नगरी निकाय चुनाव : खुली तीसरी आंख तो हो जाएंगे सपने उन सबके खाक, जरूर बोलेगा उपेक्षितों का वजूद

⚫ अंदर ही अंदर बह रहा है बदलाव का लावा

⚫ दो की लड़ाई में हो सकता है तीसरे को फायदा

हेमंत भट्ट
रतलाम, 17 जून। नगरी निकाय चुनाव में टिकट वितरण में हुई भाजपा की मनमानी की यह नादानी कहीं भारी न पड़ जाए, क्योंकि चुनावी दंगल में तीसरी आंख के खुलने की पूरी पूरी संभावना नजर आ रही है और यदि ऐसा हुआ तो शनिवार को भाजपा से बागी का तमगा लेने के बाद पार्टी का सूपड़ा साफ करने के लिए आपका भी दामन संभाल सकती है। सालों तक कमल को थामने वाले हाथ के नीचे बदलाव का लावा बह रहा है और वह किसी की नहीं, अपने मन की ही सुनेंगे।

राजनीति के पंडितों की माने तो भाजपा के टिकट वितरण में जो परिदृश्य सामने आया है। इसके बाद नगरी निकाय निर्वाचन में पहली मर्तबा जब आप रण में कूदा तो फिर 80 से 90 फीसद तक भाजपा में पार्षद के सपने सजाए रखने वाले कार्यकर्ता भी मुखर हो जाएंगे और वह भी आपका साथ दे सकते हैं। और यदि ऐसा हो गया तो फिर बड़ी पार्टियों के सपनों को खाक करने में वक्त नहीं लगेगा क्योंकि बागी होने वाले सभी अपने अपने क्षेत्र में कमतर नहीं हैं।

तो चुप नहीं बैठेंगे उम्मीदवार कार्यकर्ता

मुद्दे की बात तो यह है कि नगरी निकाय निर्वाचन में वह चुप है तो केवल सिद्धांत और पार्टी की कार्यप्रणाली के चलते, लेकिन जब टिकट वितरण में आलाकमान के निर्देशों का पालन नहीं करते हुए अपनी मनमानी करेंगे तो कार्यकर्ता चुप नहीं बैठने वाले हैं। पार्टी में कार्यकर्ता ही नींव के पत्थर होते हैं और यदि नींव के पत्थर ही हिल जाएंगे तो फिर पार्टी के महल को डगमगाने कोई नहीं रोक सकता।

चल रही है उनकी भी ऊपर बातें

रातों-रात टिकट में भी बदलाव नहीं होता है तो इधर भी ऊपर तक बातें चल रही है। बगावत के बिगुल की आवाज कानों तक नहीं पहुंची तो फिर शनिवार भारी पड़ सकता है। निर्दलीय महापौर कहीं अन्य का दामन थाम कर अपने साथ पार्षद बनने की अभिलाषा रखने वाले मैदानी लोगों को एकजुट कर लिया गया है। बस इंतजार है ऊपर जो शिखर वार्ता चल रही है, उसकी सफलता का।

तो ताल ठोकने वालों की संख्या हो सकती है दो गुना

वर्तमान में जो बागी पार्षद भी मैदान में कूदने के लिए ताल ठोक चुके हैं, उनकी संख्या दोगुना हो जाएगी। यानी कि एक तिहाई पार्षद आमजन की सेवा के लिए आप से मिलकर विकास की नई इबारत भी लिख सकते हैं। यह तो रतलाम की जनता ने देख लिया है कि चुनाव नहीं हुए तो पार्षदों ने अपने वार्ड की ओर जरा भी ध्यान नहीं दिया, क्योंकि उनका कार्यकाल समाप्त हो चुका था। ध्यान देने वाले कार्यकर्ता ही दमखम भर रहे थे। वे इसी उम्मीद में थे कि इस बार तो वह उनका टिकट पक्का है लेकिन परिवारवाद और वंशवाद ने पक्के इरादे को हिलाकर कर रख दिया। इसका खामियाजा तो निश्चित ही भुगतना पड़ेगा चाहे वे चुनाव में खड़े रहे या ना रहे, लेकिन उनका वजूद जरूर बोलेगा।

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