ईमान, कफन और इंसानियत धड़ल्ले से बिक रही है मेरे शहर में, जिंदा मुर्दे घूम रहे हैं मेरे शहर में
जिंदा मुर्दे घूम रहे हैं मेरे शहर में
चंद्रशेखर लश्करी
चलने फिरने वाले मुर्दे, घूम रहे हैं
मेरे शहर में
सांसों की जंग हारने वाले जल रहे
हैं श्मशान में,
इंसानियत बेच खाने वाले मुर्दे
नकली इंजेक्शन बेच रहे हैं मेरे
शहर में,
मरीजों को जांच करवाने वाले
दलाल घूम रहे मेरे शहर में,
कभी रेलवे का रिजर्वेशन करवाने
वाले दलाल थे मेरे शहर में,
अब स्वर्ग और दोजक की टिकट
कटवाने वाले घूम रहे हैं मेरे शहर में,
कभी ऑक्सीजन के गुब्बारे
उड़ाते थे आसमान में,
अब ऑक्सीजन के दलाल घूम
रहे हैं अस्पताल में,
माना कि तुम्हारी इंसानियत मर
चुकी है मेरे शहर में,
लाशों का ढेर कर रहे हो तुम मेरे
शहर में,
इंसानियत वाले तो जल रहे हैं
कब्र में सो रहे हैं,
बे इंसानियत वालों ना तुम्हें
जलाने वाले मिलेंगे ना कब्र में
सुलाने वाले मिलेंगे मेरे शहर में,
कभी सेंव साड़ी और सोना
धड़ल्ले से बिक रहा था
मेरे शहर में,
अब ईमान, कफन और
इंसानियत धड़ल्ले से
बिक रही है मेरे शहर में
चंद्रशेखर लश्करी
मध्य प्रदेश अजाक्स, जिलाध्यक्ष रतलाम