चित्रमय झलकियां : ताड़ी, मौज, मस्ती, उमंग, उल्लास धुलेंडी के पूर्व 7 दिन पहले से…
विश्व प्रसिद्ध भगोरिया महापर्व का आगाज
मालवा और निमाड़ के आदिवासियों का उत्सव
हरमुद्दा
सोमवार, 23 मार्च। मध्यप्रदेश के झाबुआ के आदिवासी क्षेत्रों में भगोरिया नाम से होलिकात्सव मनाया जाता है। होलिका दहन से 7 दिन पूर्व शुरू होने वाले इस भगोरिया पर्व में युवा वर्ग की भूमिका खासी महत्वपूर्ण होती है। आदिवासी बहुल झाबुआ, आलीराजपुर, बड़वानी, खरगोन जिले में एक सप्ताह तक चलने वाले लोक उत्सव भगोरिया की शुरुआत कोरोना के साये में हो गई। भगोरिया के दौरान प्रशासन ने पर्याप्त सुरक्षा इंतजामों का दावा किया है। झाबुआ-आलीराजपुर जिले में 28 मार्च तक 60 स्थानों पर मेले लगेंगे। महामारी को देखते हुए मेलों में गाइडलाइन का पालन अनिवार्य किया गया है।
भगोरिया के समय धार, झाबुआ, खरगोन, आलीराजपुर, करड़ावद आदि कई क्षेत्रों के हाट-बाजार मेले का रूप ले लेते हैं और हर तरफ फागुन और प्यार का रंग बिखरा नजर आता है। जीप, छोटे ट्रक, दुपहिया वाहन, बैलगाड़ी पर दूरस्थ गांव के रहने वाले लोग इस हाट में सज-धज के जाते हैं। कई नौजवान युवक-युवतियां झुंड बनाकर पैदल भी जाते हैं। भगोरिया पर्व का बड़े-बूढ़े सभी आनंद लेते हैं।
ढोल की थाप, बांसुरी, घुंघरुओं की गूंज
हाट में जगह-जगह भगोरिया नृत्य में ढोल की थाप, बांसुरी, घुंघरुओं की ध्वनियां सुनाई देती हैं तो बहुत ही मनमोहक दृश्य निर्मित कर देती है। बड़ा ढोल विशेष रूप से तैयार किया जाता है, जिसमें एक तरफ आटा लगाया जाता है। ढोल वजन में काफी भारी और बड़ा होता है। जिसे इसे बजाने में महारत हासिल हो वही नृत्य घेरे के मध्य में खड़ा होकर इसे बजाता है।
चित्रमय झलकियां
फोटो संकलन : अखिलेश श्रोत्रिय