धर्म संस्कृति : हजारों हजार की साक्षी में विजय तिलक के साथ ही वैरागी का वीर पथ पर विजय प्रस्थान
⚫ ईशान को बालमुनि श्री आदित्यचन्द्रसागर म.सा.
⚫ पलक को मिला साध्वी श्री पंक्तिवर्षाश्रीजी म.सा.का नूतन नाम
⚫ मुमुक्षु तनिष्का चाणोदिया की नहीं हो पाई निषिद्ध शारीरिक कारणों से दीक्षा
हरमुद्दा के लिए नीलेश सोनी
रतलाम, 26 मई। रतलाम में 90 साल के लम्बे अन्तराल के बाद आज बालमुनि के रूप में 9 साल के मुमुक्षु ईशान कोठारी की दीक्षा हुई । उनका नया नामकरण नूतन बालमुनिराज पू.श्री आदित्यचन्द्रसागर जी म.सा. हुआ । सागर समुदाय रतलाम के इतिहास में यह पहली बालमुनि की दीक्षा के रूप में अंकित हो गई । वही मुमुक्षु पलक चाणोदिया अब साध्वीवर्या पू.श्री पंक्तिवर्षाश्रीजी म.सा. के रूप में पहचानी जाएगी। विजय तिलक के साथ ही दोनों ही वैरागी का वीर पथ पर विजय प्रस्थान हुआ।
बंधु बेलड़ी प.पू.आचार्य देव श्री जिनचंद्रसागरसूरिजी म.सा.आदि सुविशाल श्रमण-श्रमणी वृन्द निश्रा में आगमोउद्धारक वाटिका सागोद रोड पर दीक्षा की विधि सम्पन्न हुई । इस दीक्षा के बाद अब आचार्य श्री के 121 शिष्य प्रशिष्य हो गये है । मुमुक्षु तनिष्का चाणोदिया की निषिद्ध शारीरिक कारणों से दीक्षा आज नहीं हो पाई । मंगल मुहूर्त में प्रात: दीक्षा के विधान की शुरुआत आचार्यश्री की निश्रा में हुई । दोनों ही मुमुक्षु को उनके परिजन ढोल ढमाके और बैंड बाजे के साथ चल समारोह के साथ दीक्षा स्थल पर पहुंचे। ईशान को पिता अपने कंधे पर बैठाकर तो दादी और माता छाप सिर पर लिए चल रही थी । छोटी बहन निर्वाणी पूरे समय अपने भैया के साथ नृत्य करती रही । जबकि पलक को उनके माता पिता संतोष शोभा चाणोदिया सहित परिजन ने उत्साह और उमंग के साथ लेकर पहुंचे।
दीक्षा महोत्सव की चित्रमय झलकियां
दीक्षा के बादसंत समाज के साथ
रजोह्रण मिलते ही खूब नाचे
भव्य मंडप में विधिविधान के साथ दीक्षा की क्रिया हुई । कोई दो घंटे से अधिक समय तक चली प्रारम्भिक क्रिया के बाद आचार्य श्री ने जैसे ही दोनों मुमुक्षु को क्रम से रजोहरण प्रदान किया, वैसे ही दोनों ही दीक्षार्थी रजोहरण हाथों में थामे खूब नाचे । खचाखच भरे दीक्षा पंडाल में उपस्थितजनों ने अक्षत से वधामना किया । विजय तिलक के लाभार्थी परिवारों ने मुमुक्षओं को विजय तिलक किया । संयम जीवन में उपयोग में आने वाली सामग्री उपकरण लाभार्थी परिवारों ने भेंट किये । जबकि श्रीमती पुष्पाबेन रमणलाल कोठारी ने स्वर्ण आभूष्ण भेंट कर परमात्मा की भक्ति की । चाणोदिया और कोठारी परिवार की तरफ से आचार्यश्री एवं श्रमण-श्रमणी वृन्द को काम्बली प्रदान की गई । इसके बाद दोनों ने संयम वेश धारण करने के लिए प्रस्थान करने के पहले अपने आभूषण उतारें ।
बालमुनि को कान में बताया नया नाम
