अपने समय से आंख मिलाती मृदुला सिंह की कविताएं
⚫ पुस्तक समीक्षा कविता संकलन : “पोखर भर दुख”
⚫ नरेंद्र गौड़
कविता की दुनिया में ’मृदुला सिंह’ नया नाम नहीं है। पहला कविता संकलन ‘पोखर भर दुख’ प्रकाशित होने के पहले से उनकी कविताएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपती रही हैं। संकलन में शामिल हर एक कविता का प्रत्येक हिस्सा महत्वपूर्ण है और सबसे बड़ी बात यह कि अर्थ विस्तार जरूर हैं, लेकिन उलझाव नहीं हैं। बात आसानी से समझ में आती है। इनकी कविता से होकर गुजरने का रास्ता अधिक घुमावदार नहीं है, लेकिन चकित कर देने वाला है। अगर कोई कवि इन कविताओं को पढ़ेगा तो उसकी सोच में यह अवश्य आएगा कि काश! इतनी बढ़िया कविता उसने लिखी होती।
इस संकलन में कोरोना के कारण घरों में कै़द लोग, बाहर के सूने दृश्यों को देखती उदास आंखें, रिश्तों में बढ़ती दूरी, सिरों पर पोटलियां उठाए मजदूरों का पलायन और भय को लेकर जो कविताएं हैं, उनमें इन सभी दृश्यों का मृदुलाजी ने शिद्दत के साथ अपनी कुछ कविताओं में शामिल किया है। संकलन की सभी कविताएं पढ़कर कवि के आत्मबल और साहस का अनुमान सहज में लग जाता है। छत्तीसगढ़ को भले ही धान का कटोरा कहा जाता है, लेकिन वहां भी दुख के एक नहीं हजारों पोखर हैं, जिनमें मृदुलाजी का कवि मन डूबा उतराया है और लोगों की पीड़ा को कविता की शक्ल में पहचाना है।
जीवन भर का
कसैला स्वाद सारा
पी गया घूंट भर में वह
सकुचाहट में उसका
नाम लिया नहीं
उभर आया एक दिन वह नाम
आंख की गुलाबी दीवार पर
भर दोपहर
चमकती रही शक्ल
उस यायावर की मेरी आंख में
इस संकलन में ऐसे एक नहीं अनेक यायावर हैं जिनके दुख को मृदुलाजी ने पहचाना है और इस वजह से उनकी आंखों की गुलाबी कोर नम हुई है। ऐसी गहरी संवेदनशीलता ही कवि को महान बनाती है। संकलन के बारे में कुछ लिखते समय कठिनाई यही कि किस कविता से चंद पंक्तियां उठाई जाए, क्योंकि पूरे संकलन में
न केवल छत्तीसगढ़ वरन समूचे भारत के निम्न मध्यवित्तीय लोगों की कराह सुनाई देती है।
उसने कहा मुझसे
मत सिमटो खुद में
फैलाओ मन आकाश की तरह
और मैं उड़ती गई
रंगता गया मन नीले रंग में
संकलन की कोई भी कविता उठा लीजिए और कहीं से भी पढ़ना शुरू कर दीजिए आपके पास यदि कविता समझने की तमीज है तो वाह वाह किए बिना नहीं रह पाएंगे। मृदुलाजी के व्यक्तिगत, सामाजिक अनुभव इतने त्रासद और पीड़ादायी रहे होंगे कि उन्हें अपने काव्य माध्यम में साकार करना उनकी संवेदनशीलता का तकाजा रहा। इसी जवाबदारी का निर्वाह उन्होंने जिम्मेदारी के साथ किया है। एक कवि का सामाजिक दायित्व है भी कि वह समाज और मनुष्यता से जुड़े विषयों पर मुखरता से बोले। संकलन में कुछ प्यारी कविताए भी हैं जिनमें एक मामूली चिड़िया से लेकर प्रकृति की गोद में बसी धरती का हरापन भी दर्ज हुआ है। उनकी अंतःयात्रा उदास और उजाड़ नहीं है, वरन् कोई न कोई साथ चल रहा हैं, गुलाबी वसंत से लेकर पीले पतझड़ तक ने मनुष्य के दर्द को महसूस करने वाली इस रचनाकार के कठिन और टेढ़े मेढ़े रास्ते का आसान बनाया है।
मेरी अंतःयात्रा में
कोई साथ चल रहा है लगातार
गुलाबी वसंत हो या हो
पीला पतझड़ी मौसम
राह की अड़चनों को
