अलौकिक प्रतिभा के लोक कल्याणकरी आदि गुरु शंकराचार्य

पूज्य श्री आदि गुरु शंकराचार्य जी अलौकिक प्रतिभा, चरित्रबल , तत्वज्ञान और लोक कल्याण के लिए छोटी से उम्र में देश के प्रति समर्पण करने वाले महाज्ञानी थे। पूज्य श्री आदि गुरु शंकराचार्य जी के विषय में कुछ भी लिखना समुन्द्र के सामने एक नन्ही सी बूंद के समान है। उनकी महानता को लिखने के लिए कलम स्याही सब तुच्छ पड़ जाएंगे।
केरल के कालड़ी में हुआ जन्म
पूज्य श्री आदि गुरु शंकराचार्य जी
का जन्‍म तकरीबन ढाई हजार साल पहले 788 ई. में केरल के कालड़ी नामक ग्राम में हुआ था। वह अपने ब्राह्मण माता-पिता की एकमात्र सन्तान थे। बचपन में ही उनके पिता का साया उठ गया। ये महान बुद्धि जीवी और जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे | उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन धर्म के नाम कर दिया और अथाह ज्ञान की प्राप्ति कर इसे संसार में प्रसारित किया | हिन्दू धर्म के उत्थान के लिए प्रसिद्ध मंदिरों और देवालयों की स्थापना की | आज पूरा विश्‍व उन्‍हें आदि गुरु शंकराचार्य के नाम से जानता है।
अद्वैत वेदांत के प्रणेता को
बचपन में ही कंठस्‍थ थे चारों वेद
आदि शंकराचार्य अद्वैत वेदांत के प्रणेता थे। उनके विचारोपदेश आत्मा और परमात्मा की एकरूपता पर आधारित हैं जिसके अनुसार परमात्मा एक ही समय में सगुण और निर्गुण दोनों ही स्वरूपों में रहता है।
ओंकारेश्वर में मिले गुरु गोविंद योगी
आठ वर्ष की उम्र में गृहस्‍थ जीवन को त्‍यागकर संन्‍यास जैसे जीवन का कठिन रास्‍ता अपनाने वाले इस बालक ने कई सालों तक पहाड़ों, जंगलों और कंदराओं में अपने गुरु की तलाश की। मध्‍य प्रदेश स्‍थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में उन्‍हें गुरु गोविंद योगी मिले।
किया हिंदू धर्म का प्रचार
शंकराचार्य ने पूरे भारत की यात्रा करते हुए देश में हिंदू धर्म का प्रचार किया। चारों दिशाओ में चार पीठों की स्‍थापना कर भारत को हिंदू दर्शन, धर्म और संस्‍कृति की अविरल सनातन धारा में पिरो दिया। आज भारत के चार दिशाओं में चार धाम जो है वह शंकराचार्य द्वारा बताए गए हैं।आज जिस हिंदू धर्म का स्‍वरूप हमें दिखाई देता है वह शंकराचार्य का ही बनाया हुआ है।
शताधिक ग्रंथों की रचना
बारहवें वर्ष में सर्वशास्त्र पारंगत और सोलहवें वर्ष में उन्‍होंने ब्रह्मसूत्र- भाष्य रच दिया। उन्होंने शताधिक ग्रंथों की रचना शिष्यों को पढ़ाते हुए कर दी। भारतीय इतिहास में शंकराचार्य को सबसे श्रेष्‍ठतम दार्शनिक कहा गया। उन्‍होंने अद्वैतवाद को प्रचलित किया।
लिखे दुर्लभ भाष्य
उपनिषदों, श्रीमद्भगवद गीता एवं ब्रह्मसूत्र पर ऐसे भाष्य लिखे जो दुर्लभ हैं। इसके अलावा उपनिषद, ब्रह्मसूत्र एवं गीता पर भी उन्‍होंने लिखा। वे अपने समय में उत्कृष्ट विद्वान एवं दार्शनिक थे। आज भी दुनिया में उनके जैसा अद्वैत सिद्धान्त दुर्लभ है।
सभी दार्शनिकों पर शंकराचार्यजी का प्रभाव
भारतीय सभ्‍यता के इतिहास में शंकराचार्य जैसा विद्वान नहीं हुआ। भारत में सही मायनों में उनके बाद कोई दार्शनिक ही नहीं रहा। बाद में जितने भी दार्शनिक हुए उन पर शंकराचार्य का प्रभाव साफ देखा जा सकता है।

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