अनलॉक के 6 दिन : अनलॉक हुए सब, डंडे का डर खत्म, अब कंडे का डर हुआ शुरू, फिर भी मनमानी
🔲 हेमंत भट्ट
ग्रीन जोन का तमगा लेने वाले रतलाम में 1 जून से अनलॉक शुरू हुआ है, तभी से आमजन भी अनलॉक हो गए। डंडे का डर खत्म हो गया है। लेकिन कंडे का डर होने के बावजूद आमजन नियंत्रित नहीं है। मास्क लगाना, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना, हैंड सेनीटाइज करना भूलते जा रहे हैं। मिलन सारिता बढ़ रही है। दोस्ती का दरिया अब तक उत्तर से दक्षिण व पूर्व की ओर बह चुका है। यह दरिया किस क्षेत्र में बहेगा, अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है। लेकिन आंकड़े बता रहे हैं कि अनलॉक में ज्यादा नुकसान हुआ है अपनों का।
मुद्दे की बात यह है कि 31 मई तक शहर में कोरोना वायरस संक्रमित की संख्या 37 थी, जो कि जो 6 दिन में बढ़कर 53 हो गई। 6 दिन में 3 परिवारों ने अपने परिजनों को संक्रमण के पश्चात काल के गाल में समाते हुए देखा है। यह अब तक का बहुत बड़ा नुकसान है। फिर भी आमजन मानने को तैयार नहीं है।
आंकड़ों की जुबानी, हकीकत की कहानी
उल्लेखनीय है कि राहत वाले लॉक डाउन में 18 मई से लेकर 31 मई तक केवल 9 संक्रमित हुए थे। इन दिनों में केवल 229 सैंपल लिए गए थे। कुल 37 संक्रमित थे। इनमें से 31 लोग स्वस्थ होकर घर जा चुके थे। पांच का उपचार चल रहा था। एक की मृत्यु हुई।
अनलॉक की शुरुआत 1 जून से हुई। पिछले 6 दिनों में मेडिकल कॉलेज द्वारा 278 सैंपल लिए गए। 6 दिन में संक्रमित भी 16 बढ़ गए। और 3 मौत हुई है। यह आंकड़े आगाह कर रहे हैं कि अपनी भावनाओं और व्यवहार को नियंत्रित नहीं किया तो विकराल रूप हो सकता है। संक्रमित ही नहीं होंगे वरन असमय अनहोनी भी हो सकती है। घर के सामने कंडा जलने में देर नहीं लगेगी।
और वह भी हो गए अनलॉक
अनलॉक के 6 दिनों में सामाजिक व्यक्ति ही नहीं असामाजिक लोग भी अनलॉक हो गए। अनलॉक के तीसरे दिन गोलीकांड की घटना हुई। वही अगले दिन कर्फ्यू के दौरान चाकूबाजी हो गई। शहरी ही नहीं ग्रामीण क्षेत्र में भी ग्रामीणजन जमीन के टुकड़े के लिए खून के प्यासे हुए और 3 युवाओं को जान से हाथ धोना पड़ा।
चीख-चीख कर दे रहे आंकड़े चेतावनी, मत करो मनमानी
मुद्दे की बात यह है कि आंकड़े चीख-चीख कर चेतावनी दे रहे हैं कि यदि समय रहते अपने आप को नियंत्रित नहीं किया तो जिला प्रशासन के सारे प्रयास असफल सिद्ध हो जाएंगे। मनमानी के दुष्परिणाम बहुत ही भयावह होंगे। पुलिस के डंडे का डर नहीं रहा तो कोई बात नहीं यदि पड़ेंगे भी तो उसका दर्द तो खत्म हो जाएगा, लेकिन जब असमय घर के बाहर कंडा जलेगा तो वह असहनीय दर्द, अपने परिजन के खोने का दर्द आजीवन दिल में रहेगा। परिवार में जो रिक्तता आएगी वह कोई भी खुशी पूरा नहीं कर पाएगी।