बुहोरते जुड़ा है
छाया की तरह
मृदुलाजी की कविताओं में लोकतंत्र के दोष, राजनीतिज्ञों के वोट बटोरने के षड्यंत्र, सत्ताधारी पक्ष की स्वार्थी नीतियां, पूंजीवाद का हावी होना, विश्व की महाशक्तियों के स्वार्थी कृत्य, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के परिणाम, सर्वहारा वर्ग की दुर्दशा आदि सभी कुछ सीधे-सीधे नहीं लेकिन इन तमाम परिस्थितियों की वजह से आम आदमी जिस संकट का सामना कर रहा है, उसके अनेक चित्र हैं। इन दिनों साहित्य समाज प्रगतिशील और जनवादी खेमों में बंटा हुआ है, इसके अलावा रूपवादी, तुकवादी, रसछंदवादी भी हैं। मुझे लगता नहीं कि मृदुलाजी किसी खेमे में हैं या नहीं, इतना जरूर है कि वे सच के साथ हैं और यही वजह रही कि उनकी सहानुभूति शाहीन बाग में आंदोलन करने वाली महिलाओं प्रति रही है। उन्हें लेकर एक कविता ’शाहीन बाग की औरतें’ इस संकलन में है भी और उनका कवि इस धरना प्रदर्शन को लोकतंत्र की अभिव्यक्ति मनता है। इन औरतों ने आंचल को परचम बना पीढ़ियों के हक में लहरा दिया है। मृदुलाजी का कहना है-
शाहीन बाग की औरतें
बिकाऊ नहीं
वे पितृसत्ता के भय का
विस्तार हैं
मुक्ति यह गीत बनने में
सदियां लगी हैं
जाहिर हैं ऐसी कविताएं किसी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के लिए नहीं लिखी गई हैं। रस, छंद, अलंकार आदि काव्य-शिल्प के तत्वों को इन कविताओं में न तो खोजने की आवश्यक्ता है और न ही ये कविताएं इन तत्वों की मोहताज हैं। इन कविताओं में काव्य-सौंदर्य का असली तत्व मौजूद है और वह है लोक में व्याप्त विसंगतियों की पड़ताल करना और लोक-कल्याण की प्रबल भावना। इस संकलन में गजब की फोटोग्राफी भी है जैेसे कोई फोटो खींचा और उस पर कविता लिख दी। ऐसे एक नहीे बीसियों चित्र हैं। ऐसा ही एक चित्र उस महिला का है जिसे बच्चा होने वाला है, तीन बेटियां पहले ही हैं और वह भयभीत है कि कहीं इस बार फिर बेटी न हो जाए। ऑफिस के लिए सरपट भागती कामकाजी महिलाएं, एक स्कूली छात्रा का सहज संकोच और परदुख कातरता के अनेक चित्र हैं। इसके अलावा आदिवासियों का जीवन और तकलीफ को हंसते हुए रोंद देने वाली उनकी जीवंतता भी कविता का हिस्सा बनी है।
बरसों पहले कहा था
सुगना मुंडा के बेटे ने
कि मैं भगवान हूं
अड़ा रहूंगा मनुष्यता के
अधिकार के लिए
मारे जाने के बावजूद
जी उठूंगा हर बार
न्याय की लड़ाइयों में
आज मानवीय संवेदनाओं और क्षमताओं का सर्वाधिक क्षरण हो रहा है। इसलिए आज का आदमी लगातार भयाक्रांत होकर आर्थिक दिक्कतों की चपेट में आ गया है। जड़ होती सामाजिक मनःस्थितियां मनुष्य को निहायत आत्मकेंद्रित बनाती जा रही हैं। राजनीतिक विद्रूपताएं मनुष्य को हिंसक भी बनाती ता रही हैं। इसलिए मानवीय मूल्यवत्ता गायब हो रही है और महिलाएं सर्वाधिक संकट का सामना कर रही हैं। खासकर आदिवासी इलाकों में, लेकिन ऐसा नहीं कि सर्वत्र निराशा है। अपनी संघर्षधर्मिता के कारण महिलाएं आज नए युग की तरफ टकटकी लगाए देख रही हैं।
खुद के पैरों खड़ी
ओ! नए युग की औरतों
देखो! अपनी खुरदुरी हथेलियां
उग आया है उनमें एक नया ग्लोब
भोर चल कर आ रही है
तुम्हारे जागने से
सुनों उसकी मध्दिम पदचाप
सब सुनों!
