मर्यादा वही है, जिसमें महानता हो: पद्मभूषण श्रीमद्विजय रत्नसुन्दरजी
हरमुद्दा
रतलाम, 15 अप्रैल। राज प्रतिबोधक, पद्मभूषण, सरस्वतीलब्धप्रसाद, परम पूज्य आचार्य श्रीमद्विजय रत्नसुन्दर सूरीश्वरजी महाराज ने व्यसनों से दूर रहने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि चलते-चलते व्यक्ति कीचड़ में गिरता है, तो अकेले को ही फ्रेक्चर होगा, लेकिन व्यसन में गिरेगा, तो पूरे परिवार को फ्रेक्चर हो जाएगा। खुद की चिंता ना हो, तो कोई बात नहीं,लेकिन परिवार की चिंता तो करो। मर्यादा वही है, जिसमें महानता हो।आचार्यश्री सैलाना वालों की हवेली, मोहन टॉकीज में 11 दिवसीय प्रवचनमाला को संबोधित कर रहे थे। श्री देवसुर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ, गुजराती उपाश्रय एवं श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर पेढ़ी द्वारा आयोजित इस प्रवचनमाला के सातवें दिन आचार्यश्री ने “मुझे कुछ कहना है” विषय पर प्रेरणादायी मार्गदर्शन दिया। उन्होंने पांच सूत्रों की बात कही। मर्यादा वही जो महानता, उदारता वही जो उत्तमता, उत्साह वही जो उत्थान, समाधान वही जो समाधि और भक्ति वही जो मुक्ति दिलाए का पालन करने की सीख दे।
घर में कोई नियम कायदा है क्या
आचार्यश्री ने कहा कि दुनिया में सब काम नियम, कायदे से होते है। देश संविधान से चलता है, मैदान में खिलाड़ी अंपायर के निर्देशों को मानता है। स्कूल का अपना अनुशासन होता है, यातायात व्यवस्था भी नियमों से संचालित होती है, लेकिन घरों की स्थिति क्या है? क्या आप लोगों ने घर में सदस्यों के लिए मर्यादा की कोई लाइन बना रखी है? आज परिवार बिखर रहे है। व्यसनों को बढ़ावा मिल रहा है और दिनोंदिन स्थिति विकट हो रही है। इससे बचना है, हर घर को मर्यादा में बंधना होगा। बिना संविधान के देश नहीं चल सकता, तो घर कैसे सुरक्षित रहेंगे।
मन भी होना चाहिए उदार
उन्होंने कहा कि उदारता पैसों की ही नहीं, अपितु मन की भी होना चाहिए। वे प्रवचन में एफडी कराने वालों के प्रसंग कभी नहीं सुनाते, लेकिन दान करने वालों के असंख्य उदाहरण देते है। इसका कारण व्यक्ति जब हवा, पानी, प्रकाश आदि के लिए आने और जाने का सिद्धांत बताता है, तो पैसों के लिए क्यों आना चाहिए तो जाना भी चाहिए का सूत्र नहीं अपनाता।
उत्थान के जरूरी उत्साह
उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने सामर्थ्य अनुसार दान करना चाहिए। उत्थान पर जाने के लिए हॄदय में उत्साह होना आवश्यक है। गुब्बारे को जिस प्रकार उपर जाने के लिए हवा की जरूरत होती है, उसी प्रकार उत्थान के लिए उत्साह आवश्यक है।
समझाया मुक्ति का मर्म
आचार्यश्री ने विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से समाधान से समाधि और भक्ति से मुक्ति का मर्म समझाया। प्रवचनमाला का संचालन मुकेश जैन ने किया।
“विचार से आचार की ओर” पर मंगलवार को प्रवचन
प्रवचनमाला में मंगलवार को आचार्यश्री “विचार से आचार की ओर” विषय पर प्रवचन देंगे।