सैनिक पृष्ठभूमि से हैं, लड़ना कैसे छोड़ देंगे, राजनीतिक जीवन में स्वाभिमानी रहे हैं कैप्टन

 तब पार्टी ने शिरोमणी अकाली दल को शिकस्त, वहीं आम आदमी पार्टी के सपने भी कर दिए चकनाचूर

हरमुद्दा
पंजाब, 18 सितंबर। कैप्टन अमरिंदर सिंह की गिनती कांग्रेस के सबसे मजबूत क्षेत्रीय नेताओं में की जाती रही है। 2017 विधानसभा चुनाव में उनके नेतृत्व में ही पार्टी ने 117 में 77 सीटों पर जीत दर्ज की थी और 10 साल बाद कांग्रेस का पुनरुत्थान किया। तब पार्टी ने न केवल शिरोमणी अकाली दल को शिकस्त दी थी, बल्कि आम आदमी पार्टी के सपने भी चकनाचूर कर दिए थे।

सैनिक पृष्ठभूमि से हैं, लड़ना कैसे छोड़ देंगे

सीएम अमरिंदर सिंह, पटियाला के दिवंगत महाराजा यादविंदर सिंह के बेटे हैं। लॉरेंस स्कूल सनावर और देहरादून स्थित दून स्कूल से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद जुलाई 1959 में उन्होंने NDA यानी राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में दाखिला लिया। दिसंबर 1963 में वहां से स्नातक हुए और फिर 1963 में भारतीय सेना में शामिल हो गए. उन्हें उसी दूसरी बटालियन सिख रेजिमेंट में तैनात किया गया, जिसमेंउनके पिता और दादा ने सेवाएं दी थी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सैनिक पृष्ठभूमि से आने वाले कैप्टन इतनी जल्दी हार मानने वालों में से नहीं हैं।

लड़ाका रहे हैं कैप्टन, किया युद्ध भी

अमरिंदर ने फील्ड एरिया-भारत तिब्बत सीमा पर दो साल तक सेवाएं दी हैं। हालांकि सेना में उनका करियर छोटा रहा। पिता को इटली का राजदूत नियुक्त किए जाने के बाद 1965 की शुरुआत में उन्होंने सेना से इस्तीफा दे दिया था क्योंकि घर पर उनकी जरूरत थी। हालांकि पाकिस्तान के साथ युद्ध छिड़ने के तत्काल बाद फिर से सेना में शामिल हो गए और युद्ध अभियानों में हिस्सा लिया। युद्ध समाप्त होने के बाद 1966 की शुरुआत में उन्होंने फिर से इस्तीफा दे दिया।

राजनीतिक जीवन में स्वाभिमानी रहे हैं कैप्टन

जनवरी 1980 में सांसद के तौर पर उनका राजनीतिक करियर शुरु हुआ. स्वाभिमानी स्वभाव वाले अमरिंदर ने 1984 में ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ के दौरान स्वर्ण मंदिर में सेना की एंट्री से उन्हें ठेस पहुंचा। उन्होंने इसके विरोध में लोकसभा की सदस्यता और कांग्रेस पार्टी, दोनों से इस्तीफा दे दिया। अगस्त 1985 में वे अकाली दल में शामिल हुए और फिर 1995 के चुनावों में लोंगोवाल के विधायक के तौर पर चुने गए। सुरजीत सिंह बरनाला की सरकार में वे कृषि मंत्री भी रहे। बाद में उन्होंने पंथिक अकाली दल का गठन किया जिसका 1997 में कांग्रेस में विलय हो गया। हालांकि 1998 में पटियाला से कांग्रेस के टिकट पर वे संसदीय चुनाव हार गए।

लंबे समय तक संभाली है कांग्रेस की कमान

1999 से 2002 के बीच पे कांग्रेस की पंजाब इकाई के प्रमुख रहे। 2002 में पार्टी ने विधानसभा चुनाव जीता और वे 2002 से 2007 तक मुख्यमंत्री रहे। जमीन हस्तांतरण मामले में गड़बड़ियों के आरोप में उन्हें सितंबर 2008 में बर्खास्त कर दिया गया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में उन्हें राहत देते हुए उनके निष्कासन को असंवैधानिक करार दिया। फिर वे वर्ष 2013 तक कांग्रेस प्रदेश प्रमुख रहे। वर्ष 2014 में मोदी लहर के बावजूद उन्होंने लोकसभा चुनाव में अमृतसर सीट से बीजेपी नेता अरुण जेटली को एक लाख से अधिक वोटों के अंतर से हरा दिया। 2017 में पार्टी ने उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा और वे तब से मुख्यमंत्री पद पर बने हुए हैं। अपने युद्ध संस्मरणों के अलावा भी उन्होंने कई किताबें लिखी है।

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