विश्वव्यापी हिंसा के बीच प्रेम और मानवता का संदेश देती रेनू अग्रवाल ‘रेणु’ की कविताएं
⚫ पुस्तक समीक्षा : कविता संकलन ’एक और राधा…’
⚫ नरेंद्र गौड़
आज का समय अनेक चुनौतियों से भरा हुआ है और कविता ही नहीं साहित्य की अन्य विधाओं में भी सार्थक रचनाकर्म बेहद कठिन है। कोराना ने विश्व के करोड़ों लोगों को अपने मुंह पर मवेशियों की तरह पट्टी बांधने को मजबूर कर दिया। ऐसी हालत में मानवता की रक्षा करने से देवी-देवताओं ने भी आंखें फेर ली और उन्हें भी मंदिरों में कैद हो जाना पड़ा। हालत अभी भी सुधरी नहीं है। आज भी महामारी फिर से फैलने के भय की गिरफ्त में मनुष्य अपने दिन काट रहा है। यदि अपने देश की बात करें तो महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और सरकारी कंपनियों को प्राइवेट सेक्टर में बेच दिए जाने के कारण के निम्न मध्यवित्तीय आदमी का जीना मुश्किल है। कवि अति संवेदनशील प्राणी होता है। वह इन तमाम सच्चाइयों से मुंह मोड़कर एकांतिक भाव से रचनाकर्म नहीं कर सकता, उसे इन कठिन परिस्थितियों में रह कर ही अपनी रचाव और बनाव की दुनिया रचनी है। हाल ही में प्रकाशित रेनू अग्रवाल ’रेणु’ का कविता संकलन ‘एक और राधा’ हालांकि यदि सतही तौर पर देखें तो उपरोक्त चुनौतियों का सामना करता नजर नहीं आता है, क्योंकि इसमें अधिकांश कविताएं प्रेम की उदात्त भावनाओं को ही समर्पित हैं, लेकिन यदि गहराई में जाकर पड़ताल की जाए तो यह सोचने को मजबूर होना पड़ेगा कि इतनी सारी चुनौतियां होने के बावजूद एक संवेदनशील रचनाकार ने प्रेम ही प्रेम को लेकर ढ़ेरों कविताएं क्यों लिख दीं। इसके पीछे कौन-सी मजबूरियां रही हैं?
इसकी वजह साफ है, अपने समय की खतरनाक ही नहीं एक हद तक भयावह चुनौतियों का सामना नहीं कर पाने की वजह से प्रेम प्यार की दुनिया की तरफ रचनाकार का पलायन, जहां वह दुनिया के बाहरी खतरों से अनजान नहीं रहने के बावजूद सुरक्षित रह सकता है। कवयित्री को पता है कि दुनिया में चारों तरफ मारकाट और भीषण अत्याचार हैं, मजहब के नाम पर गला काटा जा रहा है, एक देश दूसरे देश के सामने युध्द करने को तैयार बैठा है, ऐसी हालत में प्रेम प्यार की उदात्त मानवीय भावनाएं ही मानवता को बचा सकती हैं। यदि सभी लोग एक दूसरे के साथ प्रेम प्यार से रहें तो हिंसा का शांतिपूर्ण समाधान किया जा सकता है। विश्व को यही संदेश इन कविताओं में दिया गया है। रेणु जी ने अपनी कविता को मजबूत बनाने के लिए स्वयं को राधा मानते हुए काव्य रचना की और दुनिया को बताना चाहा कि अतीतकाल में जिस प्रकार राधा-कृष्ण का प्रेम रहा था, आज उसी प्रेम की फिर से जरूरत है। द्वापरयुग में श्रीकृष्ण राधा से प्रेम करते हुए भी दानवों का संहार करते हैं। वह अपने कर्तव्य से विमुख नहीं हैं। प्रेम उन्हें ऊर्जा देता है। ठीक इसी प्रकार रेणुजी का कवि मानवता को संदेश देना चाहता है कि बिना प्रेम के दुनिया निरर्थक है। प्रेम ही सृष्टि का सार तत्व है। बिना प्रेम के इस धरती पर जीवन की परिकल्पना नहीं की जा सकती है। मनुष्य ही नहीं पेड़ पौधों का जन्म भी प्रेम के बिना असंभव है। धरती जब भीषण गर्मी की यंत्रणा भुगत रही होती है, तब मेघ शीतलता प्रदान करने की खातिर बरस पड़ते हैं। रेणुजी का रचनाकार यही कहना चाहता है कि प्रेम के बिना यह धरती रेगिस्तान है। यदि मानवता को बचाना है तो एक दूसरे के साथ प्रेमपूर्वक संबंध होना अनिवार्य है।
करती है ईश्वर से सवाल
रेणुजी के कविता संकलन’ एक और राधा’ में प्रेम के विविध रूप हैं। आपने फूल, फल, हवा, पानी, आकाश, धरती सभी जगह प्रेम ही प्रेम को अनेकानेक रूपों में व्याख्यायित किया है। वह कई जगह ईश्वर से भी सवाल करती हैं-
किस मिट्टी से तूने ईश्वर
स्त्री और ये पुरूष बनाए
रहना संग आजीवन फिर
एक दूजे को क्यों न भाये ?
