शख्सियत : कविताओं के जरिये अब होने लगा अनेक बीमारियों का इलाज, लंदन में खुल चुकी ’पोयम फार्मेसी’ भारत में भी हो सकती है शुरुआत
⚫ दीपा शर्मा का कहना
⚫ नरेंद्र गौड़
’कविताओं के जरिए अब तो न सिर्फ मनोरंजन बल्कि विभिन्न बीमारियों का इलाज भी होने लगा है। यह बात सुनने में अजीब भले ही लग सकती है, लेकिन लंदन में ’पोयम फार्मेसी’ खुल चुकी है, जहां उदासी, एंजाइटी, अकेलापन जैसी बुजुर्गों को होने वाली आम बीमारियों का इलाज होने लगा है। जहां कविता सुनने और लिखने से इन रोगों का उपचार किया जा रहा है। दो माह पहले ऐसी फार्मेसी खुली थी, जहां अब बड़ी संख्या में मरीज आने लगे हैं। इस फार्मेसी की संस्थापक डेब अल्मा का कहना है कि कविता के जरिए लोग रोग मुक्त भी हो रहे हैं। भारत में भी ऐसे अस्पताल भविष्य में खुल सकते हैं।’
यह जानकारी हिंदी साहित्य की अद्येता कवयित्री तथा प्राचार्य दीपा शर्मा ने दी। इन्होंने बताया कि ऐसी फार्मेसी में कवि गोष्ठियां भी होती हैं, जहां लोग अपनी और दूसरे कवियों की रचनाएं सुनते- सुनाते हैं। यहां एक लायब्रेरी है, जिसमें कविता के अलावा दर्शन तथा मनोविज्ञान की पुस्तकें उपलब्ध हैें। लोग अपनी और दूसरे कवियों की कविताएं सुनाकर आपस में दोस्ती करते हैें और पहचान का दायरा बढ़ाते हैं। ऐसी फामेंसी में अब तो बूढ़े ही नहीं युवक युवतियां भी आने लगे हैं और कविताएं लिखकर एक दूसरे को सुनाते सुनाते हैं।
कविता लिखना निरर्थक कर्म नहीं
एक सवाल के जवाब में दीपा जी ने कहा कि आमतौर पर भारत में समाज आभिजात्य तबका आज भी यह मानता हे कि कविता लिखना एक निरर्थक किस्म का काम है और यह फालतू लोगों का शगल है, लेकिन अब कविता के क्षेत्र में नई क्रांति होने जा रही है। कविता तुकांत होना चाहिए या अतुकांत? इस सवाल के जवाब में इनका कहना था कि इसी बात को लेकर कवियों के बीच अक्सर बहस होती रहती है। सवाल उठता है कि कौन सी कविता सही और कौन सी गलत है। क्या अतुकांत होना ही कविता की शर्त है? इसे लेकर सभी के अपने-अपने विचार हैं। लेकिन फिर भी उसमें लय या कि फिर गेयता होना चाहिए। यहां ऐसा भी नहीं कि आधुनिक अतुकांत कविता में लय नहीं होती है। उसमें आंतरिक लय होती है, भले ही ऐसी कविता को गाना संभव नहीं हो।
अभिव्यक्ति स्पष्ट और पारदर्शी जरूरी
दीपा जी का मानना है कि काव्य अभिव्यक्ति ऐसी होना चाहिए जो सहज और पारदर्शी तथा आसान हो। वह कविता ही क्या जो किसी को समझ में नहीं आये। अनेक आधुनिक कवि हैं जिनकी कविताएं आसानी से समझ में नहीं आती हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे कवि नहीं हैं। मसलन मुक्तिबोध की कविताएं आसानी से समझ में नहीं आती हैं। उसे समझने के लिए दीमाग पर बहुत जोर लगाना पड़ता है। फिर भी वह हमारे समय के महत्वपूर्ण कवि हैं। आधुनिक कविता जगत में मुक्तिबोध का नाम बहुत आदर से लिया जाता है।
गीत, गजल हांशिये पर
