“ग्राहक संरक्षण” से पूर्ण होगा आर्थिक महाशक्ति का संकल्प, ओटीटी पर बंद हो अश्लीलता
⚫ वैश्वीकरण, निजीकरण, उदारीकरण ने निश्चित ही देश के आर्थिक विकास में सहयोग किया है परन्तु यह भी उतना ही सही है की विदेशी कंपनियों के देश में आने से नियम- कानून और व्यावसयिक प्रबंधो ने देश के सबसे महत्वपूर्ण घटक “ग्राहक” को शोषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, विभिन्न प्रकार के भ्रामक विज्ञापन, गलत जानकारी, लचीले कानून से अर्थव्यवस्था के राजा “ग्राहक” को शक्तिहीन बना दिया। ग्राहकों को भी धोखाधड़ी की शिकायत कंज्यूमर ऐप, उपभोक्ता मंत्रालय द्वारा जारी किए गए न. 1800114000 अथवा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के अंतर्गत जिला उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज करनी चाहिए। ⚫
⚫ दिनकर सबनीस
संगठन मंत्री, अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत
हमारा देश भारत जिसकी सामाजिक, आर्थिक, राजनेतिक और सांस्कृतिक मूल्य अन्य सभी विकसित देशो से बिलकुल भिन्न है हमारे देश के सभी गणमान्य नागरिक “देश प्रथम” के सूत्र को प्राथमिकता देते है और देश के विकास में अपना भरपूर सहयोग करते है, निश्चित ही हमारा देश अब रोटी, कपडा, मकान की बुनियादी आवश्यक सुविधाओ से आगे बढ़ चूका है अब लगभग सभी के हाथो में डिजिटल मोबाईल आ चूका है, आवश्यक संसाधन प्राप्त हो रहे है परन्तु नहीं बदली तो एक बात और वह है ग्राहक अधिकारों की अनदेखी !
वैश्वीकरण, निजीकरण, उदारीकरण ने निश्चित ही देश के आर्थिक विकास में सहयोग किया है परन्तु यह भी उतना ही सही है की विदेशी कंपनियों के देश में आने से नियम- कानून और व्यावसयिक प्रबंधो ने देश के सबसे महत्वपूर्ण घटक “ग्राहक” को शोषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, विभिन्न प्रकार के भ्रामक विज्ञापन, गलत जानकारी, लचीले कानून से अर्थव्यवस्था के राजा “ग्राहक” को शक्तिहीन बना दिया।
पूरी ताकत से मजबूत करना होगा ग्राहक आंदोलन
वर्तमान में देश में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम २०१९, प्रतिस्पर्धा अधिनियम 2002 जैसे व्यापक कानून ग्राहक अधिकारों की रक्षा हेतु उपलब्ध है परन्तु आवश्कता है, ग्राहकों को उनके अधिकारों हेतु जन-जागरूकता की जोकि सामान्यतः उतनी नहीं है जितनी होनी चाहिए यह उपभोक्ता अदालतों में उपलब्ध डेटा से स्पष्ट प्रतीत होता है, उपभोक्ता अधिनियम 2019 में CCPA, CCPC जैसे प्रावधान रखे गये है, जिला मजिस्ट्रेट को भी शक्ति दी गई है परन्तु भ्रामक विज्ञापन और ग्राहक के अधिकारों को सुरक्षित रखने हेतु शिकायते सीमित ही दर्ज है जिससे स्पष्ट प्रतीत होता है की ग्राहक अधिकार हेतु शासन, प्रशासन के साथ साथ उपभोक्ता के मामले में कार्य करने वाले संगठनो को अब और भी सक्रिय और प्रभावी ढंग से मुखर होकर ग्राहक अधिकारों के लिए आवाज को बुलंद करना होगा और समाज को भी शोषण मुक्त बनाने हेतु ग्राहक आन्दोलन को पूरी ताकत से मजबूत करना होगा।
खर्च की गई राशि की जरूरी है रसीद
वर्तमान में ग्राहक, उपभोक्ता आयोग की अनियंत्रित तारीख, निर्णय में देरी और कार्यप्रणाली से संतुष्ट नहीं है, आवश्यकता है उपभोक्ता आयोग में स्थाई नियुक्तिया हो, जिससे न्याय करने हेतु कर्तव्यबोध हो और आम उपभोक्ता को न्याय होता दिखाई भी दे !
