पारसी समाज का नूतन वर्ष “नवरोज” आज, होगा पूजन, देंगे बधाई

हरमुद्दा
पारसी समाज द्वारा गुरुवार को नूतन वर्ष “नवरोज” मनाया जाएगा पहले नगर में समाज द्वारा विस्तृत रूप से नवरोज उत्सव मनाया जाता था, मगर अब समाज सीमित रह गया है। इसका एक मात्र कारण पारसी समाज की संख्या कम होना है। पहले नगर में सैकड़ों संख्या थी पारसी समाज के लोगों की, किंतु अब गिनती के परिवार रह गए हैं। गुरुवार को घर में पूजन अर्चन होंगे और परिजन एक दूसरे को बधाई देंगे।
डेढ़ शताब्दी पहले आए थे रतलाम में
नवरोज पर्व संपूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाता है। पारसी समाज का नवरोज उस दिन होता है, जब दिन और रात बराबर होते हैं। याने कि सूर्योदय का समय और सूर्यास्त का समय लगभग एक सा होता है। पारसी समाज के संदर्भ में समाज के वरिष्ठ एवं प्रसिद्ध समाजसेवी टीएस अंकलेसरिया ने “हरमुद्दा” को बताया रतलाम में पारसी समाज के लोग तकरीबन 150 साल पहले आए थे। आजादी के बाद शहर में पारसी समाज की संख्या तीन सौ से अधिक थी किंतु अब संख्या घट गई है। इसका मात्र एक कारण यह है कि पारसी समाज व्यापार में रुचि रखते हैं। सभी व्यापार पसंद हैं। जहां व्यापार होता है, वहां चले जाते हैं। मुम्बई से संख्या सर्वाधिक है। शासकीय सेवा में इस समाज के लोगों को रुचि कम ही है। उच्च शिक्षा और व्यवसाय पसंद लोग अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की ओर पलायन करते रहते हैं। जनसंख्या में कमी का एक यह भी कारण है।

सोच और विचारधारा
भारतीय संस्कृति और परंपरा का हिस्सा बन चुके पारसी समाज के चिंतन और सोच के बारे में गुस्ताद अंकलेसरिया ने बताया पहली बार पारसी समाज गुजरात राज्य में आए थे, साथ में धर्मगुरु भी थे। उन्होंने तत्कालीन राजा से बचने की अनुमति मांगी थी मगर उन्होंने नहीं दी। राजा ने दूध का कटोरा भेजा और कहा राज्य में आबादी बहुत है। इस पर धर्मगुरु ने दूध में एक चम्मच शक्कर डाल दी और कहा जिस तरह से दूध में शक्कर मिल गई है, उसी तरह से हम भी घुल मिल जाएंगे। इसी सोच और विचारधारा से पारसी समाज भारतीयों में घुल मिल गया। मातृभाषा गुजराती है।
न मांगाअधिकार न सुविधा
दूध की मात्रा बढ़ती जा रही है और शक्कर की संख्या कम हो रही है। नवरोज का उत्साह आज भी कम नहीं है, बस फर्क आया है इतना कि पहले क्षेत्र विस्तृत था, अब कमरे तक सीमित रह गया है। यह कड़वा सच है। विशेष बात यह है कि संख्या में अल्प होने के बाद भी समाज में अल्पसंख्यकों को मिलने वाली सुविधाओं की मांग नहीं की। इतना ही नहीं किसी तरह का अधिकार भी नहीं जताया। समाज सेवा करना ही इस समाज का परम उद्देश्य है। नवरोज का विशेष आयोजन तो पूजन होता हैं। बस समाज जन मिलते हैं और बधाई देते हैं।
नगर में नहीं है “अगियारी घर
पंचतत्व निराकरण ईश्वर को मानने वाले पारसी समाज कर्म में विश्वास है, दिखावे और प्रचार प्रसार में नहीं। आराधना भक्ति घर में ही करते हैं। श्री अंकलेसरिया ने बताया रतलाम में धार्मिक स्थान “अगियारी घर” नहीं है। पुणे, इंदौर नीमच, सूरत, मुंबई में है, जहां पर अखंड ज्योत जलती है। जब इन शहरों में जाना होता है तो “अगियारी घर” जरूर जाते हैं। समाज के लोग नवरोज के अलावा सभी भारतीय त्यौहार मनाते हैं। इस बार संयोग है कि धुलेंडी और नवरोज एक ही दिन है।

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