गांधीवाद का एक प्रमुख स्तम्भ ढह गया डॉ. एस.एन. सुब्बाराव के अवसान से
डॉ. खुशहाल सिंह पुरोहित
प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक डॉ. एस.एन.सुब्बाराव के अवसान से गांधीवाद का एक प्रमुख स्तम्भ ढह गया, देश विदेश के लाखों युवा उन्हें प्यार से भाई जी कहते थे। आपके पूर्वज तमिलनाडु से सेलम आए थे, इसी कारण उनका पूरा नाम सलेम नंजुंदइयाह सुब्बाराव प्रसिद्ध हुआ। तरुणाई के दिनों में महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के कारण आपको 13 वर्ष की आयु में जेल यात्रा भी करना पड़ी। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद आपका सारा जीवन युवाओं को राष्ट्रीयता, भारतीय संस्कृति, सर्व धर्म समभाव और राष्ट्र निर्माण में जोड़ने मे बीता। भाई जी की आवाज़ में जादू था, वे कई भाषाओं में प्रेरक गीत गाते थे, उनके द्वारा गाया गया बहुभाषी अंतर-भारती गीत राष्ट्रीय एकता का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
थकना-रुकना नहीं सीखा जीवन में
भाई जी का सम्पूर्ण जीवन सामाजिक सक्रियता का पर्याय था, जीवन में थकना और रुकना तो उन्होंने सीखा ही नहीं था। राष्ट्रीय युवा योजना के माध्यम से भाई जी ने देश के हर प्रांत में युवाओं के लिए शिविर लगाए। देश-विदेश में युवा शिविरों में उनकी उपस्थिति से भारतीय जीवन मूल्य, स्वतन्त्रता संग्राम और गांधी दर्शन की त्रिवेणी धारा निरंतर प्रवाहमान रहती थी। जिन लोगो को भाई जी से मिलने का या उनका भाषण सुनने का अवसर मिला है वे जानते हैं कि भाई जी से मिलना, चर्चा करना या भाषण सुनना नए अनुभव के दौर से गुजरना होता था। संक्षेप में कहे तो गांधी युग और उनके संदर्भ भाई जी की चर्चा के मुख्य विषय होते थे।
ज्यादातर समय रहते थे प्रवास पर, तो नहीं था स्थायी घर
सुब्बाराव जी का कोई स्थायी निवास नहीं था, ज़्यादातर समय वे प्रवास में रहते थे। बहुत सीमित संसाधनों में भी जीवन निर्वाह हो सकता है, यह भाई जी से सीखा जा सकता है। दो खादी के झोलों में दो जोड़ कपड़े, एक टाइपराइटर, डायरी, कुछ किताबें, कागज और पोस्टकार्ड यही उनका घर था। हमेशा हाफ पैंट और खादी की शर्ट उनकी पोशाक थी, जो उनकी खास पहचान बन गयी थी।समय प्रबंधन और यात्रा के दौरान समय का बेहतर उपयोग भी भाईजी के व्यक्तित्व की विशेषता रही हैं।
दस्यु समस्या के कारण चर्चा में थी चंबल घाटी
भाई जी की चंबल घाटी में डाकुओं के आत्मसमर्पण में प्रमुख भूमिका रही हैं। बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में चंबल घाटी दस्यु समस्या के कारण चर्चा में थी। ऐसी परिस्थितियों में चंबल घाटी में सुब्बाराव जी शांति स्थापना को लेकर विश्वास व आशा की किरण के रूप में अवतरित हुए और उनके गांधीवादी प्रयासों का ही असर हुआ जो बागी आत्मसमर्पण की ऐतिहासिक घटना के रूप में विश्व के सामने आया। महात्मा गांधी सेवा आश्रम की स्थापना उस समय की तात्कालिक हिंसाग्रस्त चंबल घाटी में शांति स्थापित करने के लिए हुई और बाद में गांधीवादी सिद्धांतों के माध्यम से गरीब और वंचित समुदाय के जीवन में खुशहाली लाने के लिए अनेकों गतिविधियों की शुरुआत हुई।