शख्सियत : जड़ और जमीन से काट कर कविता को कैसे किया जा सकता है अलग?
⚫ कवि त्रिलोक महावर का कहना
⚫ नरेंद्र गौड़
’सिमटती नदियां, कटते जंगल, पिघलते ग्लेशियरों को लेकर कवियों को चिंता क्यों नहीं करना चाहिए? करना चाहिए, क्योंकि यह सभी हमारी जमीन का हिस्सा हैं, उस जमीन का, हम जिस पर रहते हैं, श्वांस लेते हैं। यहीं से हमारी कविता उपजती है और यहीं हमारी नाल गड़ी है। याद रखा जाना चाहिए जिसकी जड़ें कट गईं, उसकी शाखें सूख गईं, उसके पत्ते कभी हरे नहीं रहे। यह कविता है और यही जीवन है। अपनी जड़ और जमीन से काटकर कविता अलग नहीं की जा सकती है।’
यह कहना था भारतीय प्रशासनिक अधिकारी बाद में, लेकिन उसके पहले हिंदी के जाने माने कवि त्रिलोक महावर का। इनके चार कविता संकलन प्रकाशित हो चुके हैं जिसमें से ’नदी के लिए सोचो’ काव्य संग्रह नदियों के लगातार सिमटते जाने की चिंताओं पर केंद्रित है। इनका मानना है कि कविता का वही महत्व है जो शरीर में रक्त संचार का है। यह बीपी बनाए रखती है, कवि को ऊर्जा प्रदान करती है। न तो बढ़ने और न घटने देती है।
जीवन के आयामों की पड़ताल
चर्चा के दौरान श्री महावर ने कहा कि कविता जो कुछ भी दृश्यमान जगत है, उसके भीतर तक जाकर जीवन के विभिन्न आयामों की गहरी पड़ताल करती हैं। यहां उल्लेखनीय है कि श्री महावर की कविता ’सिक्के की आखरी सांस’ बहुत सशक्त रचना है। इस कविता का पाठकों और स्वयं कवि ने भी अनगिनत बार विभिन्न मंचों से पाठ किया है और हर बार यह कविता अर्थवान हो उठी है। यह इनके संग्रह ‘शब्दों से परे’ में शामिल है।
असल रचना की पहचान
श्री महावर का कहना है कि असल रचनाएं आंसुओं से सराबोर, ताजा लहू में डूबी कही जा सकती हैं, जो बार बार काट देने के बाद फिर से बार-बार लिखी जाती हैं। असल कविता बहुत मेहनत के पसीने से सींचकर लिखी और रची जाती हैं। यदि पाठक के पास महसूस करने की क्षमता और संवेदना है तो ऐसी कविता के शब्द-शब्द में उम्मीद की रोशनी हुआ करती है, कहीं-कहीं गहरी हताशा और निराशा के स्वर भी हो सकते हैं।
समय के बाहर जा सकती है कविता
श्री महावर ने बताया कि उनकी एक कविता है-’समय की परखनली में कविता’ जो कि साबित करती है कि कविता समय से बाहर भी जा सकती है और कविता समय से प्रभावित भी होती है। एक सवाल के जवाब में इन्होंने कहा कि कविता जीवन को कितना प्रभावित करती है, जीवन से कविता कैसे प्रभावित होती है, इसकी पड़ताल हम वर्षों से कर रहे हैं। मेरा ऐसा मानना है कि जीवन में कविता शरीर में रक्त संचार के समान है, इसे आप अलग नहीं कर सकते और जब कविता जीवन से जुड़ती है तो वह बहुत प्रभाव डालती है।
सरगुजा विवि के कुलपति रह चुके
जगदलपुर, छत्तीसगढ़ में जन्मे श्री महावर ने वाणिज्य, कानून और हिंदी साहित्य की पढ़ाई के पश्चात महाविद्यालय में अध्यापन किया। आप सरगुजा विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके हैं। आपने ड्यूक यूनिवर्सिटी, अमेरिका, सांसपो, फ्रांस में प्रशिक्षण प्राप्त किया। आपने बस्तर की लोक बोली हल्बी, जनजातीय तथा पर्यावरण, वृक्षारोपण, जलसंरक्षण, कला, पुरातत्व एवं इतिहास के क्षेत्र में गहरा अध्ययन व कार्य किया है।
