कुछ खरी-खरी : हमारी नई नगर सरकार, खुशी में गम देने का है टैलेंट अपार, सबको पता, हुआ है भ्रष्टाचार, फिर भी चुप्पी साधे हैं सभी जिम्मेदार, शहरवासी नजर आए बेबस और लाचार, हजारों बच्चे हो गए छल का शिकार
हेमंत भट्ट
ना चाहते हुए भी शहरवासियों को नगर सरकार पर नाज करना पड़ा। क्योंकि प्रदेश और देश में भाजपा की जो सरकार है। मगर नगर सरकार ने अपने काम से काम रखने का अपना टैलेंट दिखाया, हालांकि नगर सरकार में यूं तो टैलेंट अपार है। नवरात्रि के समापन के बाद दशहरा उत्सव का उल्लास, उत्साह, उमंग और खुशी सभी पर गम का ग्रहण लगाने में कामयाब हो गए। दशहरा उत्सव की खुशी मनाने और रावण दहन का दृश्य आंखों में और मोबाइल में कैद करने के सपने सजाएं बच्चे घर से निकले लेकिन उन्हें खाली हाथ ही लौटना पड़ा। बच्चों के साथ शहरवासी भी जिम्मेदारों की छल का शिकार हो गए। लगता है ऐसा करने वालों की सोच नायक फिल्म के एक किरदार से मेल खाती है जिनका मानना है कुछ लोग नाराज होते हैं, होने दो। कुछ दिन चिल्लाएंगे फिर चुप हो जाएंगे। दो दो-चार दिन बाद सब ठीक हो जाएगा। अपना क्या जाएगा। बैलेंस तो बढ़ जाएगा।
कोराना काल के पश्चात पहली बार शहरवासियों को सामूहिक रूप से खुशी मनाने का अवसर मिला, जिम्मा था नगर सरकार का। नवरात्रि पर 14 दिवसीय श्री कालिका माता मेले का आयोजन करने का अवसर नई नगर सरकार को मिला। मगर जिम्मेदार कई मोर्चे पर असफल रहे। चाहे वह रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम हो या फिर समय की पाबंदी। 2 दिन तक तो झूले वालों को बिजली भी नसीब नहीं हुई। मंच पर फूहड़ प्रस्तुतियों पर लोगों ने बवाल मचाया तो माफी मांग कर इतिश्री कर ली। महापौर ने श्री कालिका माता मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश दिलाने का खूब प्रचार किया लेकिन अगले ही दिन दर्शनार्थियों को गर्भ गृह में प्रवेश करने का मौका नहीं मिला।
कर्तव्य का आदर्श स्थापित नहीं कर पाए जिम्मेदार
अब जब सामूहिक रूप से रावण दहन का कार्यक्रम की जिम्मेदारी आई तो वह भी नगर सरकार के प्रतिनिधि और जिम्मेदार अधिकारी कर्तव्य का आदर्श स्थापित नहीं कर पाए। शहरवासी धोखे का शिकार हो गए। जिम्मेदारों ने यह मान लिया था कि बारिश हो जाएगी और सब कुछ उसके माथे ढोल देंगे लेकिन उनकी है मंशा पूरी नहीं हो पाई। बारिश नहीं हुई। नतीजतन रावण गीला नहीं हो पाया मगर पुष्पा लुक में जरूर नजर आया। रावण के पुतले की जो गरिमा होनी चाहिए, उस गरिमा पर खरे नहीं उतरे। रावण के पुतले को मजाक बनाकर रख दिया। पोलो ग्राउंड नेहरू स्टेडियम पर हजारों बच्चे अपने अभिभावकों भाई बहनों के साथ आए कि रावण दहन का देखेंगे। जोरदार आतिशबाजी होगी लेकिन बच्चों के साथ बड़ों की भी यह उम्मीद पूरी नहीं हो पाई। ना आतिशबाजी में दम था और ना ही रावण में। समय का तो ध्यान नहीं रखने की तो शायद आयोजकों ने कसम खा ली है। इसीलिए घंटों इंतजार के बावजूद रावण दहन नहीं देख पाने का मलाल लिए बच्चे घर चले गए।
हम कुछ नहीं करेंगे का टैलेंट भरपूर
सब लोग यही कहते नजर आए कि नगर सरकार में भ्रष्टाचार अपार फैला हुआ है। चाहे जनप्रतिनिधि हो या शहर के प्रथम नागरिक या फिर अधिकारी, सभी एक से एक टैलेंट से भरे हुए है और वह टैलेंट यही है कि हम कुछ नहीं करेंगे। अपने काम से काम रखना भी जिम्मेदारों के टैलेंट का एक हिस्सा है। किसी से गलती हो रही हो तो उसे सुधारने के लिए सजेशन नहीं देंगे। उनका तो यही मानना है कि अपने को क्या करना?
