तो प्रभु महावीर का आपके हृदय में स्थान निश्चित: पद्मभूषण श्रीमद विजय रत्नसुन्दरजी

हरमुद्दा
रतलाम,17 अप्रैल। नदी के तट पर लड़के ने मगरमच्छ को देखा, लड़के ने मगरमच्छ को नमस्कार किया। उसने ने पूछा नमस्कार क्यों ? माँ ने कहा बड़े को नमस्कार करना चाहिए। मगरमच्छ बोला मेरे से बड़ी तो नदी है। नमस्कार करना है तो नदी को कर। नदी ने कहा साग़र को कर। सागर ने कहा पृथ्वी बड़ी है, उसे कर। पृथ्वी बोली आसमान बड़ा उसे कर। आसमान बोला परमात्मा बड़े है उन्हें कर। परमात्मा बोले मुझसे बड़ा तेरा हॄदय है, जिसमे तूने माँ को स्थान दिया। उस पावन हर को नमस्कार कर। भगवान महावीर को पाकर आज हम कहां खड़े है ? आत्म अवलोकन कीजिए। दृष्टि सही रखिए। प्रभु महावीर का आपके हृदय में स्थान निश्चित है।Screenshot_2019-04-15-19-11-14-699_com.google.android.gm
यह बात राज प्रतिबोधक, पद्मभूषण आचार्य श्रीमद विजय रत्नसुन्दरजी म.सा.ने कही। वे बुधवार को भगवान महावीर के जन्म कल्याणक महोत्सव को संबोधित कर रहे थे।
तो वह है प्रेम दृष्टि
जैन स्कूल में आयोजित प्रवचन में उन्होंने प्रेम दृष्टि,स्वत्व दृष्टि, प्रसन्न दृष्टि पर प्रकाश डाला। आचार्य श्री ने कहा कि प्रभु ने चंडकोशिक को जिस प्रेम की दृष्टि से देखा, कृष्णा ने सुदामा को, राम ने सबरी को और रतलाम सकल संघ ने मुझे जिस स्नेह भरी दृष्टि से देखा, वो प्रेम दृष्टि है। पुण्य से परमात्मा मिल सकते है, मगर प्रेम से हम परमात्मा बन सकते है । सबको सोचना चाहिए कि प्रभु भक्ति में भले ही मस्त रहते है, लेकिन क्या उस भक्ति से प्रभु को आनंद आता है ? मुनि ने भी आपको आनंदित किया, आपने मुनि को आनन्दित करने का कितना प्रयास किया ? आकलन कीजिए।आपके परिचय में आने वाले आपसे प्रसन्न है क्या? आपके अच्छे व्यवहार को देख कर ही लोग आपसे पुनः मिलने के लिए आपका विजिटिंग कार्ड मांगते है। इसलिए सोचे अगले जन्म में मिलने के लिए किसी ने आपका कार्ड मांगा है क्या ? उन्होंने कहा कि महावीर को हम मानते है, लेकिन महावीर की कितनी मानते है? महावीर को मानने में कोई पराक्रम नही किया, माँ पिताजी के कहने से माना, लेकिन महावीर की मानने में पराक्रम करना पड़ेगा। महावीर जयंती पर यही संकल्प ले कि कीचन,आफिस,मन,वचन और व्यवहार हर क्षेत्र में उन्हें स्थापित करेंगे।
कर्म अच्छे करें
आचार्य श्री ने कहा कि गुलाब के फूल को रात को पता नही होता कि सुबह मन्दिर में या शमशान में जाना है। उसी प्रकार हमारी स्थिति होती है। इसलिए अच्छे कर्म से अपनी यात्रा को मंदिर की और ले जाने का प्रयास करे।
“सुख का इंकार है यदि” विषय पर प्रवचन गुरुवार को
आचार्यश्री सैलाना वालो की हवेली, मोहन टॉकीज में 11 दिवसीय प्रवचनमाला में 18 अप्रैल को “सुख का इंकार है यदि” विषय पर प्रवचन देंगे। श्री देवसुर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ, गुजराती उपाश्रय एवं श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर पेढ़ी ने धर्मप्रेमी नागरिको से इस अवसर पर अधिक से अधिक उपस्थित रहने का आह्वान किया है।

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