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कोरोना संकट में आत्मानुशासन की समझ, संकल्प और समयज्ञता पैदा हो : आचार्यश्री विजयराजजी महाराज

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हरमुद्दा
रतलाम,6 मई। भीतर का अनुशासन ही व्यक्ति को अनुशासित रख सकता है। मनुष्य के अंदर जब तक अनुशासन घटित ना हो, तब तक कितने ही कानून बना लिए जाए, व्यवस्था सफल नहीं हो सकती। व्यवस्था चाहे घरेलू हो या सामाजिक, हर व्यवस्था व्यक्ति-व्यक्ति में आत्मानुशासन के भाव से ही मजबूत होती है। कोरोना के इस संकटकाल में आत्मानुशासन की समझ, संकल्प और समयज्ञता पैदा होनी चाहिए। इससे ही व्यवस्था और अवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन आ सकता है।IMG_20200505_180025

यह बात शांत क्रांति संघ के नायक, जिनशासन गौरव, प्रज्ञानिधि, परम श्रद्वेय आचार्यप्रवर 1008 श्री विजयराजजी महाराज ने कही। सिलावटों का वास स्थित नवकार भवन में विराजित आचार्यश्री ने धर्मानुरागियों को प्रसारित धर्म संदेश में कहा कि कानून किसी बुराई को छोडने के लिए दबाव बना सकता है, मगर बुराई के प्रति अरूचि या घृणा का भाव पैदा नहीं कर सकता। ऐसा भाव आत्मानुशासन से ही पैदा होता है। हदय परिवर्तन हो जाना आत्मानुशासन की कसौटी है। यह उन्हीं व्यक्तियों में घटित होती है, जो अपना दूसरों का और सबका हित समझता हों। सही समझ के जागृत होने के बाद आत्मानुशासन के घटित होने में देर नहीं लगती। ऐसा समाज उच्च, शालीन और संस्कारी होता है, जिसमें कानून का प्रयोग कम से कम होता है।

अनुशासन करना आसान है लेकिन अनुशासन में ढालना मुश्किल

आचार्यश्री ने कहा कि आत्मानुशासन व्यक्तित्व में निखार लाता है। इसके बिना व्यक्तित्व विखंडित और कर्तव्य विश्रृंखलित हो जाता है। हर व्यक्ति दूसरों पर अनुशासन करना चाहता है, लेकिन स्वयं को अनुशासन के सांचे में ढालना नहीं चाहता। यह गडबडी सारी गडबडियों को पैदा करने वाली बनती है। पहले स्वयं को अनुशासन में रखेंगे, तभी दूसरों को अनुशासन में रख सकंेगे। व्यक्ति यह बात भूल जाता है कि वह दूसरों पर अनुशासन चाहता है, लेकिन स्वयं पर अनुशासन उसे बर्दाश्त नहीं होता। ऐसी स्थिति में कानूनन उसे अनुशासन में रहना पडता है और यह मजबूरी भी बन जाता है। मजबूरन किसी के अनुशासन में रहना अपनी गरिमा नहीं है। गरिमा तो स्वयं पर स्वयं के अनुशासन में रहने से सुरक्षित रहती है।

जीवन में परिवर्तन से आता है आत्मानुशासन

आचार्यश्री ने कहा कि कानून मात्र प्रेरणा दे सकता है। उसमें हदय बदलने की कोई गारन्टी नहीं होती। उसकी पहुंच केवल बाध्य व्यवस्थाओं तक हो सकती है। आंतरिक पहुंच और परिवर्तन तो आत्मानुशासन ही लाता है। आत्मानुशासन की परिधि में जो प्रारंभ से रहते है, उन्हें कोई शक्ति पराजित नहीं कर सकती। वे अपराजेय व्यक्तित्व के धनी बन जाते है। हदय परिवर्तन की साधना किए बिना कानून, कायदे ज्यादा फायदे नहीं देते। हदय परिवर्तन एक मात्र धर्म की समझ से होता है। धर्म ही मन का समाधान होता है, जो धर्म के मर्म को समझ लेते है, वे स्वस्थ, सुखी और सुरक्षित रहते है। व्यक्ति जहां भी कानून से बचना चाहता है, वहां उसे हदय परिवर्तन के द्वारा दिल में बुराई के प्रति घृणा पैदा कर लेनी चाहिए। इससे कानून अपने आप अकिंचित्कर हो जाता है।

पैसे वाले देर नहीं करते कानून की धज्जियां उड़ाने में

आचार्यश्री ने कहा कि हर युग में कानून निर्धनों व निर्बलों पर शासन करता आया है। जबकि धनी और सबल कानून पर शासन करते आए है। यह सबके लिए विचारणीय है। कानून सब पर समान रूप से शासन करे, तो कानून की महत्ता है, अन्यथा पैसे वाले कानून की धज्जियां उडाने में देर नहीं करते। आत्मानुशासन जिनमें घटित हो जाता है। , वे हर कानून को शिरोधार्य करके उनका पालन करना अपना धर्म समझते है।

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