याद रहे कि मध्यकाल में भी मुगलों के शासन के दौरान प्रजाजनों पर भीषण अत्याचार हो रहे हे थे, तब भक्तिकाल का उदय हुआ था। कबीर, मीरा, जायसी, सूरदास, तुलसीदास आदि कवियों ने प्रेम की भावना का समाज में प्रचार-प्रसार करने के लिए ही साहित्य रचना की थी और इसका प्रभाव न केवल समाज वरन् सत्ता पर भी पड़े बिना नहीं रहा था। यदि औरंगजेब के तथाकथित अत्याचारों की गाथाओं को छोड़ दिया जाए तो अकबर के बाद के अधिकांश शासक अपने पूर्ववर्ती राजाओं के मुकाबले प्रजा के प्रति उदात्त रहे हैं।
मोहमाया एक बंधन
ऐसा नहीं है कि रेणुजी के इस संकलन में सिर्फ प्रेम ही प्रेम की कविताएं हैं। ’आत्मबोध आवेग’ शीर्षक कविता जीवन दर्शन को लेकर रची गई है। कवयित्री पर यहां संत कबीर का प्रभाव देखा जा सकता है जो मोहमाया को एक बंधन मानते हुए मानवता को आगाह करते हैं। रेणुजी कहती हैं-
मन पंछी है बावरा
मोह पिंजर में फंसा
लोभ ताला लगा है जिसमें
माया दलदल में धंसा
बुरा करने के लिए जरूरत होती है ताकत की
कवयित्री की रचनाओं का मूल भाव यही है कि ’ताकत की जरूरत मनुष्य को तभी होती है, जब कुछ बुरा करना हो, वरना दुनिया में सब कुछ पाने के लिए प्रेम ही काफी है’। संकलन में आशा, निराशा, लालसा, उत्कंठा, आकांक्षा और जिज्ञासा के अनेक स्वर हैं जो कि कविता को संभव बनाते हैं। रेणुजी सोशल मीडिया पर लम्बे समय से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं, लेकिन इन दिनों फेसबुक, व्हाट्स ऐप और मेसेंजर पर जिस प्रकार की कविताओं की बाढ़-सी आई है, वैसी कविताओं से यह रचनाएं एकदम अलग संसार की रचना करती हैं। आज हालत यह है कि जिन कवयित्रियों की भले ही चार कविताओं ने किसी पत्र-पत्रिका का मुंह क्यों न देखा हो, उनके संकलन छप रहे हैं और समारोहपूर्वक विमोचन हो रहे हैं। अनेक संस्थाएं सिर्फ लेखकों को सम्मनित करने का धंधा कर रही हैं और रचनाकार भी उन अभिनंदन-पत्रों के साथ फोटो खिंचवाकर अपनी वॉल पर डाल रहे हैं। ऐसे गोरखधंधे के कारण असल कविता खोजना दूभर है और कचरा साहित्य का हल्लाबोल है।
हिंदी की अलख जगा रही हैं रेणुजी
इस संकलन की भाषा आम बोलचाल की है। उनमें भावों का प्रवाह है और रचनाकार परिवर्तन की आकांक्षा की तरफ मुखर है। यह रचनाएं विषय और भाव के स्तर पर दिल -दिमाग को उद्वेलित करती हैं। हालांकि रेणुजी का यह पहला कविता संकलन है और उनका लिखना छपना लगातार जारी है। उम्मीद है कि जल्द ही उनका दूसरा संकलन भी प्रकाशित होगा। यहां उल्लेखनीय है कि रेणुजी न केवल हिंदी वरन् भोजपुरी में भी गीत रचना करती हैं और अपने गीतों का सुमधुर स्वर में गायन कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देने की क्षमता भी रखती हैं। उड़ीसा के एक छोटे-से शहर जहां हिंदी भाषी लेखक तो दूर पाठक भी विरले हैं, रेणुजी हिंदी की अलख जगा रही हैं।
रेणुजी का संक्षिप्त परिचय देना भी यहां आवश्यक है। आपका जन्म गोरखपुर(उत्तरप्रदेश) में हुआ। रेणुजी हिंदी साहित्य में एम.ए. तथा बी.एड. कर चुकी हैं। आपकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। इनका कहना है कि लिखने की प्रेरणा इन्हें अपने पति श्री जयप्रकाश अग्रवाल से मिलती है। रेणुजी उड़ीसा प्रांत के बरगड़ जिले की बरपाली तहसील में हिंदी प्राध्यापक हैं।