टीवी हो या सोशल मिडिया, विज्ञापनों में विस्फोटक वृद्धि, बाजार सूचना में असमानता और आक्रामक विपणन जैसे कारक उपभोक्ता की प्रभुसत्ता पर दवाब बढ़ा है। विज्ञापनों पर नज़र रखकर नियंत्रित करना आवश्यक है। हमें अधिकतर ऐसे विज्ञापन परोसे जाते हैं जिनके पीछे कोई तर्क नहीं होता है । ग्यारंटी के बाद भी सर्विस प्रदान नहीं करने के साथ ही अधिक दाम वसूलना, बिना मानक वस्तुओं की बिक्री, ठगी, नाप- तौप में अनियमितता, मिलावटी सामग्री, ग्राहकों के प्रति कपटता को नियंत्रित करने के लिए जागरूकता अभियान चलाना आवश्यक है। प्रायः कोई वस्तु अथवा सेवा लेते समय हम धन का भुगतान तो करते हैं लेकिन उसकी रसीद नहीं लेते, जबकि शोषण से मुक्ति पाने के लिए सबसे जरूरी है कि किसी भी वस्तु, सेवा अथवा उत्पाद के लिए खर्च की गई राशि की रसीद आवश्यक रूप से लेना ही चाहिए।
डिब्बा बंद पैकिग वस्तुओ से रखे सावधानी
वैसे तो एक जागरूक ग्राहक डिब्बा वस्तु की खरीदी को नापसंद करता है क्योकि वह मात्र बाह्य चमक दमक से छल होकर पर्यावरण की अनदेखी से युक्त होती है,फ़िर भी एक बड़ा वर्ग इसकी खरीदी करता है, डिब्बा बंद वस्तुएं खरीदते समय अनिवार्य रूप से ध्यान रखना चाहिए कि, खरीदी वस्तु जिसमें निर्माता या पैकर का नाम व पूर्ण पता है। वस्तु की शुद्ध मात्रा जिसमे वजन या संख्या लिखा हो। अधिकतम खुदरा मूल्य, मात्रा सभी करों के साथ साथ हो जिसमे निर्माण या पैकिंग की माह और वर्ष लिखा हो। खाद्य पदार्थों में उसके उपयोग की अवधि देख कर लें। एक्सपायरी तिथि के बाद उसका उपयोग करना हानिकारक हो सकता है।ऑनलाइन शॉपिंग में किसी सामान को छूना या उसका वास्तविक अनुभव कर पाना संभव नहीं है, ग्राहकों के लिए तो एक समस्या की तरह है, लेकिन ऑनलाइन मार्केट स्थान में बैठे लोगों के लिए नकली सामान बेचने का बहुत बड़ा माध्यम भी है। उपभोक्ता की जागरूकता ही उसे दैनिक जीवन में होने वाली कम वजन और ज्यादा दाम के नाम पर होने वाली धोखाधड़ी से बचा सकती है। आजकल यह दृश्य काफी देखने में आता है कि कहीं तौल में कम मिलता है और कहीं पैकेट में लिखे मूल्य से अधिक में वस्तुएं मिलती हैं। साथ ही डबल स्टीकर या गलत स्टीकर लगाकर सामान बेचे जाते हैं। लेकिन, जागरूकता से ऐसे मामलों को रोका जा सकता है।
डब्बे बंद वस्तु में वजन कम हो, एक्सपायरी डेट हो या भ्रामक विज्ञापन हो सबसे ज्यादातर शिकायतें नामचीन कंपनियों के बहुप्रचलित उत्पादों के विरुद्ध ही होती है, जिन्हें लोग बड़े भरोसे के साथ खरीदते हैं। हर माध्यम के ज़रिये प्रकाशित-प्रसारित हो रहे ऐसे भ्रामक दावों वाले विज्ञापन ग्राहकों के मन पर मनोवैज्ञानिक असर भी डालते हैं। इन विज्ञापनों को ऐसी सोची-समझी कूटनीति के तहत तैयार किया जाता है कि ग्राहक इनके प्रभाव में आ ही जाते हैं। इस प्रयोजन में भले ही व्यावसायिक सोच रखने वाले लोग सफल हैं पर देश के आम नागरिकों के साथ यह किसी धोखाधड़ी से कम नहीं। ज़रूरत इस बात की भी है कि इन भ्रामक विज्ञापनों के नकारात्मक प्रभावों को लेकर न केवल उपभोक्ता मंत्रालय या ग्राहक संगठनों को गंभीरता से सोचना होगा बल्कि समाज को भी सतर्क रहना होगा।
ग्राहकों को भी धोखाधड़ी की शिकायत कंज्यूमर ऐप, उपभोक्ता मंत्रालय द्वारा जारी किए गए न. 1800114000 अथवा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के अंतर्गत जिला उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज करनी चाहिए।
ऑनलाइन गेमिंग के बढ़ते बाजार से बाल मस्तिष्क पर पड़ते परिणाम