प्रशासन अकादमी संचालक
बाल कविताएं, संस्मरण, कहानी, लघुकथा लेखन के अलावा पोस्टर्स निर्माण, गायन के क्षेत्र में भी श्री महावर की ख्याति रही है। इनकी रचनाओं का अनेक बार आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से प्रसारण हो चुका है। आप ’वन्या’ तथा ’ज्ञानदीप’ जैसी पत्रिकाओं के संपादक रह चुके हैं। इन दिनों श्री महावर रायपुर (छत्तीसगढ़) में प्रशासन अकादमी के संचालक हैं।
वाक्जाल से परे कविताएं
श्री महावर के छह कविता संकलन प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें विस्मिृत न होना, नदी के लिए सोचो, इतना ही नमक, हिज्जे सुधारता है चांद, शब्दों से परे प्रकाशित एवं चर्चित हो चुके हैं। इनकी कविताओं पर केंद्रित विमर्श की पुस्तक ’कविता का नया रूपाकार’ हाल ही में छपी है। जिसमें अनेक प्रतिष्ठित लेखकों के मंतव्य इनकी कविताओं को लेकर हैं। श्री महावर की बहुत सी कविताएं छोटी और सरल भी हैं, लेकिन उनमें महाकाव्य की आहट महसूस की जा सकती हैं। इनकी याद रखी जाने वाली कविताओं में ’बाटल ब्रश का पेड़’, ’बेजान फाईल,’ ’सिंह व्दार’, ’अस्पताल’, ’मुकद्दम की पड़ोसन’, ’बहुत दिनों से’ शामिल की जा सकती है।
अनेक अलंकरण तथा सम्मान
श्री महावर को अनेक सम्मान से नवाजा जा चुका है जिनमें से प्रमुख हैं-पं. मदनमोहन मालवीय स्मृति आराधक श्री सम्मान नई दिल्ली, अम्बिका प्रसाद दिव्य सम्मान, थानखम्हरिया हिंदी साहित्य सम्मान, बस्तर चेम्बर्स ऑफ कॉमर्स व्दारा सम्मान, घनश्याम मुरारी श्रीवास्तव पुष्प स्मृति शीर्ष सम्मान (साहित्य की बात मप्र) मध्यप्रदेश का कृति सम्मान, पंजाब कला साहित्य अकादमी सम्मान के अलावा हाल ही में इनके कविता संकलन ’नदी के लिए सोचो’ को ’किस्सा कोताह कृति सम्मान’ भी रायपुर में आयोजित समारोह के दौरान प्रदान किया जा चुका है। उल्लेखनीय है कि इस संग्रह का विमोचन सुप्रसिध्द कवि विनोदकुमार शुक्ल ने किया था।
चुनिंदा कविताएं
नदी के लिए सोचो
नदी के लिए सोचो
जो दुबला रही है
दिन-ब-दिन
गहरा रही है
रेत पर उकेरी लकीरें
सूर्य ने बढ़ा दी है
दबिश बचे- खुचे
पानी की धार पर
जून का आखरी
दांव है यह
तमाम प्रलोभनों के बावजूद
दरख्तों ने खींच लिए हैं पांव
पक्षियों की चहचहाहट से
तलाक का भयावह दौर है यह।
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यह भी हो सकता है
सर के ऊपर से
निकलते हुए
कौवे का
पट्ट से नाक पर
बीट कर देना
महज एक हादसा है
दुर्घटना कई शक्ल में
हो सकती है
कविता पढ़ते-पढ़ते
सनक सकता है
कोई आलोचक।
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छाता
धूप हो या
बारिश का मौसम
छाता तानना
लाजमी है
एक आदमी अभी-अभी
गया सामने से
दूसरे आदमी पर
छाता ताने हुए
आजाद मुल्क में।
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मां
कमर झुक गई
मां की फिर भी थकी नहीं
प्यार वैसा ही है
याद है कैसे रोया बचपन में
सुबक-सुबक कर
मां ने पोंछे आंसू
खुरदुरी हथेलियों से
कहानी सुनाते-
सुनाते चुपड़ा ढ़ेर सारा
प्यार गालों पर
सुबह-सुबह रोटी पर
रखा ताज़ा मक्खन
रात में सुनाई लोरियां
मां कभी थकी नहीं।