कवि यूसुफ़ जावेदी की कलम से : ओहो ! कमाल की बारिश थी, कल की बारिश
ओहो ! कमाल की बारिश थी कल की बारिश
यूसुफ़ जावेदी
कल की बारिश
ओहो…!
कमाल की बारिश थी
जैसे चुनावी दौर में
नेताओं का आना – जाना
सभा – सभा में चीखना – चिल्लाना
वादों के बादलों का फट – फट जाना
ओहो ! कमाल की बारिश थी
जैसे मूसलाधार
भाषणों का बरसना, गरजना
और अपना जलवा बिखेरते ही
फुर्र ररर..से उड़ जाना
ओहो ! कमाल की बारिश थी
जन – जीवन का
बदहवास हो जाना
बिना मुस्कुराए
एक दूसरे को देखते हुए
अपने – अपने दुख -दर्द साझा करना
कटी -फटी सड़कों,
गहरा गए गढ्ढों को निहारना
और फिर खामोशी से
अपने अपने घर – आँगन में बिखरी
गन्दगी को बुहारना
ओहो ! कमाल की बारिश थी
कमोबेश
यही होता है
हर बारिश और चुनाव के बाद
कल की बारिश
ओहो ! कमाल की बारिश थी ।