विश्व ब्राह्मण दिवस पर विशेष : शब्दांजलि ‘अहम ब्रह्मास्मि’
पंडित त्रिभुवनेश भारद्वाज
मैंने ही अपनी तपस्या से
अनेक बार अम्बर को ललकारा है
मैंने ही जल अंजुरी में भर कर
भयंकर राक्षसों को संहारा है
मैंने राष्ट्र धर्म का बिगुल बजाया
और अधर्मियों को मारा है
मैंने ही कई बार उठाई
भारी वेदना के विरुद्ध आवाजें
मैंने ही बुलाया हैं जरूरत पड़ने पर
शिव, विष्णु और कृष्णा को
मैंने ही अपनी अस्थियाँ दी है
वज्र से अस्त्र बनाने को
मैंने ही फूंकी है आत्मा
मरी हुई लाचार व्यवस्थाओं में
मैं भारद्वाज, भृगु भार्गव
मैं कश्यप, पराशर, दुर्वासा
मैं ही वरदान और
वन्दनाए उठाता हूँ
मैं ही शाप देता हूँ
अवान्छितों को
और मिटाता हूँ
मैनें कभी नहीं चाहे स्वर्ण महलक
और मुद्रिकाओं के कोषागार मांगें
मैंने राज दण्ड संभाले और
न्याय के मार्ग बनाएं हैं
मैंने कभी भयभीत होकर
मस्तक नत नहीं किए शमशीरों के आगे
मेरे त्यागा देह, दधीचि बन
वज्र मेरी अस्थियों से बने
और मेरी पद चापों से विषधर भागे
मैं ब्राह्मण त्रिभुवन
यूँ ही नहीं
अब भी ब्रह्मा को
संकल्पों से जगाता हूँ
सृजन का निष्पादक
असीम का उत्पादक
साधक और परम का संवादक
मंत्र मन्त्रणा के मुझसे निकले
ब्रह्मा का आह्वान मुझसे
और मनुजता का सम्मान मुझमें है
त्रिभुवनेश भारद्वाज