आचार्य श्री महाश्रमणजी का धर्म कर्म पथ : तेरापंथ के ग्यारहवें आचार्य करते हैं मानवता का शंखनाद, मिलती कुरीतियों एवं अंधविश्वासों से भी मुक्ति

 आचार्य महाश्रमण एक परिचय

आचार्य महाश्रमण का जन्म राजस्थान के चुरू जिले के सरदार शहर में 13 मई 1962 को हुआ। बारह वर्ष की अल्पायु में 5 मई 1974 को सरदार शहर में आचार्य श्री तुलसी की अनुज्ञा से मुनि सुमेरमलजी लाडनूं के हाथों आप दीक्षित हुए। आचार्य तुलसी ने इनमें तेरापंथ के उज्ज्वल भविष्य के दर्शन किए और उन्होंने दिनांक 9 सितंबर 1989 में इन्हें महाश्रमण के पद पर मनोनीत किया। आचार्य श्री महाश्रमणजी तेरापंथ के ग्यारहवें आचार्य हैं। वे 9 मई 2010 को आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के महाप्रयाण के बाद इस पद पर प्रतिष्ठित हुए है।

आचार्य महाश्रमण की उत्तरोत्तर प्रगति

आचार्य प्रवर की मोहनलाल से मुनि मुदितकुमार, फिर महाश्रमण और फिर युवाचार्य तथा आचार्य बनने तक की यह यात्रा, समर्पण, निष्ठा, मर्यादा, अनुशासन, उत्कृष्ट भक्ति तथा साधुता की अपूर्व कहानी है। आचार्य महाश्रमण एक ऐसे परिव्राजक है, जो 50 हज़ार से ज्यादा कि. मी. से अधिक पैदल यात्रा पूरी करने के बाद आज भी उतने ही उत्साह से गतिमान है।

प्रवचन का प्रभाव समाज पर

आचार्य प्रवर के प्रवचनों में जाति धर्म से ऊपर मानवता का शंखनाद होता है। इसलिए आपके उपदेशो से न सिर्फ व्यसनमुक्त समाज का निर्माण हो रहा है। अपितु सामाजिक कुरीतियों एवं अंधविश्वासों से भी मुक्ति मिल रही है।

उत्कृष्ट साहित्य साधना

आचार्य महाश्रमण एक ऐसे साहित्यकार है, जो दूरदृष्टा भी है। आपकी सृजनशीलता के परिणाम कई ख्यात पुस्तको के रूप में सामने है। आपकी रचनाओं में आओ हम जीना सीखें, दुःख मुक्ति का मार्ग, संवाद भगवान से, रोज की एक सलाह, और निर्वाण का मार्ग बेहद प्रभावकता के साथ पाठकों के मन पर गहरी छाप छोड़ती है। आप श्री हिंदी भाषा के साथ – साथ अंग्रेजी, संस्कृत, प्राकृत,और राजस्थानी भाषा के विद्वान है।

कुशल प्रशासक

आचार्य महाश्रमण की छवि एक कुशल प्रशासक के रूप में भी है। आप तेरापंथ धर्मसंघ के कुशल अधिशास्ता है। इस संघ में 800 से अधिक साधु साध्वी और समण- समणी है। 40 हज़ार युवा कार्यकर्ता और 60 हज़ार महिला नेत्रियां तेरापंथ धर्मसंघ की देश भर में फैली 415 से अधिक शाखाओं के माध्यम से संस्कृति और संस्कारों के निर्माण के महाअभियान में जुटे हुए है।

प्रेक्षाध्यान नवीन आयाम

आचार्य महाप्रज्ञजी के ध्यान के प्रकल्प प्रेक्षाध्यान को आचार्य महाश्रमण जी ने और भी प्रभावी स्वरूप प्रदान किया है। ध्यान के इस माध्यम से विचारों और चेतना को शुद्ध करने का अभ्यास किया जाता है। मन और आत्मा के सूक्ष्म स्पंदनों को राग – द्वेष से मुक्त होकर जानने की इस विधा के लिए देश भर में आपके सानिध्य में शिविर लगते है। व्याधि, आधि और उपाधि को समाप्त करने वाला प्रेक्षाध्यान समाधि का मुख्य द्वार है।

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