 आशीष दशोत्तर

       जो दिल न कह सके, वह राज़े-दिल आंसू कह जाते हैं। आंसू का पलना, आंसू का चलना, आंसू का मचलना,आंसू का पिघलना भीतरी भाव हैं जबकि आंसू का छलकना और रूखसार पर ढलना बाहरी भाव। भीतरी भाव मायने नहीं रखते, बाहरी भाव कई मायने पैदा कर देते हैं। आंसू के साथ दिक्कत यह है कि इसके छलकने का राज़ उसे पता होता है जिसकी आंखों से ये निकलते हैं या फिर उसे पता होता है जिसके लिए ये छलकते हैं।

        सबके अपने-अपने कयास हो सकते हैं मगर दुनिया में अब तक कोई भी तीसरा व्यक्ति आंसू छलकने का राज़ नहीं जान पाया है। दुनिया की सबसे खूबसूरत पेंटिंग में एक आंख से टपकते आंसू की व्याख्या करने में अब तक कई विद्वानों की आंख के आंसू सूख गए मगर किसी एक धारण पर सभी सहमत नहीं हो सके। इसलिए आंसू एक राज़ भी है और आत्मा की आवाज़ भी। आंसू ‘उपेक्षा‘ की अभिव्यक्ति भी देते हैं तो ‘अपेक्षा‘ की लालसा में भी बह जाते हैं। कवि भले ही कहता हो कि हज़ारों तरह के होते हैं आंसू , मगर आंसू के भाव अभावों को प्रदर्शित कर जाते हैं।

        विदाई के वक़्त तो आंसू बहने की परम्परा है। विदाई के समय आंसू नहीं बहे तो लोग कहते हैं,कैसा पत्थर दिल है,आंख से एक आंसू नहीं गिरा। कई पत्थर दिलों को भी विदाई के समय अपनी आंख से आंसू बहाकर स्वयं को कोमल ह्रदय साबित करते देखा जाता है। अपने घरों में तो बूढ़ी दादी-नानी नई छोरियों को टोकती रहती है, इन मोतियों को संभाल कर रख, ससुराल जाते समय बहाने में काम आएंगे। यानी विदाई के समय आंख से आंसू न बहे तो मुसीबत। लोग कहते हैं, घर छोड़ते समय आंसू नहीं निकले।

        आंसुओं का अपना विधान होता है। इन्हें पता होता है,कब ,कहां, कितना और किस प्रकार निकलना है। शालीन आंसू आंखों को गीलाभर करते हैं। डबडबाई आंखें सामने वाले का हाल बयां कर देती है। कभी कभार एक या दो आंसू निकल कर यह साबित कर देते हैं कि दिल कितना भरा है मगर मजबूरी है कि आंसू बहा नहीं सकते। कभी-कभी ये आंसू सब्र का बंाध तोड़कर बह निकलते हैं। ऐसा करने से आंसू बहाने वाले की निष्ठा साबित हो जाती है। बात-बात पर आंसू बहाने वालों के आंसुओं की कोई कद्र नहीं होती। सभी कहते हैं ये तो दिन भर रोता ही रहता है।

        नए शब्दों और मुहावरों के ईजाद के दौर में आंसुओं ने अपने शब्दकोश में भी एक नए शब्द ‘टियर्स डिप्लोमेसी‘  को जोड़ लिया है। अपने जज़्बातों को काबू में रखने के बावजूद आंसू का बह निकलना इस शब्द को गरिमा प्रदान करता है। यह गरिमा कब गर्व का कारण बन जाए कहा नहीं जा सकता । फिलहाल आंसुओं को अपने बढ़ने कद से गर्व महसूस हो रहा है। आंसुओं को उन आंखों से बहने का सौभाग्य मिल रहा है जिनसे बहने की इन्होंने कभी कामना भी नहीं की थी। आंसू बह रहे हैं। कपोलों पर कुलांचे मारते आंसू अपने महत्व को महसूस कर खुश भी हैं और उम्मीद भी कर रहे हैं कि ये आंसू किसी दिन फूल बन जाएंगे।

आशीष दशोत्तर, 12/2, कोमल नगर, बरवड़ रोड,
रतलाम -457001
मो. 98270 84966      
                                                                   

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