाताओं को नजरअंदाज कर दो,  मगर जनप्रतिनिधि तो किसी के सगे नहीं होते  हैं, चाहे वह किसी भी पार्टी के हो। आदिवासी अंचल के विधायक ने फुंकारकर  हुंकार भर दी है। निवेश क्षेत्र के दर्जनों गांव के सैकड़ो आदिवासी एकजुट होकर कलेक्ट्रेट में घण्टों प्रदर्शन किया, उनका नेतृत्व सैलाना से बाप पार्टी  विधायक कमलेश्वर डोडियार ने किया। निवेश क्षेत्र काम बंद करने की मांग कर डाली है। अब देखना है कि यह मांग किस मांग पर संपन्न होती है। प्रदर्शन के बाद से ही निवेश क्षेत्र में पूंजी लगाने वालों की सांस ऊपर नीचे हो गई कि अब क्या होगा?

हास्यास्पद लगती है उनकी कार्रवाई

प्रदेश का सबसे साक्षर शहर रहे  रतलाम में ऐसे गैर जिम्मेदार भी अधिकारी क्यों मिलते हैं? आज तक यह समझ में नहीं आया। नौटंकीबाज अधिकारियों के कारण ही शहर बद से बदत्तर स्थिति में जा रहा है, मगर कोई ध्यान देने को तैयार नहीं है। पुलिस कप्तान ने भले ही हर सड़क पर यातायात  सुधारने पहल की, मगर उनके ही अपने कर्मचारी ही गांधी दर्शन में शहर की यातायात व्यवस्था को खराब करने के लिए दृढ़ संकल्पित है। अतिक्रमणकारियों  के कब्जे से फुटपाथ को मुक्त करने का माद्दा आईएएस और आईपीएस अधिकारियों में भी नहीं है।  विभागीय अमले ने फुटपाथ तो व्यापारियों को सौगात के रूप में दे दी है। आम पब्लिक पैदल कहां चले?  यह कोई नहीं सोच रहा है। सबसे हास्यास्पद बात तो यह लगी कि चार दिन पहले शहर के व्यस्ततम 5 मार्गो की यातायात व्यवस्था सुधारने के लिए अमला निकला,  मगर हैरत की बात यह है कि केवल पांच जगह ही इनको अस्थाई अतिक्रमण नजर आया। जबकि अधिकांश दुकानदार पार्किंग लाइन के यहां तक सामान रख रहे हैं तो फिर आमजन अपने वाहन की पार्किंग कहां करेंगे?  दुकानदारों के लिए भी लाइन तय करनी चाहिए कि वह इसके आगे नहीं निकलेंगे। उनके  सामान से पार्किंग व्यवस्था खराब होती है तो ऐसी दुकानों को भी महीने के लिए सील कर दिया जाना चाहिए। और बोर्ड लगाना चाहिए फोटो सहित कि  इन्होंने आमजन को परेशान करने का ऐसा कृत्य किया,  इसलिए प्रशासन ने दुकान सील की है। अधिकारियों की दिव्य दृष्टि के कारण ही अतिक्रमण की सृष्टि को बढ़ावा देने वालों की कार्रवाई हास्यास्पद ही नजर आती है।  श्रीमालीवास में गली पर बोर्ड लगा था, उसे हटाकर सोचा कि हमने बहुत बड़ा काम कर दिया। तीर मार दिया है, मगर  शहर में तमाम कई जगह है, जहां पर परेशानियां खड़ी हुई है, मगर उसकी ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं।

