गज़ल से मुहब्बत और गज़ल की बेइंतहा ख़िदमत की चंचलजी ने
🔲 क़लम को स्वाभिमान की तरह धारण करने वाले मेरे गज़लकार बाबूजी हुए दुनिया से विदा
🔲 जितेंद्र राज
साहित्य के नवांकुर विद्यार्थीयों को…. नए कलमकारों को प्रोत्साहित करने वाले, गज़ल की बारीकियां जानने, समझने और सीखाने वाले…. क़लम को स्वाभिमान की तरह धारण करने वाले…. बेबाक होकर अपनी बात रखने वाले….. चंचल जी नश्वर देह से विदा हो गए।
आदरणीय चंचल जी के सान्निध्य में मुझे अनेक बार काव्यपाठ करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मैं उन्हें बाबूजी कहकर संबोधित करता था। बाबूजी ने तमाम उम्र गज़ल से मुहब्बत की और गज़ल की बेइंतहा ख़िदमत भी…..आप एक सच्चे कलमकार और गज़लकार के रूप में हमारे शहर में ही नहीं, अनेक शहरों में सम्मान प्राप्त कर चुके है।
आपसे मेरी पहली मुलाकात सन् 2015 में एक काव्यगोष्ठी में हुई थी, तभी से मुझे आपका स्नेह एवं मार्गदर्शन अनवरत मिलता रहा। मैंने मेरी अनेक गज़लों को समीक्षार्थ उनके सम्मान में प्रस्तुत किया। मुझे सदैव कुछ नया सीखने को मिला। जीवन की व्यस्तताओं में मुलाकातें भी कम होती गई। अब मुलाकातें कम… लेकिन यादगार होने लगी।
एक दिन अचानक उनका फोन आया…. माह अक्टूबर, सन् 2018….
गंभीर स्वर में बाबूजी ने कहा एक मिसरा लिखिए…. मिसरा था….
मैं जिसे ढूंढ रहा था मेरे अंदर निकला।
( शायर – बेकल उत्साही साहब )
राज…. मुझे यक़ीन है कि तुम इस अच्छे अशआर कह सकते हो।”
मैं आश्चर्यचकित था और खुश भी….
तरही मिसरे पर गज़ल की कोशिश…. मेरी खुशी का कारण ये था कि इतने वरिष्ठ शायर ने मुझे इस लायक समझा कि मैं इस पर गज़ल कह सकता हूं। मैंने कोशिश भी की। एक दिन वो अवसर भी आया जब उनके सामने गज़ल पढ़ी। उनकी समीक्षक दृष्टि में मेरे शेर सफल रहें, उनका आशीष मिला |
कुछ मिसरों में बदलाव की हिदायतों के साथ….उनके शब्द जीवन भर कानों में गुंजते रहेंगे….।
राज, तुमने मेरी कोशिश को सफल कर दिया। इस अद्भुत क्षण के साक्षी अन्य कलमकारों ने भी मेरे प्रयास को आशीर्वाद दिया।
इन यादगार पलों के स्मरण में बाबूजी… चंचल जी सदैव मुस्कुराते हुए अपने ही तल्ख़, लेकिन सच्चे लहज़े में हिदायतें देते रहेंगे। वे सदैव आगाह करते रहेंगे अपनी लेखन शैली के प्रति, अपने प्रयासों के प्रति…. सदैव गंभीर रहे।
मेरी कविता… “घर में एक कोना” को भी आपका आशीर्वाद प्राप्त हुआ, ये भी मेरा सौभाग्य रहा। अपने निजी जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना करने वाले चंचलजी का समृध्द लेखन सदैव जीवंत रहेगा। चंचलजी के जीवन को यदि चंद मिसरों में कहना चाहूं तो यहां मुझे मुन्नवर राना साहब के दो शेर याद आते है….
अजब दुनिया है नाशायर यहां पर सर उठाते है। जो शायर है वो महफ़िल में दरी चादर उठाते है।
गज़ल हम तेरे आशिक है मगर इस पेट की ख़ातिर,
क़लम किस पर उठाना था क़लम किस पर उठाते है।
आपका लेखन सदैव जीवंत रहेगा… आप न केवल साहित्यिक प्रयासों में, अपितु आम जीवन में भी मार्गदर्शक बन कर मेरा मार्ग प्रशस्त करते रहेंगे।
🔲 जितेन्द्र राज