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मैं फिरोज खान के साथ हूँ
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रतलाम, 22 नवंबर। बड़ी हैरानी की बात है कि बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय के प्रोफेसर डाॅ. फिरोज खान का विरोध केवल इसलिए हो रहा है, क्योंकि वे मुसलमान हैं। विरोध करने वालों में विद्यार्थी ही नहीं हैं,विश्वविद्यालय के प्रोफेसर भी हैं। हमने अपने विश्व- विद्यालयों की क्या दुर्गति कर डाली है। डाॅ.फिरोज खान सब तरह की परीक्षाओं को उत्तीर्ण और जाँचने-परखने के बाद विश्वविद्यालय में संस्कृत के प्रोफेसर नियुक्त हुए हैं। उनके साथ जो व्यवहार हो रहा है , उससे हमारा सिर नीचा हुआ है।

यह देश का दुर्भाग्य

संस्कृत विश्व स्तर की भाषा है । वह कितनी सम्पूर्ण भाषा है, यह यदि हम भारतवासी भलीभांति नहीं जानते , तो यह देश का दुर्भाग्य है। संस्कृत भाषा है , उसे कर्मकाण्ड और हिन्दू धर्म से जोड़ कर हमने पहले ही बहुत हानि उठा ली है। डाॅ. फिरोज खान को विश्वविद्यालय में संस्कृत भाषा पढ़ाने के लिये नियुक्त किया गया है न कि धर्मग्रंथ पढ़ाने के लिए। उनका बहिष्कार कर हम संस्कृत भाषा की विशालता का, उसके वैश्विक मूल्यों का अपमान कर रहे हैं।

पंडितों ने कैद कर रखा है संस्कृत को

वर्ष 1982 में महादेवी वर्मा उज्जैन के विक्रम कीर्ति मंदिर में आई थीं। उन्होंने तब कहा था कि वे विद्यार्थी जीवन में संस्कृत पढ़ने के लिए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय गई थीं। उन्हें वहाँ से इसलिए लौटा दिया गया, क्योंकि वह स्त्री थी , और काशी के पंडितों ने उन्हें विद्यार्थी के रूप में स्वीकार करने से इंकार कर दिया। महादेवी जी ने तब उज्जयिनी में बहुत कटु शब्दों में कहा था कि-“संस्कृत को पंडितों ने कैद कर रखा है”। महादेवी जी ने कितने व्यथित होकर यह बात कही होगी, इसका अनुमान लगाया जा सकता है।

रास्ता दिखाने वाले ये कौन लोग?

आज संस्कृत के विद्वान् फिरोज खान को विश्वविद्यालय से बाहर का रास्ता दिखाने वाले ये कौन लोग हैं? ये वे ही हैं, जो संस्कृत को भाषा के रूप में देखना नहीं चाहते , जो उसे”कूप-जल” की ही तरह रखना चाहते हैं और स्वच्छ नदी की तरह बहते हुए देखना नहीं चाहते।

संस्कृत विद्यार्थी उनकी विद्वत्ता का करें सम्मान

मैं संस्कृत भाषा का विद्यार्थी हूँ । हाँ , स्वीकार करता हूँ कि मैं नैष्ठिक ब्राह्मण हूँ , संस्कृत मेरे पुरखों की भाषा है । मैं संस्कृत के विद्वान् आचार्य डाॅ.फिरोज खान के साथ हूँ । उनकी सारस्वत चेतना का हृदय से सम्मान करता हूँ। अच्छा हो, बनारस विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्यार्थी उनकी विद्वत्ता का सम्मान करें , और उनके ज्ञान के प्रकाश में अपना भविष्य उज्ज्वल करें।

🔳✍ डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला

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