एक सवाल के जवाब में दीपा जी ने कहा कि फूल पत्ती, पौधे, पेड़ चाहे वह घर के आंगन में लगे हों या किसी जंगल में वह रहेंगे पेड़ ही। इसी तरह कविता अतुकांत हो या तुकांत वह रहेगी कविता ही। उनके रूप रंग और खुशबू में जरूर फर्क हो सकता है। यहां एक बात और आधुनिक कविता के इस दौर में तुकांत कविता के साथ ही गीत, गजल जैसी विधा में रची गई रचनाएं हांशिये पर जा रही हैं। आज देश में निकल रही अधिकांश पत्रिकाएं आधुनिक कविता को स्थान दे रही हैं। पहल, नया ज्ञानोदय, कथादेश, प्रेरणा, साक्षात्कार, वर्तमान साहित्य जैसी बीसियों पत्रिकाओं के नाम गिनाये जा सकते हैं जिनमें गीत, गजल का कोई स्थान नहीं है। एक सवाल के जवाब में दीपा जी ने कहा कि कविता भीतरी अनुभूति से उपजती है, यह कहना गलत है। कवि अपने परिवेश से अछूता भला कैसे रह सकता है? कवि अगर किसी देहात में रह रहा है तो उसकी कविता में ग्रामीण स्वर मुखर होंगे।
दस वर्ष लम्बी दीपा जी की काव्य-यात्रा
देश की राजधानी दिल्ली में श्री कृष्णमुरारी शर्मा के यहां जन्मी दीपा शर्मा इन दिनों फरीदाबाद के एक विद्यालय में प्राचार्य के पद पर कार्यरत हैं। इन्होंने बीकॉम, बीएड तथा एलएलबी की परीक्षाएं सर्वोच्च अंकों के साथ उत्तीर्ण की हैं। अपने विद्यालय के शैक्षणिक क्षेत्र में आप अत्यंत लोकप्रिय प्राचार्य हैं। विगत दस वर्षों की काव्य यात्रा के दौरान इनकी रचनाएं अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। राष्ट्रीय स्तर के साझा कविता संकलन ‘हिंदी हैं हम’ में इनकी चुनिंदा रचनाएं छपी हैं। ’सृजन दीप’ में प्रकाशित इनकी कविताओं को पाठकों की बहुत सराहना मिली है।
चुनिंदा कविताएं
समय
समय जो न अच्छा होता है
और ना बुरा
वह तो बस होता है
कैसा है
वह हम पर
निर्भर करता है
निर्भर करता है
हमारे साथ पर
हमारे व्यवहार पर
हमारे ज्ञान पर
तो ना वादे ना यादें
बस जीना है
समय के साथ
समय के बहाव में
मेरे हिस्से का जहाँ
मेरे हिस्से का जहाँ लौटा दो
आकाश तो तुमने छीन लिया
मेरे पंखों को काटकर
अब मेरे कदमों के नीचे की
धरा तो लौटा दो
मुझे मेरे हिस्से का
जहां लौटा दो
उन भागती तितलियों को
पकड़ने को दौड़ना
और आम के बाग से
अमिया को तोड़ना
उस अमिया की खट्टी
मिठास लौटा दो
मुझे मेरे हिस्से का
जहां लौटा दो
संजोये थे रात की
नींदों से चुरा कर
कुछ जागे हुए सपने
उन स्वप्निल रातों की
नींदें लौटा दो
मुझे मेरे हिस्से का
जहां लौटा दो
जख्म जो दिए
मन भर भर कर
मन पर
उन जख्मों की
टीस की आह में
आज तो अपनी आह मिला दो
मुझे मेरे हिस्से का जहां लौटा दो।
कुम्हार की दिवाली
मेरे घर की दिवाली मनाने को
भगवान भी मिट्टी में रंध गए
कस्सी से खोदा
पैरों से रौंदा
हाथों से पीटा
सब चुपचाप सह गए
मेरे घर की दिवाली मनाने को
धूप में सुखाया
अंगारों पे लिटाया
पर मन में फिर
भाव जगाया
मेरी रंगों से सज गए
मेरे घर की दिवाली मनाने को
भगवान भी मिट्टी में रंध गए
और जाते-जाते मुझे
लक्ष्मीवान कर गए।