आखिर कैसे होगा नियमों का पालन : शहर की स्वच्छता के लिए नहीं करना जिम्मेदारों को कोई काम, चाहिए बस इनाम, और कर्फ्यू में भी बारात निकालने की दे दी परमिशन
हेमंत भट्ट
राष्ट्रीय स्तर की स्वच्छता की दौड़ में रतलाम को भी पुरस्कार मिले। यह चाहत तो सभी जिम्मेदारों की है। लेकिन मुद्दे की बात तो यह है कि जिम्मेदारों को तो पुरस्कार के लिए रेंगना तक नहीं आता है। स्वच्छता के लिए जतन हो रहे, मगर कागजों पर, हकीकत की जमीन पर तो गंदगी पसरी हुई है। लापरवाही नजर आ रही है। सब की मनमानी स्वच्छता को धता बता रही है। अंगुली तो उस पर भी उठी है जिसमें अभी कुछ दिन पहले ही स्वच्छ कार्यालय के पुरस्कार दिए गए। प्रथम पुरस्कार कलेक्टर कार्यालय को दिया जबकि यहां का सुविधाघर यानी कि टॉयलेट बदबूदार। पान गुटखे से रंगा हुआ है बेसिन। नीचे से ऊपर तक जाने वाली सीढ़ियों पर सामने ही पान गुटके की पिचकारी। वहीं जिला पंचायत का कार्यालय भी इसी तरह है। जाले लटके हुए हैं। टॉयलेट में नल है लेकिन नली नहीं। पानी नहीं। ऐसी साफ-सफाई पर जब पुरस्कार मिल जाते हैं तो फिर सफाई की जरूरत ही क्या?
पूरे शहरवासी स्वच्छता के मामले में अपने तई प्रयास तो कर रहे है लेकिन निगम का सफाई अमला शहर की स्वच्छता सुंदरता के मामले में हद दर्जे की लापरवाही बरत रहा है। डोर टू डोर कचरा कलेक्शन के लिए हर दिन गाड़ी का आना जरूरी है, लेकिन रतलाम शहर में इसका कतई पालन नहीं हो रहा है। सप्ताह में 3 या 4 दिन ही कचरा गाड़ी कचरा लेने आती है। जब रोज कचरा संग्रहण के लिए गाड़ी नहीं आती तो फिर समय पर आने की बात करना तो बेमानी है जब मर्जी होती है वाहन चालक की तब मुंह उठाकर चला आता है कचरा लेने समय का कोई नियंत्रण नहीं।इतना ही नहीं कचरा गाड़ी के साथ एक और व्यक्ति भी रहता है जो केवल घूमता रहता है जबकि उसका कार्य है डस्टबिन को गाड़ी में खाली करने का लेकिन ऐसा रिवाज रतलाम में नहीं है। सप्ताह में 4 दिन आने वाली कचरा गाड़ी भी इतनी ठस भरी रहती है कि कचरा सड़क पर गिरता जाता है और स्वच्छता पर ग्रहण लगता जाता है।
कचरा गाड़ी से गिरता रहता है सड़कों पर कचरा
कई बार यह भी देखने में आता है कि कचरा डालने के दौरान कचरा गिर जाता है तो उसे वाहन के साथ चलने वाला व्यक्ति उठाता भी नहीं है। वह सड़क पर उसे ऐसे ही छोड़ कर चला जाता है। उसका यही मानना है कि उसकी बला से, यह उसका काम नहीं है, जो सड़क से कचरा होता है। जब ऐसी भावना वाले सफाई कर्मचारी होंगे तो स्वच्छता में कैसे नंबर लगेगा? सफाई कर्मियों के भले ही निगम आयुक्त वेतन काट ले, निलंबित करने का फरमान जारी कर दे, फिर भी इनकी सेहत पर कोई असर नहीं होता। शनिवार को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्चुअल रूप से इंदौर में गोबर धन प्लांट का शुभारंभ कर रहे थे। उस समय रतलाम के गुलाब चक्कर में कार्यक्रम का सीधा प्रसारण चल रहा था कार्यक्रम में सफाई कर्मी भी मौजूद थे, जो कि पीछे बैठे हुए थे और 2:00 बजे कार्यक्रम का जब समापन हुआ तब सफाई कर्मी बोल रहे थे। इंदौर वालों की करनी का फल सभी सफाई कर्मियों को भुगतना पड़ रहा है, अब हमें झोंक दिया इसमें।
