क्रान्तिपाठ
डॉ. मुरलीधर चाँदनीवाला
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हे धरती ! हे आकाश !
मेरे खून में क्रान्ति भर दो ।
मेरे दिल में , मेरे मस्तिष्क में ,
मेरे चित्त में ,मेरी आत्मा में
क्रान्ति के बीज भर दो ।
ओ बहती हुई नदियों !
मेरे विचारों में क्रान्ति भर दो ,
मेरी आवाज में क्रान्ति भर दो ,
मेरी नसों में , मेरे हाड़-माँस में
क्रान्ति भर दो ,
ओ वनस्पतियों !
क्रान्ति का आह्वान करो ।
ओ बहती हुई हवाओं !
क्रान्ति को बहा कर ले आओ ,
ओ पर्वतों ! पर्वत की चट्टानों !
मुझे अपनी दृढता दो ,
ओ अरण्य की निर्भयताओं !
मुझे निर्भय क्रान्ति का वचन दो ।
मेरी मिट्टी के घड़े में रखे हुए अंगारों !
क्रान्ति का आलेख बाँचो ,
मेरी नसों में बहने वाले रुधिर कणों !
क्रान्ति के जुलूस में चल पड़ो ,
ओ मेरे स्वाभिमान !
भुजाओं में क्रान्ति का लोहा भरो
और आँखों में क्रान्ति की चिन्गारियाँ ।
क्रान्ति की रोटियाँ परोसो मुझे ,
क्रान्ति के गीत सुनने दो कानों को ,
क्रान्ति की पताकाएँ लहराने दो ,
क्रान्ति के यज्ञ में
होने दो समवेत सामगान ,
मेरे समय के अश्व को
क्रान्ति की ताल पर थिरकने दो ।