समाज और राष्ट्र गढ़ने का अनूठा सामर्थ्य होता है कन्या में : आचार्यश्री विजयराजजी महाराज
🔲 शादी नहीं शिक्षा है कन्या का भविष्य
हरमुद्दा
रतलाम,2 जून। कन्या परिवार की खुशी है, दौलत और अस्मिता है। केवल बेटे की चाह रखतेे हुए जो व्यक्ति कन्या के मुक्षि में जन्म ले लेने पर भू्रण हत्या का पाप कर बैठते है, वे ना केवल अपनी कोमलताओं पर कुठाराघात करते है, वरन एक शक्तिशाली समाज की रीढ को तोड देते है। कन्या परिवार की ज्योति है और समाज की शक्ति होती है। प्रगतिशील राष्ट्र की प्रगति में कन्याओं का योगदान कोई कम नहीं होता। कन्या असमर्थता या मजबूरी का नाम नहीं है, उसमें परिवार-समाज और राष्ट्र गढ़ने का अनूठा सामर्थ्य होता है।
यह बात शांत क्रांति संघ के नायक, जिनशासन गौरव प्रज्ञानिधि,परम श्रद्धेय आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी महाराज ने कही। आचार्यश्री ने धर्मानुरागियों को प्रसारित धर्म संदेश में कहा कि कन्या को भारभूत वे ही लोग मानते है, जो व्यक्ति मानसिक दृष्टि से कमजोर और वैचारिक दृष्टि से विकल होते है। कन्या हर कठिन परिस्थिति को झेलने में सक्षम तथा संघर्षों को साहस से और तकलीफों को उत्साह से पार करने में चतुर होती है। कन्या दिल से मजबूत, दिमाग से स्फूर्त और देह से सुकोमल होती है। देह की सुकुमारता प्रकृति प्रदत्त होने के बाद भी वह कठिनाई के क्षणों में अपना शोर्य दिखलाने में नहीं चूकती। रचनात्मक कार्यों में अपने को लगाए रखना कन्याओ की एक निराली विशेषता होती है।
प्रगतिशील समाज और राष्ट्र की शक्ति आज की कन्याएं
आचार्यश्री ने कहा कि कन्या दो कुलों का उजाला होती है। घर में रहते घर को उजालती है और ससुराल में जाने के अपने शील, सत्य, स्वभाव और सदगुणों से ससुराल में उजाला करती है। अब वो समय लद गया, जिसमें कन्या को मजबूरी माना जाता था और परिस्थितियों की बेड़ियों का बंधक माना जाता था। प्रगतिशील समाज और राष्ट्र की शक्ति आज की कन्याएं है। इसलिए यह याद रखा जाना चाहिए कि कन्याओं का भविष्य शादी नहीं शिक्षा है। शिक्षित और संस्कारित कन्या किसी अन्य वरदान से कम नहीं होती।
कन्या को कमजोर करती नारी
आचार्यश्री ने कहा कि आंतरिक दृष्टि से सबल कन्या ही अपनी संतान को सक्षम बनाती है। ठोकर ना लगे इसका ध्यान रखना आवश्यक है, पर चलना बंद कर देना कमजोरी है। कन्या को कमजोर नारी ही करती है, मगर जिस कन्या को साहसिकता की शिक्षा शुरू से प्राप्त होती है, वह कभी अपने में कमजोर नहीं होती। कन्या को मजबूती देने में धार्मिक आस्था का भी महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। धार्मिक क्रिया-प्रक्रियाओं के साथ जीने वाली कन्या का मानसिक एवं आत्मिक पक्ष सबल और सक्षम होता है। वह छोटी-छोटी परिस्थितियों में घबराती नहीं, अपितु उन परिस्थितियों का डटकर मुुकाबला करना उसके जेहन में होता है। कन्या का विचार पक्ष सत्य से ओतप्रोत हो, आचार पक्ष अहिंसा से और व्यवहार पक्ष सापेक्षता के साथ जुडा हो, तो वह कन्या समाज और राष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर बन जाती है। हर कन्या को अतीत से प्रेरणा लेते हुए वर्तमान का निर्माण और भविष्य का विकास करना चाहिए।
कन्या को कमजोर बनाता है स्वार्थ का काला पक्ष
आचार्यश्री ने कहा कि स्वार्थों की दहलीज को लांघने वाली कन्या ही समर्थ होती है। स्वार्थ का काला पक्ष कन्या को कमजोर बनाता है। अनुचित आग्रह और झूठा अहंकार जब कन्या के साथ जुड जाता है, तो वह पंगु बन जाती है। ऐसी स्थिति में वह अपनी कमियों को देख नहीं पाती और उसका प्रगति का मार्ग अवरूद्ध हो जाता है। कई कन्याएं विचार भेद को लेकर असहिष्णु और अधीर बन जाती है, जो उनके जीवन पक्ष को अंधकार पूर्ण बना देता है। सौम्य स्वभाव, करूणाशील हदय, उदार हाथ और सेवाभावी भावना हर कन्या की अनूठी पूंजी होती है, जो उसके पारिवारिक जीवन को अमीर बनाती है। इस पूंजी के साथ जीने वाली कन्या कही कमजोर एवं कायर बनती।