पुतले भी निकले जिम्मेदारों की तरह धीट
रावण के पुतले भी जिम्मेदारों की तरह धीट ही निकले। मुख्य समारोह का 51 फीट का पुतला जलने का नाम नहीं ले रहा था तो बरवड़ मेला प्रांगण का पुतला जलने के बाद गिरने में आनाकानी कर रहा था। पुतले रावण की गरिमा के अनुकूल तो बिल्कुल भी नहीं थे। भाजपा सरकार के जनप्रतिनिधियों ने भगवान श्री राम, लक्ष्मण, हनुमान को भी इंतजार करवा दिया कि भगवान नहीं, अभी तो हम सर्वे सर्वा हैं। नगर सरकार के पहले ही सामूहिक उत्सव में शहरवासी बेबस और लाचार नजर आए। हजारों बच्चे छल का शिकार हो गए। सबको पता है भ्रष्टाचार हुआ। फिर भी चुप्पी सभी जिम्मेदार साधे हैं।
समस्याएं कोई भी हो यातना भुगतना पड़ती आमजन को
अपने को क्या करना के चलते शहरवासी कितने परेशान और हैरान हो रहे हैं। यह बात किसी से छुपी छुपी नहीं है। चाहे मुद्दा जल वितरण का हो, सफाई का हो, अतिक्रमण का हो या या फिर यातायात का हो। यातना तो आम लोगों को ही भुगतना पड़ रही है। अतिक्रमण हटाने में नाकारा जिम्मेदारों ने बस फरमान जारी कर दिया कि चार पहिया वाहनों के लिए यह मार्ग बंद रहेगा। दोपहिया वाहनों के लिए यह बंद रहेगा। हो गया अपना काम। जय जय सियाराम।
त्योहार के आते ही पसर जाते सड़कों पर
जैसे ही त्यौहार उत्सव आते हैं वैसे ही दुकानदार भी सड़कों पर उतर जाते हैं लेकिन जिम्मेदारों को कुछ भी नजर नहीं आता। यातायत में लोग परेशान होते है। मगर मगर जिम्मेदारों का तो एक ही उद्देश्य है कि शहर के दुकानदार परेशान ना हो। उनकी जहां तक इच्छा हो, वहां तक अपने सामान की नुमाइश करें। हम इन्हें नहीं रोकेंगे। दुकानदारों ने भी शायद कसम खा ली है कि अपनी दुकानों का सामान सड़कों पर रखेंगे तभी उनको दो रोटी हजम होगी वरना कब्जियत हो जाएगी। अव्यवस्थाओं से लबरेज शहर के लाखों लोग हैरान परेशान हैं। इसके बावजूद जिम्मेदार अनजान हैं। अधिकारियों को तो कोई मतलब ही नहीं। आज यहां है कल और किसी अन्य शहर में होंगे। वहां अपना ऐसा ही टैलेंट दिखाएंगे।
ज्यादा नहीं तो कम से जीत तो जाएंगे, दम से
जनप्रतिनिधियों का क्या है? पहले ज्यादा मतों से जीते थे। अब कम मत से जीत जाएंगे। वोट नहीं देने वाले जाए भाड़ में अपनी बला से, यही सोच है शायद उनकी। और पिछले तो ऐसे निकले थे कि अपने को तो एक ही अवसर मिला है, दूसरा लेने की कोई इच्छा है नहीं। एक ही कार्यकाल में दम मदार बेड़ा पार।