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साहित्य सरोकार : कविता की तासीर और तस्वीर से साहित्यिक बिरादरी रूबरू हुई मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन भवन में

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⚫ कविता की ज़मीन पर पदचाप

⚫ जनवादी लेखक संघ मध्यप्रदेश द्वारा हुआ दो राज्यों के कवियों का कविता पाठ

हरमुद्दा
भोपाल, 23 फरवरी। इतिहास गवाह है,जब-जब लोकतांत्रिक मूल्यों पर ख़तरा मंडराया और फासीवादी ताक़तों द्वारा आमजन के आपसी विश्वास को नेस्तनाबूद करने की कोशिशें हुईं, हमारी कविता ऐसी ताक़तों के ख़िलाफ़ हमेशा कारगर साबित हुई है। असंख्य फूँकें इक्कट्ठा हुईं और फेंफड़ों की थकान की हद तक कविता की लौ को बुझाने की भरसक कोशिशें हुईं। कविता की लौ टिमटिमाई ज़रूर लेक़िन कभी बुझी नहीं।

कविता की ऐसी ही तासीर और तस्वीर से भोपाल की साहित्यिक बिरादरी मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन भवन में रूबरू हुई।
“उत्तरप्रदेश-मध्यप्रदेश कविता की ज़मीन-दो” जनवादी लेखक संघ मध्यप्रदेश के बैनर तले आयोजित दो दिवसीय और तीन सत्रों में सिमटे इस कार्यक्रम में दोनों सूबों के तीस कवियों ने जनवादी लेखक संघ के संकल्प से सिंचित कविता की इस ज़मीन पर अपनी आस्था के बीज बिखेरे। इस स्वप्न के साथ कि कविता की नई ज़मीन विस्तार लेगी और प्रतिरोध की कविता की नई पौध पल्लवित होगी।


यह स्वप्न तब और भी विश्वसनीय लगा जब जनवादी लेखक संघ राष्ट्रीय परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष और वरिष्ठ कवि-साहित्यकार राजेश जोशी ने स्वागत वक्तव्य में इशारा किया कि दो प्रांतों के बीच कवियों की आवाजाही का यह सिलसिला आगे भी ज़ारी रहेगा। गरज यह जानने की है कि अन्य प्रांतों के कवि क्या लिख रहे हैं और वहाँ कविता की ज़मीन किस तरह तैयार हो रही है। उन्होंने कहा कि कविता हमेशा लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ खड़ी रही है। समान विचारधारावाले लेखक संगठनों की सीमाओं का अतिक्रमण कर प्रतिरोध की कविताओं पर एकाग्र “कविता की ज़मीन” का मिलाजुला मंच तैयार हो।

लखनऊ के बाद भोपाल का यह आयोजन उसी दिशा में एक और पहल है। ऐसा ही संकेत राष्ट्रीय जनवादी लेखक संघ के संयुक्त सचिव तथा उत्तरप्रदेश जनवादी लेखक संघ के सचिव नलिनरंजन सिंह ने “हिन्दी कविता में उत्तरप्रदेश” विषय पर केंद्रित अपने शोधपरक और सारगर्भित वक्तव्य के दौरान दिया। नलिनरंजन सिंह ने कहा-” दो राज्यों के बीच कविता की ज़मीन की इस पहल को देश की कविता की ज़मीन तक व्यापक और विस्तारित किया जाएगा।


उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के तीस कवियों के कविताई योगदान ने इस आयोजन को निश्चित ही सार्थक और चिरस्मरणीय बना दिया। राजेश जोशी के स्वागत वक्तव्य के बाद 18 फरवरी की शाम चार बजे कविता की ज़मीन का पहला सत्र प्रारंभ हुआ। इसमें उत्तरप्रदेश से सुभाष राय, आशीष त्रिपाठी, अरुण आदित्य, आभा खरे और माधव महेश ने शिरकत की जबकि मध्यप्रदेश से श्रुति कुशवाहा, हेमंत देवलेकर, असंगघोष और कुमार अंबुज ने कविता पाठ किया। इस सत्र का संचालन मनोज कुलकर्णी ने किया।

दूसरा सत्र 19 फरवरी को पूर्वाह्न 11 बजे शुरू हुआ। इसमें मध्यप्रदेश से सविता भार्गव, अरबाज़ ख़ान, अमिताभ मिश्र,अरुणाभ सौरभ और रतन चौहान ने कविताएँ सुनाई। जबकि उत्तरप्रदेश से हरिश्चंद्र पांडे, बसंत त्रिपाठी, विशाल श्रीवास्तव,नलिनरंजन सिंह, सीमा सिंह और नूर आलम शिरकत की। संचालन संध्या कुलकर्णी ने किया।
19 फरवरी को ही तीसरा और समापन सत्र अपराह्न 3 बजे प्रारंभ हुआ। मध्यप्रदेश के नेहा नरूका, प्रेमशंकर शुक्ल, मोहनकुमार डहेरिया और नरेन्द्र जैन के बाद उत्तरप्रदेश से शालिनी सिंह, ज्ञानप्रकाश चौबे, अनिल त्रिपाठी और राजेन्द्र वर्मा ने काव्य-पाठ किया। संचालन वसंत सकरगाए ने किया।
हमारे सृष्टि और सांसारिक बोध में गहरा हस्तक्षेप करती इन कविताओं पर केंद्रित समापन वक्तव्य में डॉ. आरती ने कहा, कविता राजनीतिक नारों के गूढ़ अर्थों को खोलती है और वास्तविकता को समाज के समक्ष लाती है। इस अर्थ में एक छोटी कविता भी विचार का नया फलक निर्मित करती है। जलेस केंद्रीय परिषद के उपाध्यक्ष रामप्रकाश त्रिपाठी ने आभार व्यक्त किया।

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