कर दिया प्रस्ताव पारित विभिन्न मुद्दों को नजर अंदाजकर

यह बात शत  प्रतिशत सही है कि वर्तमान नगर निगम परिषद शहर में अतिक्रमण को बढ़ावा देने के लिए ही कार्य कर रही है और लोगों को परेशान किया जा रहा  है। सड़कों पर ठेला गाड़ी खड़ी करने के लिए बिना  यातायात पुलिस, वाहनों का बढ़ता दबाव, सहित अन्य कई मुद्दों को नजर अंदाजकर बिना  परामर्श किए  ही प्रस्ताव पारित कर दिया।  न यातायात विभाग से पूछा और नहीं किसी अन्य से की क्या करना चाहिए? इस कार्य में एमआईसी सदस्य सहित पार्षद और  कमिश्नर भी जिम्मेदार हैं। इन्होंने प्रस्ताव पास किया और सड़कों पर फल बेचने वाले सामान बेचने वाले सीना तान के खड़े हो गए। नतीजतन  चारों ओर यातायात जाम हो रहा है।  मिनटो के काम में घंटे लोग फंस रहे हैं। धुएं से लोग बीमार हो रहे हैं। आम लोगों की परेशानी के ऐसे दौर में व्यापारी हंसते रहते हैं।

मिठाई वाले प्लास्टिक और गत्ते  के डिब्बे बेच रहे हैं 500 से 1000 रुपए  किलो में

खाद्य सामग्री के कारण ही सबकी सेहत खराब हो रही है मगर प्रदेश सरकार का जिम्मेदार खाद्य विभाग हर जिले में एक परीक्षण प्रयोगशाला भी स्थापित नहीं कर पाया ताकि हाथों हाथ रिपोर्ट मिले और संबंधित के प्रति कार्रवाई हो। कार्रवाई भी ऐसी हो कि  तीन-चार महीने दुकान पर ताले लगा दिए जाएं। सील लगा दी जाए, तभी इन पर मिलावट खोरी पर असर होगा।  लोग उन दुकानों  से सामान खरीदना छोड़ दें मगर ऐसा कोई उद्देश्य खाद्य विभाग का नहीं है।  खाद्य विभाग के अधिकारी दुकानों पर जाते हैं। बैठते हैं, नमूना सामान ले जाते हैं। उसके बाद क्या-क्या होता है? वह तो पब्लिक भी जानती है।  काफी मात्रा में चाहे दूध पकड़ने की कार्रवाई हो या फिर छोटी-मोटी दुकानों पर तेल, नमकीन,  मिठाई पकड़ने की रस्म अदायगी।  कहीं कोई असर होता, नजर नहीं आता। आमजन ऐसे ही दुकानों से सामान खरीद रहे हैं और बीमार हो रहे हैं। जबकि होना यह चाहिए कि त्योहार के पहले ही ऐसी दुकानों को चार या 6 महीने के लिए बंद करना चाहिए जो मिलावट खोरी का सामान बेच रहे हैं। लोगों की सेहत से खिलवाड़ कर रहे हैं। इतना ही नहीं मिठाई और नमकीन के साथ 500 और 1200 रुपए किलो में प्लास्टिक और गत्ते के डिब्बे बेच रहे हैं। जिम्मेदार उन फल व सब्जी विक्रेताओं पर कार्रवाई  करता है जो कि सब्जी या फल तोलने के बाद में पॉलिथीन में सब्जी फल भर कर देते हैं। सेवा वे दे रहे हैं।

आमजन सुविधा व सेहत के लिए हो रहे कंगाल और कंकाल

इतना ही नहीं स्वास्थ्य भी अब बोल रहा है कि औसत आयु अब 45 से 50 वर्ष हो गई है जबकि यह बात नहीं बताते कि उनकी मक्कारी के कारण ही औसत आयु कम हो रही है। लोग गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं।  इन सब का कारण  हानिकारक खाद्य पदार्थों का उपयोग ही है। मगर सबको करोड़पति, अरबपति बनना है। बलात्कार और हत्या के आरोपियों से भी खतरनाक सजा ऐसी भ्रष्टाचारियों और मिलावटियों को दी जाना चाहिए, जबकि ऐसा है नहीं। लाखों  करोड़ों का भ्रष्टाचार करने के बाद होता क्या है केवल निलंबन। ज्यादा चार छह महीने की सजा और क्या?  मालामाल हो गए, आमजन सुविधा व सेहत के लिए हो रहे कंगाल और कंकाल। ऐसे ढीले लचीले नियम कानून कायदे किस काम के।

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