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शिक्षक दिवस पर विशेष : एक शिक्षक के मन की बात

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योगिता राजपुरोहित

गुरु गोविंद दोऊ खडे ,काके लागू पाय  बलिहारी गुरु आपकी गोविंद दियो बताए ।।
गुरु की महिमा निराली है । गुरु-शिष्य का संबंध भी अनोखा है । समय के साथ गुरु और शिष्य के संबंध में बदलाव भी आया है ।अब शिष्य आरुणि नहीं रहा ,जो एक आज्ञा पाकर खेत की मैड पर रातभर लेट कर आज्ञा का पालन करता रहे । अब वह स्मार्ट हो गया है । वह नए साधन उत्पन्न कर देता है । तकनीकों को विकसित कर लेता है । अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए प्रश्न करता है । उनका उचित उत्तर ढूंढने का प्रयास भी करता है । गुरु भी द्रोणाचार्य नहीं है कि एकलव्य से अंगूठा मांग ले। वह  सब की उन्नति चाहता है।

गुरु का स्थान देवता से भी  पहले है । लेकिन अब पीढ़ियों के खाई को पाटने  के लिए गुरु ने भी अपने स्वरुप को बदला है । आश्रम स्कूल में तब्दील हो गए हैं । गुरु भी अब केवल गुरु न रहकर एक मित्र की भाति भी हो गया है । समय समय पर कभी वह अभिभावक तो कभी मित्र की  भूमिका निभाता है । कभी सर पर हाथ रखकर संबल देता है तो कभी कंधे पर हाथ रखकर मजबूत बनाता है।


गुरु  अब टीचर हो गया है और शिष्य अब स्टूडेंट हो गया है । टीचर पहले उसे समझता है ,फिर उसे पढ़ाता है। उसे सही -गलत का बोध कराता है। उसे सही राह दिखाता है ।भटकने नहीं देता है ।अवसाद से बचाता है। आज शिक्षा के तरीके बदल गए हैं। पहले कठोर शिक्षा दी जाती थी। गुरुकुल पद्धति थी ।गुरु सर्वेसर्वा होता था । नियमो का पालन करना अनिवार्य  होता था सभी के लिए । चाहे वह राजकुमार हो या साधारण बालक । जीवन मूल्यों को सिखाया जाता था। कठोर दंड का विधान था ।समय की कोई पाबंदी नहीं थी । लेकिन अब संपूर्ण विश्व एकाकार हो गया है । ज्ञान भी विस्तृत है और  ज्ञान को पाने के साधन भी । अब चुनौतियां गुरु के लिए भी है और शिष्य के लिए भी । अपने ज्ञान का विस्तार दोनों के लिए आवश्यक है । टीचर भी अब हाईटेक हो गया है । कोविड19 के  बाद ऑनलाइन क्लासेस ने उसे ओर भी  स्मार्ट बना दिया है। साथ ही उसके  मेहनत ओर कार्य करने के  घंटे भी बढ़ गए हैं । उसे स्कूल में अपने 7 घंटे देने के बाद भी अपने स्टूडेंट के लिए नई चीजें नई तकनीकी खोजने के लिए समय की आवश्यकता होती है । अपने आपको अपडेट रखना होता है  । वह तो बस यही सोचता है कि कैसे पढ़ाया जाए कि सबको आसानी से समझ में आ जाए । वह वीकर्स को एवरेज और एवरेज को  टॉपर बनाना चाहता है और टॉपर को मेरिटीरियस बनाना चाहता है ।
आज प्राथमिकता भी बदल गई हैं । शिक्षा के  साथ जीवन मूल्यों को सिखाना भी जरुरी हो गया है ।वही मूल्य ,जो गुरुकुल में सिखाए जाते थे। और इसमे आवश्यक है माता पिता की  भागीदारी ।वे भी इसमें भागीदार बनें। यह बड़ी जिम्मेदारी है जो दोनों को मिलकर निभानी होगी ।अब बच्चे के भविष्य के निर्माण के लिए केवल गुरु ही नहीं बल्कि माता पिता की भी साझेदारी आवश्यक हो गई है ।

आपको पढ़ने में थोड़ा अजीब लगे लेकिन मेरे विचार में बचपन कहीं खो गया है ,शायद थोड़ा भटक गया है इस राह पर लाने के लिए मिलकर प्रयास करने होंगे । मोबाइल , इंटरनेट की दुनिया ने जीवन के स्वरुप को बदल दिया है ।समय की कमी हो गई है। समझना होगा अभिभावकों को भी। टीचर की कमियां बताने  के बजाए उन्हें सहयोग करना होगा  । उनका सम्मान करना होगा ।क्योंकि यही वह भावी पीढ़ी है जो देश का निर्माण करेगी ।यकीन मानिए हर शिक्षक अपने छात्रों को आगे बढ़ाने का भरसक प्रयत्न करता है ।अगर हम जीवन मूल्यों को हस्तांतरित ना कर पाए तो यही आगे आने वाली पीढ़ी हमसे प्रश्न करेगी और हमें ही जिम्मेदार ठहराएगी ।शिक्षा के साथ जीवन मूल्य अति आवश्यक है। जो  विद्यार्थियों को दिया जाना चाहिए । नंबर लाने के साथ  उनमें सही गलत का बोध कराना भी हमारी ही जिम्मेदारी है ।उसे समस्याओं से लड़ने को जुझारू पन और आत्मविश्वास का पाठ भी पढ़ानाजरूरी  हो गया है कि कोई भी बच्चा परीक्षा के नतीजे आने पर अवसाद से ग्रस्त न हो ।  परीक्षा योग्यता का पैमाना नहीं होती ।हमें बच्चों को भावनात्मक रूप से मजबूत बनाना होगा ताकि वे भटके नहीं और कोई गलत निर्णय न ले ।उनमें देश प्रेम भरना होगा। मातृभूमि से प्रेम सिखाना होगा ।परिवार की महत्ता बतानी होगी। गुरु का सम्मान सिखाना होगा और यह हम मिलकर ही कर पाएंगे।

योगिता राजपुरोहित
        रतलाम

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