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भारतीय गुरु परंपरा के वाहक बने शिक्षक : शिक्षाविद् हनुमान सिंह राठौड़

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🔲 राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ द्वारा ऑनलाइन

🔲 500 से अधिक शिक्षक शिक्षिकाएं हुए शामिल

हरमुद्दा
रविवार, 5 जुलाई। गुरु अखंड मंडलाकार ज्ञान का प्रतीक है जिसका न प्रारंभ है ना कोई अंत। भारत की गौरवशाली गुरु परंपरा के वाहक आज के शिक्षक को बनना है।
यह उद्गार ख्यातनाम विचारक एवं शिक्षाविद् हनुमान सिंह राठौड़ ने रविवार को अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ द्वारा ऑनलाइन आयोजित गुरु वंदन कार्यक्रम में व्यक्त किए।  यह जानकारी हिम्मत सिंह जैन व सर्वेश कुमार माथुर ने दी।

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आत्म चिंतन का है दिन

श्री राठौड़ ने कहा कि भारत की गुरु परंपरा अनादि काल से रही है। गुरु के सानिध्य में शिष्य को लौकिक और पारलौकिक दोनों जीवन के लिए भली-भांति तैयार किया जाता था, ज्ञान की पूर्णता इस परंपरा का लक्ष्य था। वर्तमान समय में हम इसे भूले हैं और इसलिए यह विद्यार्थियों और शिक्षकों दोनों के लिए आत्मचिंतन का दिन है।

संकल्प और विकल्पों की छूट

श्री राठौड़ ने कहा कि मनुष्य कर्म योनि में संकल्प और विकल्प की छूट है अतः समुचित मार्गदर्शन के बिना मनुष्य नराधम भी बन सकता है और नरोत्तम भी । उन्होंने गुरु की तुलना वृत्त के व्यास से करते हुए कहा कि परिधि पर रहते केंद्र से गुजरना आवश्यक है और यह केंद्र भारत का मूल विचार और संस्कृति है।

शिक्षक समाज में आत्मबोध करना जरूरी : श्री सिंघल

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कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए शैक्षिक महासंघ के अध्यक्ष प्रोफेसर जेपी सिंघल ने कहा कि महासंघ भारतीय जीवन मूल्यों के आधार पर शिक्षकों के संगठन का कार्य कर रहा है। गुरु वंदन कार्यक्रम महासंघ द्वारा नियोजित स्थाई कार्यक्रमों में हैं जिसका उद्देश्य वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारतीय गुरु परंपरा से प्रेरणा लेकर शिक्षक समाज में आत्मबोध करने का है।

सरस्वती वंदना से शुरुआत

कार्यक्रम की शुरुआत महासंघ की संयुक्त सचिव ममता डीके द्वारा सरस्वती वंदना से हुई।

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महासंघ के महामंत्री शिवानंद सिंदनकेरा ने कार्यक्रम की प्रस्तावना रखी ‌। कार्यक्रम का संचालन महासंघ की सचिव डॉ. गीता भट्ट ने किया। आभार उपाध्यक्ष पी वेंकटराव ने माना। इस कार्यक्रम में देश भर के 500 से अधिक शिक्षक कार्यकर्ता शामिल हुए।

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