ग़ज़ल

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उसे पाने को बेघर हो गए हैं
हदों से अपनी बाहर हो गए हैं

रहमदिल कल तलक़ जो भी रहे थे
सुना है सब सितमगर हो गए हैं

मेरे ज़ख्मों पे मरहम के बहाने
तुम्हारे बोल नश्तर हो गए हैं

कभी मिलने नहीं आते हैं ज़ालिम
महज़ वादे मुक़र्रर हो गए हैं

चलो बेनाम निकलो इस नगर से
यहाँ के लोग पत्थर हो गए हैं

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रचनाकार एक परिचय

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🔲 बलजीत सिंह बेनाम

🔲 शिक्षा: स्नातक

🔲 सम्प्रति: संगीत अध्यापक

🔲 उपलब्धियां: विविध मुशायरों व सभा संगोष्ठियों में काव्य पाठ, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित

🔲 विभिन्न मंचों द्वारा सम्मानित
आकाशवाणी हिसार और रोहतक से काव्य पाठ

🔲 पता 103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी, हाँसी, हिसार

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