सरकारी फरमान, पालकों की सांसत में जान : लाड़लों का भविष्य देखें या जिंदगी

🔲 बच्चों के लिए अभी तक नहीं है वैक्सीन, मां की उजड़े की गोद, पिता के अरमान

हेमंत भट्ट

प्रदेश सरकार ने प्रदेश के सभी शासकीय और अशासकीय स्कूलों को खोलने का फरमान जारी कर दिया है। इसके बाद अभिभावकों की सांसत में जान आ गई है। उनके सामने यक्ष प्रश्न खड़ा है कि बच्चों का भविष्य देखें या जिंदगी। भले ही अभिभावकों की सहमति का फ़तरु फसाया है, लेकिन क्या जो अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजने की सहमति नहीं देंगे, वह क्या प्राइवेट एग्जाम देंगे। इस बारे में कोई दिशा निर्देश नहीं दिए गए हैं।

मुद्दे (Issues) वाली बात तो यह है कि भले ही देश प्रदेश में बच्चों के लिए स्कूल खोलने के फरमान जारी किए जा रहे हैं लेकिन अव्वल तो जिम्मेदारों को बच्चों के लिए वैक्सीन का इंतजाम करना था लेकिन वह नहीं किया। धन्ना सेठों के दबाव में आकर देश प्रदेश के प्राइवेट स्कूलों को खोलने की अनुमति देना थी तो सरकारी स्कूलों के लिए भी आदेश जारी किए गए। तीसरी लहर की चपेट में आने से बच्चे की मौत से चाहे मां की गोद उजड़े या पिता के अरमान जिम्मेदारों को इससे कोई लेना-देना नहीं। डेंगू सर उठाए घूम रहा है। बाल चिकित्सालय में जगह नहीं है। सफाई व्यवस्था में ध्वस्त पड़ी हुई है। सभी जानते हैं कि अभी जो बुखार चल रहा है, उसमें प्लेटलेट्स डाउन हो रहे हैं जबकि डेंगू रिपोर्ट नेगेटिव है। असमंजस में रखने वाला बीमारी का दौर चल रहा है।

रतलाम शहर के शासकीय स्कूल का दृश्य पानी का भरा डाबरा
रतलाम के पैलेस रोस्कूल में उगी खरपतवार

जबकि यह तो भली-भांति सभी परिचित हैं कि प्रदेश के शासकीय स्कूलों की दिशा और दशा कैसी है। स्कूल के आस-पास गंदगी भरा माहौल पानी से भरे डाबरे। बदबूदार शौचालय। ना जाने कब साफ की हुई पानी की टंकी का पानी। कीड़े मकोड़े मच्छरों की भरमार। गांव ही नहीं जिला मुख्यालय के शासकीय स्कूलों के भी यही हाल और हालात हैं। कचरे और गंदगी के ढेर के सामने स्कूल का संचालन हो रहा है। ऐसे में बच्चे की सेहत कैसे सही रह सकती है। वह कैसे बीमारी की चपेट में आने से बच सकते हैं। इस बारे में जिम्मेदारों ने न तो सोचा है और न ही उनको किसी से लेना देना है। उनका उद्देश्य तो केवल और केवल निजी स्कूल संचालकों को स्कूल चलाने के नाम पर मोटी फीस वसूलने का अधिकार जो देना है, वह दे दिया जबकि सभी को पता है कि निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने की अनुमति बहुत कम देंगे।

और भरेगा उनका भी मोटा पेट

मुद्दे की बात यह भी है कि सरकार ने शायद मध्याह्न भोजन (Midday meal) परोस गारी में लगने वाला बड़े-बड़े ठेकेदारों का पेट भरने के लिए भी स्कूल खोलने के फरमान जारी कर दिए हैं। क्योंकि सूखा अनाज वितरण करने में तो उन्हें कोई लाभ नहीं मिल रहा है लेकिन जब मध्यान भोजन बनाकर स्कूलों में वितरित करेंगे तो मनमानी करने का पूरा पूरा अवसर मिलेगा। सरकार ने चंद प्रभावी लोगों के इशारों पर उनको अच्छा खासा लाभ पहुंचाने के लिए तीसरी लहर की संभावनाओं के बावजूद स्कूल खोलने जैसा कदम उठा लिया है जो कि विवेकपूर्ण नहीं कहा जा सकता है।

रही बात 10वीं और 12वीं के विद्यार्थियों के लिए तो ऐसे अभिभावक जरूर चिंता में ही कि वे क्या करें। अपने लाड़ले को स्कूल भेजकर उनका भविष्य संवारने में कदम उठाएं या फिर उनकी जिंदगी के मद्देनजर 1 साल और इंतजार करें अच्छे भविष्य का।

क्योंकि सरकार ने जो फरमान दिया है उसमें यदि बच्चे तीसरी लहर की चपेट में आ गए तो फिर जो कयामत आएगी, वह किसी से सम्भलेगी कहना मुश्किल है। इन्हीं बच्चों के कारण परिवार के परिवार भी मौत के मुंह में समा जाएंगे। बच्चों से संक्रमण पूरे परिवार में फैलेगा। बड़े तो और भी मास्क लगा लेते हैं। हैंड सेनीटाइजर कर लेते हैं, लेकिन बच्चे तो बच्चे ही ठहरे। वो इधर उधर भाग दौड़ लगाएंगे। बार-बार मास्को को ठीक करेंगे और खास बात तो यह है कि स्कूल में मास्क लगाकर बैठना नामुमकिन है। जबकि सभी जानते हैं कि घंटों तक मास्क लगाना बड़ों के लिए भी मुश्किल ही नहीं काफी मुश्किल है।

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