होती है शब्दों में जान इन्ही से होती प्रार्थना, अरदास, अजान: श्री राजेशमुनिजी

हरमुद्दा
रतलाम,9 मई। मीठे बोल बोलिए, क्योंकि शब्दों में जान होती है। इनसे आरती,प्रार्थना,अरदास और अजान होती है। शब्द समंदर के मोती हैं, इनसे इंसान की पहचान होती है। यह बात अभिग्रह धारी, उग्र विहारी,तप केसरी एवं शेर-ए-पंजाब की उपाधि से अलंकृत श्री राजेश मुनिजी ने कही। वे नोलाईपुरा स्थित श्री धर्मदास जैन स्थानक में गुरुवार सुबह धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे।
अपना रवैया नहीं भूलता
उन्होंने कहा कि भक्तामर सूत्र लिखने वाले मानतुंगाचार्य की भाषा मीठी और सारगर्भित है। उसे पढ़कर शब्दों की ताकत का आभास होता है। पानी यदि मर्यादा तोड़ दे, तो नाश हो जाता है। वाणी यदि मर्यादा तोड़ दे, तो विनाश हो जाता है। ना मेरा एक होगा,न तेरा लाख होगा, घमंड ना कर इस शरीर का, तेरा भी खाक होगा मेरा भी खाक होगा। उन्होंने कहा रिश्तों की सिलाई भावना से हो तो टूटना मुश्किल है और यदि रिश्तों की सिलाई स्वार्थ से हो, तो टिकना मुश्किल है। इंसान मकान बदलता है,दोस्त बदलता है, रिश्ते बदलता है, फिर भी दुखी रहता है। क्योंकि अपना रवैया नहीं भूलता है।
प्रभु का नाम ही सुख शांति संभव
तपकेसरी जी ने कहा कि महाज्ञानी व्यक्ति भगवान की भक्ति करते हैं ,तो हमें तो उनकी भक्ति करनी चाहिए। दुनिया शैतान और स्वार्थी है। इसमें प्रभु का नाम ही हमें सुख तथा शांति दे सकता है। अन्यथा समंदर की शैतानी देखिए जिंदे थे, तो तैरने नहीं दिया और मर गए, तो डूबने नहीं दिया। दवा जेब में नही बल्कि शरीर में जाती है, तो असर करती है और भगवान की वाणी कान में नहीं अपितु जीवन में उतरती है, तो असर करती है।
उन्होंने कहा कि ज्ञानी व्यक्ति बहस नहीं करते, चर्चा करते हैं। बहस इसलिए की जाती है कि कौन सही है, जबकि चर्चा इसलिए की जाती है कि क्या सही है। सिद्ध बनने का लक्ष्य लेकर चले और उसी लक्ष्य पर लगातार पुरुषार्थ होना चाहिए। विडंबना है कि थोड़ा ज्ञान प्राप्त करके ही व्यक्ति भटक जाता है। सिद्ध बनने के बजाय वह सिद्ध करने लग जाता है कि यह सही है और वह सही है। जबकि ज्ञानी पुरुष या तो चुप रहते हैं या ऐसा जवाब देते हैं कि सामने वाला निरुत्तर हो जाता है।
खुशी में न करें वादा
मुनिश्री ने कहा भगवान के दर्शन, उनकी वाणी, जीवों की पीड़ा को हरने वाली होती है। इसलिए सामान्य लोगों के लिए वह अलंकार के रूप में होती है। हम जब ऐसा मानते हैं, तब गुस्से में फैसला नहीं लेने और खुशी के समय वादा नहीं करने पर सहमत होते हैं।
गुरुभक्त रहे मौजूद
धर्मसभा में सेवाभावी श्री राजेंद्र मुनिजी म.सा.भी उपस्थित थे। अंत मे अक्षय तृतीया पारणा महोत्सव के लाभार्थी सागरमल हीरालाल मेहता परिवार की ऐशवी मेहता ने आभार व्यक्त किया । संचालन सौरभ मूणत द्वारा किया गया। इस अवसर पर रतलाम एवं आसपास के कई स्थानों के गुरुभक्त मौजूद रहे।
अभिग्रहधारी ने पूर्ण किया 1585 वां अभिग्रह
मालव केसरी श्री सौभाग्यमलजी महाराज एवं आचार्य प्रवर श्री उमेशमुनिजी के कृपापात्र, घोर तपस्वी श्री कानमुनिजी के सुशिष्य अभिग्रहधारी श्री राजेश मुनिजी ने गुरुवार को अपना 1585 वां अभिग्रह (संकल्प) पूरा किया। इस अभिग्रह में मुनिश्री का संकल्प था कि कोई व्यक्ति दोनो कानों में उंगली डाले, एक पांव पर खड़े होकर पारणे की विनती करें, तो शुरुआत करेंगे। किसी के नाक पर आटा लगा होना चाहिए। किसी के हाथ में ₹100 का नोट होना चाहिए। किसी के हाथ में 15 बिस्किट होना चाहिए। किसी कुंवारी कन्या के हाथ में गुड हो और कोई आठ व्यक्ति किचन में हो जिनमें से पांच को मुंह पत्ती लगी हुई हो। मुनि श्री सुबह 6:00 बजे स्थानक से निकले और चांदनीचौक में संदीप कुमार, मनीष चोरड़िया के यहां 6:50 बजे उनका संकल्प पूरा हो गया। उन्हें संदीप कान में उंगली डालकर एक पैर पर खड़े होकर विनती करते नजर आए, रिंकू चोरडिया, ममता मंडलेचा, शुभि मूणत, सलोनी मेहता, दर्शना मेहता, मधु गांधी, लोकेश मेहता,सुमन राठौर किचन में मिले इनमें से सुमन, मधु,शुभि, दर्शना और रिंकू ने ने मुह पत्ती लगा रखी थी। ममता मंडलेचा के पास 15 बिस्किट थे जबकि लोकेश मेहता की नाक पर आटा लगा मिला। सलोनी मेहता के पास ₹100 का नोट और दर्शना के हाथ में गुड़ मिला। संकल्प पूरा होने के बाद मुनिश्री ने दो दिन के उपवास बाद पारणा किया। मुनिश्री के अभिग्रह के दौरान बड़ी संख्या में भक्तगण मौजूद रहे।

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