मिनी इंडिया में 111 साल, सेवा का सिलसिला बेमिसाल : अन्नपूर्णा की बरस रही कृपा यहां, कोई नहीं सोता भूखा जहां
🔲 श्री अन्नपूर्णा अन्नक्षेत्र ट्रस्ट के ट्रस्टी रहते हैं परदे के पीछे, नहीं है चाहत प्रसिद्धि की
🔲 संत की सेवा से शुरू हुआ संकल्प, उनके लिए ठहरने का हो गया विकल्प
हेमंत भट्ट
रतलाम, 13 अक्टूबर। संत की भोजन सेवा से शुरू हुआ संकल्प, उनके लिए ठहरने का हो गया विकल्प। मिनी इंडिया में अतिथियों के ठहरने एवं भोजन की व्यवस्था की सेवा का बेमिसाल सिलसिला 111 साल से चल रहा है। यहां मां अन्नपूर्णा की कृपा बरस रही है। जहां कोई भूखा नहीं सोता। अनुकरणीय और स्तुत्य बात यह है कि श्री अन्नपूर्णा अन्नक्षेत्र ट्रस्ट के ट्रस्टी परदे के पीछे ही रहते हैं। इन्हें प्रसिद्धि की चाहत नहीं है। ट्रस्टियों का यही कहना है कि भोले बाबा करते हैं हम कुछ नहीं।
हम बात कर रहे हैं सेंव, सोना, साड़ी से पहले सेवा, सत्कार, आत्मीयता के लिए प्रसिद्ध रतलाम शहर के दक्षिणी क्षेत्र में बने श्री अन्नपूर्णा अन्न क्षेत्र की।
ऐसे बना अन्नक्षेत्र
बात दशकों पुरानी हैं जब साधु संत रतलाम आते थे चांदनी चौक में कुछ व्यापारियों से मुलाकात होती थी व्यापारी उनकी भोजन सेवा करते थे, 4 से 6 मित्र मिलकर ₹2 के खर्च में साधु संतों की भोजन सेवा कर देते थे। तभी किसी संत ने कहा कि भक्तजनों यदि रुकने का इंतजाम हो जाए तो बेहतर होगा। फिर क्या था नारायण बंशीधर सुरेका के मन में आया और चिंतन शुरू कर दिया। अमृत सागर तालाब से कुछ दूरी पर पहले ही जहां कुम्हारों के भट्टे चलते थे। मटके और इंटे बनाई जाती थी। बात चली और जन सहयोग के लिए हाथ बढ़े। कुम्हारों ने ईट उपलब्ध करवाई तो किसी ने कुछ अन्य सामग्री, श्रमदान हुआ। सन 1910 भोलेनाथ के मंदिर की स्थापना और दो कमरे बना दिए गए ताकि साधु-संत पूजा पाठ भी करें और आराम भी कर सकें। बस यही से भोजन सेवा का संकल्प ठहरने के विकल्पों में तब्दील हो गया।
1967 में बनाया ट्रस्ट
साधु संतों की सेवा का यह सिलसिला सालों साल जनसहयोग से बदस्तूर चलता रहा। दानी आते रहे और आमदनी बढ़ती रही सेवा के लिए। मगर हिसाब किताब की पारदर्शिता के लिए ट्रस्ट बनाने पर विचार किया और 1967 में श्री अन्नपूर्णा अन्न क्षेत्र ट्रस्ट बोर्ड का गठन किया गया। नाथूलाल सुरेका, राजमल चौरड़िया, पन्नालाल कटारिया, माणक भाई अग्रवाल, पूनमचंद पाटनी, हीरालाल सुरेका, मधुकांत पुरोहित, गोविंद सुरेका जैसे समाजसेवी ट्रस्ट से जुड़े और विस्तार करते रहे। वर्तमान में सुरेंद्र सुरेका, प्रमोद पाटनी, अनोखीलाल कटारिया, चंद्रकांत काबरा, सुभाष अग्रवाल, पंकज कटारिया, विष्णु बैरागी ट्रस्ट जुड़े हुए हैं। हरमुद्दा Harmudda के निवेदन पर ही नाम भी मिले हैं अन्यथा ट्रस्टीजन नाम बताने में भी हीचक महसूस कर रहे थे कि करते तो भोले बाबा हैं। हमारा नाम देने की जरूरत नहीं है। फोटो खिंचाने से तो सभी परहेज करते हैं। कैमरे के आगे आकर दिखावा करने की भूख इनमें नहीं है। यहां पर जो भी आता है वह भगवान के प्रति नतमस्तक होता है गत दिनों श्रंगेरी मठ कांचीपुरम के संत आत्मानन्द सरस्वती आए और फुल्हार से उनका सम्मान करने लगे तो उन्होंने कहा भोले बाबा को हार पहनाओं, मुझे नहीं। हार लिया और भोले बाबा को चढ़ा कर प्रणाम किया।
इसलिए मिनी इंडिया
अन्नक्षेत्र में वर्तमान में तकरीबन 55 महिला व पुरुष निवासरत हैं, जो कि देशभर के विभिन्न राज्यों केरल, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर भारत, दक्षिण भारत, पूर्वी भारत, पश्चिमी भारत से रतलाम आने वाले कई लोग स्टेशन पर उतरे और यही के हो गए, उनकी सेवा सुश्रुषा में ट्रस्ट तल्लीन है। रात को टीवी पर धार्मिक सीरियल भी देखते हैं।
जरूरत होने पर होती है शल्य चिकित्सा भी
अन्नपूर्णा अन्न क्षेत्र में दोनों समय भोजन, दवाई, दूध सहित अन्य सेवा मिलती है। चिकित्सा सेवा के लिए जिला चिकित्सालय ले जाते हैं। जहां पर चिकित्सक इन लोगों का तत्काल परीक्षण करते हैं। दवाई उपलब्ध कराते हैं। जिला चिकित्सालय के चिकित्सकों के अलावा निजी तौर पर डॉ. कीर्ति शाह, डॉ. अशोक सराफ, लेखराज पाटीदार सहित अन्य चिकित्सक भी अपनी सेवाएं समय-समय पर देते रहते हैं। जरूरत होने पर निशुल्क शल्य चिकित्सा भी करते हैं।
स्थाई कोई नहीं यहां पर
स्थाई यहां पर कोई नहीं रहता है। जब जितनी इच्छा होती रहता है। कह कर दूसरे गंतव्य की ओर रवाना हो जाते है। ट्रस्ट के माध्यम से तकरीबन 500 लोग आजीवन सहयोगी बने हैं जिसका शुल्क मात्र ₹10000 हैं। इस जमा पूंजी से सभी प्रकार की सेवा होती है। जन्मदिन, पुण्यतिथि या अन्य प्रसंग पर पर भी लोग आते हैं और भोजन प्रसादी के लिए नाम दर्ज करवाते हैं तो सादा भोजन के लिए ₹500 और मिठाई युक्त भोजन के लिए ₹1000 एक समय के लिए लिए जाते हैं। 111 महिला पुरुषों का भोजन हर दिन सुबह शाम तैयार होता है। दूध सेवा के लिए ₹300 शुल्क तय है। विभिन्न सेवाओं के लिए कम राशि लेने का उद्देश्य यही है कि आजीवन सहयोगी द्वारा जमा की गई राशि के ब्याज से भी पूर्ति होती है। पारदर्शिता इतनी है कि रसीद काटने के पहले मददगार को पहले ही बता दिया जाता है कि सिर्फ एक के नाम पर ही आयोजन नहीं होता है। सभी का जन सहयोग इसमें रहता है।