समीक्षा की अपनी सीमाएं हुआ करती हैं। मृदुलाजी की यह कविता की किताब मुझे इतनी अच्छी लग कि इसी को लेकर एक स्वतंत्र पुस्तक क्यों न लिख दूं? संकलन ’पोखर भर दुख’ में अनेक लाजवाब कविताएं हैं और इतनी लाजवाब कि कुछ नाम गिनाना भी कठिन है, लेकिन फिर भी कुछ कविताएं मैंने बारबार पढ़ी हैं उनमें- बापू के चश्मे के पार की नायिकाएं, अनलॉक 0.1,सन्नाटे का शोर, प्रेम में अमलतास हो जाना, तुम्हारा न होने में होना, स्मृतियों की धूप, फागुन में मन का कैनवास, ढ़ाई आखर की छाप, स्मृतियों के कोठार की बारिश, गुल्लक में जमा प्रतिरोध, कविता और कवि, चोंच का लोहा काठ का मन, मौन, हथेलियों पर धूप, भोलवा की आंख का सावन, फायनल ईयर की लड़कियां, कामगार औरतें, गुलाबी के हिस्से की भूख वाली फ़ाइल जैसी अनेक कविताएं हैं। कविताएं आसान जरूर लगती हैं और अर्थ के मामले में पारदर्शी भी, लेकिन इनमें जो आदमी- औरतें हैं, उनका जीवन कठिन तो है, फिर भी वे इतना जरूर सीख चुके हैं कि किस तरह जीना चाहिए। उनके दुखों को कम करने के लिए तीज त्योहार और प्रकृति इन कविताओं में अपनी बारबार उपस्थिति दर्ज कराती रहती है।
आश्चर्य तो इस बात पर भी है कि छपने की सहूलियत भरे इस दौर में इतनी दमदार कविताओं की किताब बहुत पहले ही छप जाना चाहिए थी। कविता संकलन भले ही पहला हो, लेकिन ’सामाजिक संचेतना के विकास में हिंदी पत्रकारिता का योगदान’ तथा ’तरी हरि ना ना‘(छत्तीसगढ़ की महिला कथाकारों की कहानियां), ’ज़मीन से उठता हुआ आदमी’(मुक्तिबोध पर केंद्रित) ’मोहन राकेश के चरित्रों का मनोविज्ञान’ जैसी जरूरी किताबों का मृदुलाजी संपादन कर चुकी हैं। इसके अलावा देश की अनेक प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में इनकी रचनाएं छपती रही हैं। आकाशवाणी अम्बिकापुर जिन लोगों ने सुना हो, उन्होंने शानदार आवाज में इनके व्दारा प्रस्तुत वार्ताएं, महत्वपूर्ण लोगों से साक्षात्कार तथा कविताओं के प्रसारण की अवश्य याद होगी। माइक का बखूबी सामना करने वाली मृदुलाजी को विभिन्न मंचों पर भाषण एवं अनेकानेक आयोजनों का संचालन करने का व्यापक अनुभव रहा है। जाहिर है यह तमाम अनुभव इनकी कविताओं के हिस्से में आए और वे मजबूत बनीं। आप इन दिनों अम्बिकापुर (छ.ग.) के ’होलीक्रॉस वीमेंस महाविद्यालय’ में हिंदी पढ़ा रही हैं।
⚫ पुस्तक : पोखर भर दुख
⚫ लेखक : मृदुला सिंह
⚫ प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर
⚫ नरेंद्र गौड़ : 25, गेट नम्बर-1, पुरानी ग्लोबस टाउन शिप,
विनोबा नगर के पास, रतलाम (मप्र) पिन-457001
मोबाइल नम्बर-9826548961