भारत में ऑनलाइन गेम का कारोबार 400 मिलियन का है. यह कारोबार एक ही साल में आठ प्रतिशत बढ़ा है. आल इंडिया गेमिंग फेडरेशन के हिसाब से अगले वर्ष 2023 में 2 बिलियन अमरीकी डॉलर की आमदनी होने की संभावना है. वर्ष 2020 में ऑनलाइन गेम खेलने वाले लोगो की संख्या 360 मिलियन थी वह यह वर्ष 510 मिलियन होने जा रही है।
ऑनलाइन गेम की लत नशीले पदार्थ के सेवन से कम खतरनाक नहीं है। इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने इसे मानसिक बीमारियों की सूची में शामिल किया है।
इससे बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं खड़ी हो गई हैं। हमे जानकारी है की पिछले दिनों में दिल्ली-एनसीआर में दो हैरान करने वाली घटनाएं सामने आई हैं। पहली घटना दिल्ली की है। जहां पबजी गेम खेलने की लत में एक 15 वर्षीय बच्चे ने अपने दादा के एकाउंट से महज दो महीने में ही 2.30 लाख उड़ा दिए। दूसरी घटना ग्रेटर नोएडा की है, जहां एक बच्चे ने ऑनलाइन गेम के नायक की तरह अभिनय करने के चक्कर में पिस्तौल से गोली चला दी, जिसमें चार बच्चे घायल हो गए। ये कोई पहली घटना नहीं है। पूर्व में भी कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जिसमें ऑनलाइन गेम की लत का दुष्प्रभाव सामने आया है। घंटों ऑनलाइन गेम खेलने से बच्चों को न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक रूप से भी नुकसान पहुंच रहा है।इसके कई नाम हैं जैसे इंटरनेट पर ऑनलाइन गेम की लत या गेमिंग एडिक्शन। नशीले पदार्थ का सेवन करने पर वह शरीर के अंदर जाकर नुकसान पहुंचाता है, जबकि ऑनलाइन गेम की लत में दूसरी तरह का असर होता है।मोबाइल के साथ में घंटो रहकर बच्चे उस पर निर्भर हो जाते हैं। वे मन पर काबू नहीं रख पाते। बस हर पल गेम खेलते रहना चाहते हैं। इस वजह से पढ़ाई में भी उनका मन नहीं लगता। कई ऑनलाइन गेम ऐसे हैं, जो बच्चों को आक्रामक बना रहे हैं। उससे आपराधिक प्रवृत्ति बढ़ती है। साथ ही ऑनलाइन गेम से बच्चों में गणना करने की क्षमता , दिमाग, हाथ व आंख के साथ संतुलन क्षमता कम होती जा रही है। जो आगे चलकर एक बड़ी बीमारी बन जाती है, इसलिए समय का ध्यान रखना जरूरी है। आधुनिक शिक्षा के इस युग में बच्चे औसतन 5 से 10 घंटे मोबाइल व इंटरनेट पर गुजारने के कारण उनकी जीवनशैली बिगड़ रही है उनकी आखों पर इसका प्रभाव पड़ रहा है। खाने-पीने तक का उन्हें ध्यान नहीं रहता, कुछ बच्चे तो खाना खाते समय भी मोबाइल पर वीडियो देख रहे होते हैं नींद पूरी नहीं होने से कई बच्चे धीरे-धीरे मानसिक तनाव व अवसाद से पीड़ित हो जाते हैं। लत लगने के बाद यदि उन्हें ऑनलाइन गेम या वीडियो देखने से मना किया जाए तो उनमें चिड़चिड़ापन होने लगता है और वे आक्रामक हो जाते हैं मोबाइल के बिना उन्हें घबराहट और बेचैनी होने लगती है। कई माता-पिता को पता ही नहीं चलता कि यह ऑनलाइन गेम की लत का परिणाम है इसलिए माता पिता को अपने बच्चों को अपनी निगरानी में ही मोबाइल का इस्तेमाल करने देना चाहिए। बच्चों को तकनीक से दूर नहीं करना चाहिए लेकिन उसका इस्तेमाल सतर्कता के साथ होना चाहिए।
ओ.टी.टी पर अश्लीलता हो बंद
ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म पर फिल्मों/ वेब सीरिज की रिलीज या streaming के लिए फिल्मों के राइट्स खरीदने होते हैं और इन राइट्स के लिए फिल्म निर्माता को एक रकम मिलती है परिवार के सभी लोग एक साथ टी.वी देखते हैं इसलिए वहाँ पर भाषा पर कुछ नियंत्रण किया जाता है । उस पर अभद्र भाषा नहीं बोल सकते हैं, लेकिन वहीं ओ.टी.