यत्र,तत्र, सर्वत्र गड्ढे और भविष्य
🔲 आशीष दशोत्तर
भविष्य जैसे ही गड्ढे में गिरा ,तत्काल यह ख़बर फैल गई। यहां से वहां और कहां से कहां तक। कब गिरा ,कैसे गिरा ,क्यों गिरा, किसके कारण गिरा और ऐसे कई सारे सवाल उठने लगे। जितने मुंह उतने सवाल। सबके अपने-अपने कयास । अपने -अपने तर्क थे।
भविष्य गड्ढे में गिर चुका था और उसे गड्ढे से बाहर निकालने के लिए यह जानना ज़रूरी था कि वह गिरा कैसे? किसी ने बताया कि भविष्य वर्तमान की शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्कूल गया था। वहीं से लौट रहा था तभी तेज़ बारिश शुरू हुई। सड़क पर पानी भरने के कारण भविष्य को गड्ढा नहीं दिखा। वर्तमान के गड्ढे खुद वर्तमान ही नहीं देख पा रहा है तो भविष्य भला कैसे देखता।
सभी का रुख स्कूल की तरफ हो गया। गड्ढों से बचने की शिक्षा भविष्य को स्कूल में क्यों नहीं दी गई ? जब उसे गड्ढों भरे शहर में रहना है तो कम से कम ऐसी सड़क पर चलने के गुर तो उसे सिखाना ही चाहिए।
स्कूल वाले ने अपना दुखड़ा सुनाया। वहां पता चला कि स्कूल में भी गड्ढे ही गड्ढे हैं। शिक्षा के गड्ढे, परीक्षा के गड्ढे, दुविधा के गड्ढे, कमियों के गड्ढे। छत पर गड्ढे , ज़मीन पर गड्ढे। इतने गड्ढों से बचने के उपाय समझाते- समझाते सड़क के गड्ढों का नंबर कहां पाता? लिहाजा उसे सड़क के गड्ढों से अवगत नहीं कराया गया।
गुरू ने अपने ऊपर आई बला को टालते हुए कहा, घर वालों को तो यह शिक्षा देनी ही चाहिए। अब सभी का रुख भविष्य के घर की तरफ था। घर पहुंचते ही कई सारे गड्ढे घरवालों ने गिना दिए। कमाने, खाने से लेकर गंवाने, दिखाने तक के गड्ढे यहां भी मौजूद थे।
तभी कहीं से यह प्रश्न उड़ता हुआ आया कि सड़क पर गड्ढे का जिम्मेदार जो है उसी से पूछा जाए। आखिर यह गड्ढा क्यों है? लोगों का रुख गड्ढे सुधारने वाले दफ्तर की तरफ हुआ। वहां पहले से ही कई गड्ढे थे। गड्ढों में गड्ढे थे। मूल गड्ढे में पूरक गड्ढे। सुधरे हुए गड्ढों में से झांकते गड्ढे । दफ्तर में बताया गया कि जिस गड्ढे में भविष्य गिरा, वह गड्ढा कोई नया नहीं है । भविष्य को रोज़ आते -जाते उस गड्ढे को देख लेना चाहिए था। कम से कम भविष्य अपने वर्तमान पर इतनी नज़र तो रख ही सकता है,वरना उसका भविष्य उज्जवल कैसे होगा? जिस गड्ढे में भविष्य गिरा वह ‘भूत’ की देन है, वर्तमान में कायम है इसलिए पूरी उम्मीद है कि भविष्य में भी रहेगा ही। भविष्य को अपना भविष्य सुधारना है तो उसे कम से कम ऐसे स्थायी गड्ढों से तो परिचित होना ही चाहिए ।
गड्ढों के जाल में उलझते लोगों को अब विश्वास हो गया था कि गड्ढे स्थाई हैं। इन्हें कोई नहीं भर सकता। चलने वालों को गुड्ढों के अनुसार अपने आप को ढालना होगा। गड्ढों में गिरते भविष्य को स्वयं ही निकालना होगा।