शहर की सड़कों पर न दो ढंग से झाड़ू लगती है और न ही नालियों की सफाई। नालियां गंदगी से लबरेज है और सड़कों पर धूल की परत जमी हुई है। शहर में जितनी भी जगह प्लास्टिक के डिवाइडर ठोके गए हैं, उनके बीच में धूल की परत जमी हुई है। लोहे के डिवाइडर जो चांदनी चौक सहित अन्य क्षेत्रों में सड़क के बीच रखे गए हैं, उनमें हजमदर जाले हैं। उन जालों में स्वागत समारोह की रंग बिरंगी पन्नियां लटकी है। वह सभी को नजर आती हैं। बस नजर नहीं आते तो सफाई कर्मचारियों को। शहर के उन सभी जिम्मेदार अधिकारियों को जिनके कंधों पर शहर की स्वच्छता का भार है।
एक बात और है कि सड़क के किनारे जो नालिया होती है, सफाई कर्मी उन्हीं नालियों में सड़क के आजू-बाजू का कचरा और धूल गिरा कर चले जाते हैं और नालिया जाम होती रहती है। गंदा पानी सड़कों पर बहता रहता है, यही पहचान है रतलाम की। शहरवासी नालियों की सफाई करते हैं ताकि उनके घर के आगे गंदगी ना हो मगर कब तक? सभी प्रकार के टैक्स भरने के बावजूद भी शहरवासी सुविधाओं के लिए मोहताज हैं।
दंड वसूली तत्परता से
गंदगी नहीं करने के बावजूद आम जन से दंड वसूल करने में निगम के लोग आगे रहते हैं लेकिन गंदगी कौन कर रहा है यह उनको नजर नहीं आता। बस खजाना भरना ही उनका काम है।
कर्फ्यू का उल्लंघन करने की दे दी तो उन्होंने परमिशन
प्रदेश भर में कोरोनावायरस संक्रमण की तीसरी लहर के मद्देनजर तमाम प्रकार के प्रतिबंध लगाए गए थे उन्हें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो हटा लिया लेकिन रात्रिकालीन कर्फ्यू अभी नहीं हटाया है। रात 11 से सुबह 5 तक पूरे प्रदेश में कर्फ्यू जारी है। कर्फ्यू के नियमों का पालन करवाना पुलिस का ही काम है, मगर पुलिस ही कानून का पालन करवाने की बजाय उल्लंघन करने की छूट दे रही है। क्योंकि विगत दिनों डीजे बजाने से मना कर दिया तो बाराती ने थाने में धरना दे दिया। बात ऊपर तक पहुंची तो माइक टू साहब ने रात 11:30 बजे धरना देने वालों को परमिशन दे दी कि वे बारात निकाले और डीजे कम आवाज में बजाएं।
कर्फ्यू का कोई असर नहीं किसी पर
इसके साथ ही शहर में लगता नहीं है कि रात्रिकालीन कर्फ्यू चल रहा है। सब अपनी मनमानी कर रहे हैं। कोई नियमों का पालन नहीं हो रहा है। चाहे देर रात तक भजन हो या कीर्तन या रात 3 बजे तक कोई बोरिंग करवा रहा हो, तो भी सब जायज है। रात 1 बजे तक सड़कों पर गाड़ियां फर्राटे से दौड़ रही है। रात 12:00 बजे हैप्पी बर्थडे मनाया जाता है सड़कों पर और बम फोड़े जाते हैं। उनको रोकने टोकने वाला कोई नहीं है आखिर ऐसा कैसा कर्फ्यू है?
ध्वनि विस्तारक यंत्रों पर प्रतिबंध का निकाला केवल आदेश, पालन करवाने वाले कोई नहीं
काफी मुसीबत के बाद विद्यार्थी पढ़ रहे हैं और बोर्ड की परीक्षा चल रही है मगर ध्वनि विस्तारक यंत्रों पर कोई प्रतिबंध नहीं है हालांकि प्रशासन ने आदेश जरूर निकाल दिया है कि ध्वनि विस्तारक यंत्रों का प्रतिबंध का, उल्लंघन पर कार्रवाई की जाएगी लेकिन ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा है। सुबह से रात तक जोर-जोर से डीजे और माइक चल रहे हैं।