टी पर वेबसिरिज में गाली-गलौज, नग्नता सभी हो रहा है। सोशल मीडिया ने आम भारतीय नागरिकों को ताजा सूचनाओं से अवगत होने, सवाल पूछने, शासकीय अधिकारियों की आलोचना करने, अपनी रचनात्मकता दिखाने एवं अपने विचारों को साझा करने में सक्षम बनाया है । भारत में एक खुला इंटरनेट समाज है और सोशल मीडिया कंपनियाँ भारत में अपना संचालन करने, कारोबार करने और इसके साथ ही मुनाफा कमाने के लिए स्वतंत्र हैं, फिर भी इन कंपनियों को भारत के संविधान और कानून के प्रति जवाबदेह होना पड़ेगा । सोशल मीडिया का प्रसार, नागरिकों को सशक्त बनाने के साथ ही कुछ आशंकाओं को उत्पन्न करता है, दुनिया भर में इस तरह की चिंताएं कई गुना बढ़ गई हैं और यह एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बन गया है । महिलाओं की छेड़छाड़ वाली तस्वीरों और बदला लेने वाली, पोर्न संबंधित सामग्री को साझा करने के लिए सोशल मीडिया के दुरुपयोग ने महिलाओं की गरिमा के लिए खतरा पैदा किया है । अपमानजनक भाषा, अनर्गल और अश्लील सामग्री तथा और धार्मिक भावनाओं के प्रति असम्मानजनक विचारों के इस्तेमाल की घटनाएं बढ़ रहीं हैं । चिंता का विषय यह है की भारतीय सेना की भी इन प्लेट फॉर्म ने गलत चरित्र बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी, परेशान करने वाले घटनाक्रम ने कई मीडिया प्लेटफार्मों को तथ्य- जांच तंत्र बनाने के लिए मजबूर किया है । आवश्कता है, समाज अब इन सभी ओ.टी.टी. प्लेट फॉर्म का सामूहिक विरोध कर बहिष्कार करे !
स्थानीय उत्पाद को बढ़ावा मिले
भारत देश में अर्थव्यवस्था से जुड़े प्रत्येक क्षेत्र में अनेक सम्भावनाएँ हैं । हमारे सामने जन- जागरूकता के अनेक उदाहरण सामने हैं जैसे; देश में डिजिटल माध्यम से भुगतान करने के साथ ही जन सामान्य भलीभाती परिचित है कि है कि यदि किसी वस्तु/सेवा के लिए 28 रुपये 20 पैसे देना हैं तो हम तीस रुपये नहीं देंगे । इस ही प्रकार, पूरी दुनिया में भारत की वैक्सीन सबसे अधिक सफल है । अन्य देशों में जनसंख्या कम होने पर भी कोविड से संक्रमित लोगों की संख्या भारत देश की तुलना में बहुत अधिक है । हमें अपनी शक्तियों को पहचानने की आवश्यकता है । दुर्भाग्य है, युवा शक्ति के मस्तिष्क में केवल यही फिट किया गया है कि हमें एक अच्छी शासकीय नौकरी करना है, परन्तु वास्तव में, देश की युवा शक्ति में उत्साह का संचार करना आवश्यक है । यह जान लेने की जरुरत है कि हमारे देश की उपलब्धियाँ ही हमारी ताकत हैं ।
हमें किसी अन्य व्यक्ति की कम्पनी के नौकर नहीं बनना है, हमें इन धारणाओं को बदलना है । वास्तव में, हम स्वयं भी किसी नए कार्य की शुरुआत करके अन्य लोगों को रोजगार देने में सक्षम हैं, लेकिन फिर भी युवा वर्ग विदेशों में नौकरी पाने के लिए सतत प्रयासरत रहते हुए अनेक वर्ष अपनी शक्तियों को व्यर्थ कर देते हैं । एक समय ऐसा आता है जबकि न तो वह नौकरी मिल पाती है और न ही इस अवधि में समाज को कुछ दे पाते हैं । प्रत्येक व्यक्ति के पास व्यापार व्यवसाय करने का संवैधानिक अधिकार हैं, इन अधिकारों के लिए जागरूकता हो और साथ ही कर्तव्य बोध हो तो देश की प्रतिभा विदेशों की राह देखने का प्रयास भी नहीं करेंगी । भारत देश को महाशक्ति के रूप में सुदृढ़ करना है, इसलिए स्थानीय बाजार में ही इतनी सम्भावनाएँ हों कि देश का धन बाहर नहीं जाए । समाज को यह समझना जरुरी है कि कोई भी उत्पाद ऐसा खरीदें, जो हमारे लिए उचित हो और स्थानीय उत्पादकों द्वारा बनाया गया हो । इस कदम से स्थानीय उत्पादकों को बाज़ार मिलेगा और हमारा धन विदेशों तक नहीं जाएगा, परिणामस्वरूप गांव, शहर, राज्य के आर्थिक मजबूत होने से ही सम्पूर्ण देश की अर्थ व्यवस्था भी मजबूत होगी।
⚫ दिनकर सबनीस
लेखक अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत के संगठन मंत्री है।