“लौटकर गुरुवर जल्दी आना” के स्वरों के बीच रतलाम से विहार
हरमुद्दा
रतलाम,10 मई। “हमारी विनती भूल ना जाना, लौटकर गुरुवर जल्दी आना ” के उदघोष के बीच शुक्रवार को अभिग्रहधारी, उग्र विहारी, तप केसरी एवं शेरे-ए-पंजाब की उपाधि से अलंकृत श्री राजेशमुनिजी एवं सेवाभावी श्री राजेंद्रमुनिजी का श्री धर्मदास जैन मित्र मंडल स्थानक नौलाईपुरा से विहार हो गया। इससे पूर्व प्रवचन में जीवन मे सदैव सत्य बोलने की प्रेरणा दी।
सच बोलने वाले पर दुश्मन भी करता विश्वास
मालव केसरी श्री सौभाग्यमलजी महाराज एवं आचार्य प्रवर श्री उमेशमुनिजी के कृपापात्र, घोर तपस्वी श्री कानमुनिजी के सुशिष्य अभिग्रहधारी श्री राजेश मुनिजी ने कहा उन्होंने कहा कि झूठ बोलने वाले पर दुनिया अविश्वास करती है,लेकिन सच बोलने वाले पर दुश्मन भी विश्वास करता है। सत्य परेशान हो सकता है,पराजित नहीं। महाभारत के दौरान सारी सेना और भाइयों की मौत के बाद दुर्योधन ने युधिष्ठिर से पूछा था कि में जीतू और तुम्हारी हार हो,ऐसा कैसे हो सकता है। युधिष्ठिर ने तब कहा था कि तुम्हारी माता यदि आंखों की पट्टी खोलकर देख ले, तो तुम लोहे के बन जाओगे। युधिष्ठिर सत्य बोलते थे, इसलिए दुश्मन ने भी उनपर भरोसा किया और माता की आंख खुलने से वह वज्र सा बन गया था। दरअसल सच बोलने में दिमाग नही लगाना पड़ता, जबकि झूठ बोलने में बहुत दिमाग लगता है। झूट बेसहारा होता है।सहारा नही मिले, तो छत भी टिकती, इसलिए झूट का त्याग करना ही श्रेयस्कर कर है।
सर्वश्रेष्ठ तप ब्रह्मचर्य व्रत का पालन
तपकेसरीजी ने कहा कि दानों में सर्वश्रेष्ठ दान, अभयदान और तपों में सर्वश्रेष्ठ तप ब्रह्मचर्य व्रत का पालन है।संसार मे जीतने भी महापुरुष हुए है, उनमें से अधिकांश ने ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया है। जैन धर्म में भी दीक्षित होने वाले साधु-संत जीवनभर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते है। उन्होंने कहा कि संसार मे किसी से लगाव नहीं रखने वाला ही दूसरों का कल्याण कर सकता है। घर-परिवार से युक्त व्यक्ति स्वार्थी होता है,वह दूसरों का कल्याण करने से पहले अपना कल्याण सोचता है। प्राणी मात्र से प्रेम करने वाला ही संसार का त्याग करता है। भगवान महावीर, गौतम बुध्द आदि सभी महापुरुषो ने परिवार को साधना में बाधक माना। वे साधना के लिए जंगल मे चले गए।
पहला कार्य सोच समझकर
मुनिश्री ने कहा कि दुनिया मे ऐसा कोई व्यक्ति नही,जिसे कोई समस्या नहीं है और दुनिया में ऐसी कोई समस्या भी नही है, जिसका समाधान नही हो। हमें तप और वचन के बल से समस्याओं को सुलझाने पर ध्यान देना चाहिए। शर्ट का पहला बटन सही लगता है, सारे बटन सही लगते है। उसी प्रकार पहला कार्य सोच समझकर करना चाहिए। कहीं कोई अच्छा कार्य हो रहा हो, तो उसमें बाधक नहीं बनना चाहिए। इसके लिए हमेशा “भाग लो या भाग लो” के फार्मूले पर अमल करना चाहिए। प्रवचन के दौरान सेवाभावी श्री राजेंद्रमुनिजी मौन साधना में रहे। संचालन सौरभ मूणत ने किया। प्रवचन के बाद मुनिद्वय ने जावरा तरफ विहार किया। नोलाईपुरा से विहार कर वे टीआईटी रोड स्थित भरत भाई मेहता के निवास पर पहुँचे। अल्प विश्राम के बाद यहां से विहार कर दिया। 11 मई को मुनिद्वय का जावरा में मंगल प्रवेश संभावित है।