शांति साधनों से नहीं, अपितु साधना से होती है प्राप्त : आचार्यप्रवर विजयराजजी
हरमुद्दा
रतलाम,4 अप्रैल। शांति साध्य है। संयम उसका साधन है। दिनचर्या में जितना संयम नियम सधता है, उतना ही संयम बढता है। संयम से ही शांति प्राप्त होती है। शांति साधनों से नहीं, अपितु साधना से प्राप्त होती है।
यह संदेश जिनशासन गौरव, प्रज्ञानिधि, परम श्रद्वेय आचार्यप्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने धर्मानुरागियों को दिया। वे वर्तमान में सिलावटो का वास स्थित नवकार भवन में विराजित है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में तन के दुख घट रहे है और मन के बढ रहे है। मन के दुखों से घायल व्यक्ति शांति पाना चाहता हैं। उसके लिए हर व्यक्ति को अपनी दिनचर्या में कुछ पुराना छोडना और कुछ नया जोडना होगा। दरअसल शांति के लिए किसी गुफा में जाने की जरूरत नहीं होती, अपितु अपनी दिनचर्या में परिवर्तन लाना पडता है।
आचार्यप्रवर ने दिनचर्या में परिवर्तन के लिए उपाय भी बताए है। उनके अनुसार ब्रम्हबेला में शय्या अर्थात बिस्तर का त्याग,प्रतिदिन योगाभ्यास, नियमित ध्यान, समस्या के प्रति सकारात्मक चिंतन, व्यसनों से परहेज, खानपान में सात्विकता, अर्थ की अंधी दौड में विराम, नियमित सत्संग और स्वाध्याय करके मनुष्य अपने अंदर हीं नहीं, अपितु पारिवारिक और सामाजिक जीवन में भी शांति की स्थापना कर सकता है। उन्होंने बताया कि साधना के लिए व्यक्ति जब समय नहीं निकाल पाता है, तो उसके हाल बेहाल हो जाते है। इसलिए अभी समय है, अपनी दिनचर्या के प्रति जागरूक होकर जीवन जिए, तो शांति उपलब्ध हो सकती है।
जितना करेंगे प्रयास उतनी मिलेगी सफलता
आचार्यप्रवर के अनुसार अशांत मन का शांत हो जाना ही शांति है। इसके लिए जितना अधिक प्रयास किया जाये, उतनी सफलता हासिल होगी। ग्रहस्थ हो, संत हो, अधिकारी हो अथवा कर्मचारी हो, सभी को अपने जीवन में शांति चाहिए। अंशाति की राह पर चलकर शांति की प्राप्ति नहीं हो सकती, इस सत्य को गंभीरता से समझे और शांति के उपायों पर ध्यान दे।
संत व साध्वी मंडल भी विराजित
आचार्यप्रवर के साथ संत एवं साध्वी मंडल भी है। सिलावटो का वास स्थित नवकार भवन में विद्वान सेवारत्न श्री रत्नेशमुनिजी मसा, आदर्श सेवारत्न, तरूण तपस्वी श्री विनोदमुनिजी मसा, विद्वान श्री कौशलमुनिजी मसा, तपस्वी श्री अभिनवमुनिजी मसा, नवदीक्षित श्री विदितमुनिजी मसा, नवदीक्षित तरूण तपस्वी श्री दिव्यममुनिजी मसा आदि ठाणा-7 भी सानंद, सुख,शांतिपूर्वक विराजित है। इसी प्रकार गौतम भवन में आचार्य प्रवर की आज्ञानुवर्तनी तरूण तपस्विनी, परम विदुषी महासतीश्र%8