करीब 11:30 बजे जैसे ही दोनों दीक्षार्थी साधु साध्वी के वेश में यहां पहुंचे तो उनकी एक झलक पाने की उपस्थितजनों में होड़ मच गई । “दीक्षार्थी अमर रहो” के जयकारे के साथ उनका वंदन किया गया । चारों तरफ से अक्षत की वर्षा होती रही । दोनों ने ही सबसे पहले संयम श्रंगार में आचार्यश्री के दर्शन वंदन किये तो आचार्यश्री ने भी संयमी आत्माओं को नमस्कार कर संयम जीवन में उत्तरोतर आगे बढने के आशीर्वाद का हितोपदेश दिया । नूतन दीक्षित के नामकरण की विधि के तहत आचार्य श्री ने बालमुनि को कान में उनका नया नाम बताया । कोई छह घंटे से अधिक समय तक चले दीक्षा पर्व में देशभर से पहुंचे समाजजनों ने उत्साह के साथ हिस्सा लिया। गणिवर्य श्री पदमचन्द्र सागर जी, गणिवर्य श्री आनंदचन्द्र सागर जी म.सा. ने दीक्षा विधि संपन्न करवाई।
रिवाल्वर नहीं रजोहरण है
आचार्य श्री ने कहा की हाल ही में अमरीका में एक छात्र ने छात्रों और टीचर की गोली मारकर हत्या कर दी। विदेशों में विधार्थी अपने गुरु को गोली मार रहे है जबकि हमारे यंहा शिष्य गुरु का वचन शिरोधार्य कर गुरु पथगामी बन रहे है। हमारे बच्चों के हाथो में रिवाल्वर नहीं बल्कि रजोहरण होता है। हमारी यही संस्कार और संस्कृति है। लेकिन स्मरण रहे जब भी समाज भोग और विलासिता में डूबेगा, वंहा हिंसा-क्रूरता ही फैलेगी। संयम जीवन के बिना शांति संभव ही नहीं है।
90 साल बाद अब संयोग
धर्मस्व नगरी रतलाम में आज 90 साल के बाद आज किन्ही बाल मुनि की दीक्षा का प्रसंग आया। इसके पूर्व आगमज्ञाता पू.जंबू विजय जी म.सा. की 9 साल की ही आयु में संवत 1993 में रतलाम नगर में दीक्षा हुई थी।
श्री जैन का बहुमान
इस अवसर पर रतलाम श्रीसंघ के वरिष्ठ इन्दरमल जैन वकील सा. को अयोध्यापुरम तीर्थ का मालवा अंचल से प्रथम ट्रस्टी बनाये जाने पर दीक्षा महोत्सव समिति के साथ समाजसेवी खुर्शीद अनवर, शहर कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष महेंद्र कटारिया आदि ने उनका शाल श्रीफल एवं स्मृति चिन्ह प्रदान कर बहुमान किया। यंहा अयोध्या पुरम तीर्थ से शत्रुंजय तीर्थ पालिताना के लिए संघ निकलने की घोषणा की गई। संचालन प्र्ज्ञेशभाई, प्रवीण गुरूजी एवं गणतंत्र मेहता ने किया जबकि संगीतकार संयम शाह सुरत रहे। अनुमोदनकर्ता श्रीमती चन्द्रकान्ता सुराणा, महेंद्रजी सपनाजी मेहता, रूपल मेहता खाचरौद रहे।
माँ की गोद में सो गया
इसके पहले बुधवार रात दिक्षार्थियो को भावभीनी विदाई दी गई। संसार को त्यागकर संयम पथ पर जा रहे अपने लाड़ले को जब माँ पायल कोठारी ने ‘चंदा है तू मेरा सूरज है..गीत और लोरी सुनाई तो नन्हा मुमुक्षु अपनी माँ की गोद में ही सो गया। इस भावविव्हल कर देने वाले दृश्य को देखकर सभी की आँखे भर आई। अपनी दोनों ही जुड़वाँ बेटियों को माता पिता संतोष शोभा चाणोदिया अक्षत और अश्रु के साथ वीतरागी के पथ पर विदाई दी।