कोरोना जन जागृति की अभिनव पहल : महामारी से निपटने के लिए व्यापक प्रयासों के मध्य समाज में सकारात्मक वातावरण का निर्माण
🔲 डॉ. रत्नदीप निगम
कोविड रिस्पांस टीम ( सी आर टी ) समाज हितैषी नागरिक , धार्मिक , सामाजिक संगठनों की एक ऐसी पहल है जो कोरोना संकट काल मे महामारी से निपटने के लिए भारत के व्यापक प्रयासों के मध्य समाज में सकारात्मक वातावरण का निर्माण करने के लिए ” हम जीतेंगे , positivity unlimited ” व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन कर रही है। इसका उद्देश्य है समाज मे आत्मविश्वास का संचार करना एवं अवश्य जीतेंगे का भाव जागृत कर कोरोना के विरुद्ध जंग में समाज को एकजुट करना। इसी श्रृंखला के तहत प्रारंभ प्रथम व्याख्यान में प्रथम वक्ता ईशा फाउंडेशन के संस्थापक विख्यात योगी जग्गी वासुदेव जी महाराज।
ईशा फाउंडेशन के संस्थापक विख्यात योगी जग्गी वासुदेव जी महाराज का संदेश
अंगुली उठाने की अपेक्षा एक दूसरे के साथ खड़े रहने की जरूरत
योगी जग्गी वासुदेव जी ने समाज को संबोधित करते हुए कहा कि जब समाज मे चहुँ ओर निराशा व्याप्त है तब एक दूसरे पर अंगुली उठाने की अपेक्षा एक दूसरे के साथ खड़े रहने की आवश्यकता है। यह पीढ़ीगत चुनौती है। कौन क्या कर रहा है, इस वक्त यह मायने नहीं रखता बल्कि आवश्यकता यह सोचने की है कि मैं क्या कर रहा हूँ । यह युद्ध की स्थिति है, शत्रु अदृश्य है , ऐसे समय भारत को राष्ट्र के रूप में संगठित होकर कार्य करने की आवश्यकता है। स्वयं से बात कीजिए ये महामारी किसी कीट , मच्छर , मक्खी से नहीं मुझ स्वयं से फैलेग , इसलिए स्वयं को समाधान करना है।
बदलना है अपनी लाइफ स्टाइल
आत्मानुशासन का पालन कीजिए। लाइफ स्टाईल को बदलना है , लाइफ होगी तो स्टाइल होगी न। 20 वर्ष पहले हम कैसे जीवन जिते थे। एक मारुति का ही उपयोग करते थे आज कितनी वैरायटी की गाड़ियाँ हो गई न। उसके लिए हम बदले न। तो अब फिर बदल नहीं सकते क्या ?
पहचानिए अपनी सांस्कृतिक जड़ो को
हमारा इतिहास राजा महाराजाओं का इतिहास नहीं अपितु योगी , ऋषि , मुनियों के इतिहास है , अपने मन को बदलिये , जागिए अपनी सांस्कृतिक जड़ो को पहचानिए , मानवता की रक्षा के लिए अपनी जीवन पद्धति को बदलिये , यह मानवता के प्रति हमारी मूल जिम्मेदारी है ।
सुविख्यात जैन मुनि प्रणाम सागर जी महाराज ने समाज को संदेश
तन की बीमारी को मन की बीमारी मत बनाओ
द्वितीय व्याख्यान में विद्वान सुविख्यात जैन मुनि प्रणाम सागर जी महाराज ने समाज को संदेश देते हुए कहा कि यह कोरोना काल त्रासदीपूर्ण काल है , इसलिए मन को मजबूत बनाना है ,घबराना नहीं है। यह तन की बीमारी है इसे मन की बीमारी मत बनाओ । मन से इस रोग को पराजित किया जा सकता है , ऐसे सैकड़ों उदाहरण उपस्थित है , इसलिए आध्यात्मिक दृष्टिकोण रखिये , अंदर की जिजीविषा को उत्पन्न कीजिए । ये सोचते रहिये कि मैं स्वस्थ हो जाऊँगा , मृत्यु के बारे में क्यों सोचना , यदि आनी है तो क्या कोई रोक पायेगा तो उसकी प्रतीक्षा क्यों करना ? जो जीवन मिला है उसके प्रत्येक क्षण को आनंद , उमंग और उल्लास से बिताइये । सावधानी , सतर्कता अवश्य रखिये लेकिन न भयभीत होना है न भयभीत करना है । हमारी संस्कृति दान की संस्कृति है अतः मानवीय दृष्टिकोण रखते हुए प्रत्येक मानव की आवश्यकता की पूर्ति करना हमारा सांस्कृतिक उत्तरदायित्व है।